उलूक टाइम्स: साल
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शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

और कर भी क्या सकता है वो जो है हड्डी में कबाब

 

सुना है फिर जा रहा है
एक दो दिन में एक पुराना हो चुका एक नया साल
सोच में बैठा है  हो ना पाया आबाद

साल पैदा होते हैं यूं ही बूढ़े हो लेने के लिए
बस कुछ दो चार दिन में ही
या कहें कि हो लेते हैं खुद ही बरबाद

खबर ये भी है
कि आ भी रहा है इक नया साल
पुराने की जगह लेने के लिए
और है बहुत ही बेताब

आदमी है कि
आदमी होने की सोचता ही रह जाता है
और साल निकल लेता है किनारे से
बस यूं ही चुपचाप

कोई कह रहा है
कि और भी बहुत कुछ अच्छा होगा इस साल
हो चुके सारे अच्छे के बाद

इतना अच्छा हो चुका है इस साल  
शायद कुछ बचा भी हो
सोच में बैठा है पर लगा एक सुरखाब

सपने बोना कई
सींचना सपनों को और उगाना पेड़ सपनों का
फिर खाना तोड़ कर सपने बेहिसाब

सीख लेना अच्छा है
सिखा कर जा रहा है कम से कम
सपना हो लेने से बचने की पढ़ाकर
कोई अपनी किताब

कितना कुछ लपेटा है
लपेटने वाले ने साल भर जी भर के
सच में जादूगरी है कि कमाल है
अभी तो और बहुत कुछ देखना है जनाब

‘उलूक’ फिर से खिसियायेगा
फिर से नोचेगा खम्बे कई आने वाले साल में यूं ही
और कर भी क्या सकता है वो
जो है हड्डी में कबाब


चित्र साभार: 

सोमवार, 30 दिसंबर 2019

शतक पूरा हुआ खींच तान कर आज किसी तरह इस साल की बकवासों का


पूरा हुआ
खाता
बही

आज और अभी

इस
साल की

कुछ
चुनी हुयी
बकवासों
का

सभी
नहीं भी
कही
गयी

कुछ
अनछुयी
रह ही
गयी

 फिर भी
बन गया
खींच तान
कर

किसी तरह

शतक
थके थकाये
अहसासों
का

समझे
गये
कुछ लोग

समझाये
गये
कुछ लोग

लिखे
लिखाये
में
दिखा

सैलाब
उमड़ते
जज्बातों
का

चित
हुआ करते थे
सिक्के
का

जिसकी
नजरों में

कभी
पुराने
सालों में

पट हो गये
इस साल

जवाब
भी
उनके
ही रहे

बिना
सिक्का
उछाले गये

चित पट
पर
पूछे गये
सवालातों
का

आभार
दिया

‘उलूक’ भी

कुछ भी
में से

कुछ कुछ
समझ लिये

जैसे

नजर
आने वाले
पाठकों की

भलमनसाहतों
का

इन्तजार
करता हुआ

फिर से
रात के
अंधेरे में

खुलने का

सभी
रोशनी
बन्द
किये हुऐ

कुछ
खुदाओं
के
हवालातों
का ।

चित्र साभार: https://www.clipartkey.com/

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

एक साल बेमिसाल और फिर बिना जले बिना सुलगे धुआँ हो गया



मुँह 
में दबी 
सिगरेट से 

जैसे 

झड़ती 
रही राख 

पूरे 
पूरे दिन 
पूरी रात 

फिर एक बार 

और 

सारा 
सब कुछ 
हवा हो गया 

एक 
साल और 

सामने सामने से 

मुँह 
छिपाकर 
गुजरता हुआ 

जैसे 
धुआँ हो गया 

थोड़ी कुछ 
चिन्गारियाँ
उठी 

कुछ
लगी आग 

दीवाली हुयी 

आँखों
की 
पुतलियों में 

तैरती 
बिजलियाँ 
सी
दिखी 

खेला गया 
चटक गाढ़ा 
लाल रंग 

बहता दिखा 
गली सड़कों में 

गोलियों 
पत्थरों से भरे 
गुलाल से 

उमड़ता
जैसे फाग 

आदमी को 

आदमी से 

तोड़ता हुआ 
आदमी 

आदमी 
के 
बीच का 

एक 

आदमी 
उस्ताद 

पता
भी 
नहीं चला 

आदमी 
आदमी 
के
सर 
पर चढ़ता 

दबाता 
आदमी 
को
जमीन में 

एक 
आदमी 

आदमी
का 
खुदा हो गया 

देखते 
देखते 

सामने 
सामने 
से
ही 

ये गया 
और 
वो गया 

सोचते सोचते 

धीमे धीमे 

दिखाता 
अपनी
चालें 

कितनी 
तेजी के साथ 

देखो 
कैसे 

धुआँ
हो गया 

‘उलूक’ 
मौके ताड़ता 
बहकने के 

कुछ 
रंगीन सपने 
देखते देखते 

रात के 
अंधेरे अंधेरे 
ना
जाने कब 

खुद ही 
काला 
सफेद हो गया 

पता 
भी नहीं चला 

कैसे
फिर से एक 

पुराना 
साल 

नये 
साल के 
आते ना आते 

बिना 
लगे आग 

बिना सुलगे ही 

बस 
धुआँ
और 

धुआँ हो गया । 

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

इस घर को उस घर से निकाल किसी और घर में मिलाने का जल्दी ही कमाल होगा

दैनिक हिन्दुस्तान 15/01/2019
नये साल

जरूर

फिर से
कोई
बबाल होगा

बिकेगा
एक बार और
बिका घर

अलग
धमाल होगा

उस घर से
उठाया था
घर कभी

सोचे बिना
कोई
सवाल होगा

इस घर में
मिलाया था
सोच कर

कल सब
अपना ही
माल होगा

घर बेच
कर बना
घर का
मालिक

कितना
निहाल होगा

कफन
तीसरे साल
बदल
देने वाला

कितना
खुशहाल होगा

पाँच साल में
निकलेगा
फिर जनाजा

क्या
सूरते
हाल होगा

किसका मरा
कुछ नहीं होगा

सबसे आगे
सिर मुँडाया

वही
माई का
लाल होगा

बेवकूफ
‘उलूक’
दौड़ेगा

छोड़ कर
चलना
घुटनों के बल

देखना
बेमिसाल होगा

समझदारों
के गिरोह में
खिल उठेंगे
चेहरे सभी

इस
नये साल
पक्का

बेवकूफों का
फिर
इन्तकाल होगा।
 

चित्र साभार: दैनिक हिंदुस्तान, मंगलवार, 15/01/2019 पृष्ठ 11

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

दिसम्बर ने दौड़ना शुरु कर दिया तेजी से बस जल्दी ही साल की बरसी मनायी जायेगी



फिर 
एक साल निकल लिया 

संकेत 
होनी के होने के 
नजर आना शुरु हुए 

अपनी ही सोच में 
खुद की सोच का ही 
कुछ गीला हिस्सा 
शायद फिर से 
आग पकड़ लिया 

धुआँ नहीं दिखा 
बस जलने की खुश्बू आती हुयी 
जैसा कुछ महसूस हुआ 

निकल लिया उसी ओर को 
सोचता हुआ देखने के लिये 
अगर हुआ है कुछ तो क्या हुआ 

लेकिन इस सब के बीच 
बस इतना सा संतोष हुआ 

कि खुश्बू सोच लिया 
अच्छा किया 
सकारात्मकता की रेखा को छूता रहा 
सोच को अपना पैर 
बाहर को नहीं रखने दिया 

इससे पहले बदबू की सोचती 
सोच 
टाँग पकड़ कर 
अन्दर का 
अन्दर को ही खींंच लिया 
समझाकर दिमाग को खुद के 

अपनी ही मुट्ठी बनाकर 
अपने ही हाथ की 
जोर से ठोक लिया 

हौले से हो रहे जोर के शोर से 
कुछ हिलने का 
जैसा अनुभव किया 

फिर झिझक कर याद किया 
जमाने पहले 
गुरुजी का पढ़ाया शिष्टाचार का पाठ 

और वही अपने आप 
बड़बड़ाते हुऐ 
खुद ही खुद के लिये बोल लिया

अभी सोच में आया ही था 
कि 
सभी तो लिख दिया 

और अभी अभी फिर से 
लिखने लिखाने को 
कोने से 
कलम दबा कर खिसक लिया 

एक पुरानी किताब को 
फिर बेमन से खोल लिया

***********

रहने दे 
मत खाया कर कसम ‘उलूक’ 
नहीं लिखने की 
लिख भी देगा तब भी 
साल इसी तरह गुजरते चले जायेंगे 

करने वालों की ताकत और सक्रियता में 
वृद्धि चक्रवृद्धि होती रही है 

लिखने लिखाने की कलमें घिसेंगी 
घिसती चली जायेंगी 

अखबार रोज का रोज 
सबेरे दरवाजे पर टंका मिलेगा 
खबरें छपवाने वालों की ही छपेंगी 

साल भर की समीक्षा की किताब के हर पन्ने पर 
वही चिपकी हुई नजर आयेंगी

हर साल इसी तरह 
दिसम्बर की विदाई की जायेगी ।। 

चित्र साभार: http://clipart-library.com/

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

फिर से एक नया साल बापू एक और दो अक्टूबर बीत गया

बापू

फिर
टकराये हम

फिर
पता चला
एक साल
और ऐवें
ही बीत गया

समझ में
आ गयी
हों जैसे

फिर से
कुछ
और बातें

फिर से
हुऐ
कुछ भ्रम

जैसे खुद
गोल किया हो
अपने गोल पर

और
महसूस
साथ में किया
जीत गया

बापू

छोटी
छोटी बातें
दुनियाँ की
दुनियाँदारी की

लगता है
धीरे धीरे
अब
पूरा का पूरा
मन भीग गया

देखना
खुद का खुद से
ठीक नहीं

देख रहे हों
सब
जो कुछ

कुछ कुछ
देखना
लगता है
अब तो
सीख गया

बापू

पढ़ते
पढ़ते तुझको

दिखा
नहीं जमाना
बगल से
निकल
दूर कहीं

लिख चुका
कोई
धुन नयी
कोई
गीत नया

सीखा
नाच जीवन का
रख कर कदम
तेरे कदमों पर
जितना भी

नाँच ना जाने
आँगन टेढ़ा
सुनकर
नयी पौंध से

सारा
सब कुछ
जैसे रीत गया

एक पूरी
एक आधी सदी
का पैमाना बापू

सारी
दुनियाँ ने देखा
सोचा और समझा

ढाला
कुछ कुछ
जीवन में अपने

पूरब
लेकर
पश्चिम को
जैसे प्रीत गया

अपने
अन्दर के सच
ढक लेने का
हथियार बापू

अपना
खुद का सच

दुनियाँ की
आखों में

झोंकने
के लिये
झूठ नया

‘उलूक’

एक सौ
पचास साल
की
मेहनत पर

कोई आकर
कुछ दिन में

कितना कितना
गोबर लीप गया ।

चित्र साभार: http://devang-home.blogspot.com

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

एक और साल अपना दिसम्बर लिये सामने से नजर आता है

कितना
कुछ
यूँ ही छूट
जाता है

समय पर
लिखा ही
नहीं जाता है

चलते चलते
सड़क पर
अचानक
कुछ पक
पका जाता है

कहाँ रखो
सम्भाल कर

कलम कापी
रखने का
जमाना
याद आता है

लकीरें खींचना
आने ना आने
का सवाल
कहाँ उठता है

लकीरें खींचने
वाला शिद्दत
के साथ
हर पेड़ की
छाल पर
उसी की
शक्ल खोद
जाता है

किसी के
यहाँ भी होने
और उसी के
वहाँ भी होने
से ही जिसके
होने का मुरीद
जमाना हुआ
जाता है

जानते बूझते
हुऐ उसे
पूजा जाता है
किसी को वो
कहीं भी नजर
नहीं आता है

किसी का यहाँ
भी नहीं होना
और उसी का
वहाँ भी नहीं होना
उसके पूज्य होने
का प्रमाण
हो जाता है

दुर्भाग्य होता
है उसका जो
यहाँ का यहाँ
और
उसका भी
जो वहाँ का वहाँ
रहने की सोच से
बाहर  ही नहीं
निकल पाता है

दुनियाँ ऐसे
आने जाने
वालों के
पद चिन्हों
को ढूँढती है
जिन पर
चल देने वाला
बहुत दूर तक
कहीं पहुँचा
दिया जाता है

इधर से जाने
उधर से आने
उधर से जाने
इधर से आने
वालों को

खड़े खड़े
दूर से
आते जाते हुऐ

देखते रहने
वाले ‘उलूक’
की बक बक
चलती चली
जाती है

फिर से एक
और साल
इसी तरह
इसी सब में
निकलने के लिये
दिसम्बर का
महीना सामने
लिये खड़ा
हो जाता है ।

चित्र साभार: Can Stock Photo

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

नया साल कुछ नये सवाल पुराने साल रखे अपने पास पुराने सवाल

शायद कोई
चमत्कार होगा
और जरूर होगा
पहले कभी
नहीं हुआ तो
क्या होता है
इस बार होगा
पक्का होगा
असरदार होगा
हो सकता है
दो या तीन
बार होगा
हमेशा होते
रहने की आशा
या सोच नहीं
पक रही है कहीं
खाली दिमाग
के किसी
बिना ईधन
के चूल्हे में
दो या तीन
नहीं भी सही
एक ही बार सही
क्या पता
वो इस बार होगा
हर साल आता है
नया साल
पुराने साल
के जाते ही
इस बार भी
आ गया है
आज ही आया है
पुराना हिसाब
वहीं पीछे
छोड़ के आया है
या बैंक के खाते
के हिसाब की तरह
कुछ कुछ काम
का आगे को भी
सरकाया है
पहला पहला
दिन है साल का
अभी हाथ में
ही दिख रही है धूनी
जमाने का मौका
ही नहीं मिल पाया है
पिछले साल भी
आया था एक साल
इसी जोशो और
खरोश के साथ
जानते थे जानने वाले
चलेगा तो चलेगा
आँखिर कितना
बस एक ही तो साल
जमे जमाये
इस से पहले
क्यों नहीं कर
दिये जायें खड़े कुछ
अनसुलझे सवाल
उलझा इतना
कि साफ साफ
महसूस हुआ साल भर
कि सँभलते संभलते
भी नहीं संभल पाया है
नये साल की हो चुकी है
आज से शुरुआत
बस यही पता नहीं
कुछ चल पाया है
कि समझदार है बहुत
और सवाल अनसुलझे
पिछले साल के
अपने साथ में
ले कर आया है
या बेवकूफ है
‘उलूक’ तेरी
तरह का ही एक
खुद उलझने के
लिये सवालों से
नये सवालों
का न्योता
सवाल खड़े
करने वालों को
पिछले साल से ही
दे कर आया है ।

चित्र साभार: www.happynewyear2015clipart.in
   







बुधवार, 31 दिसंबर 2014

जाते जाते आने वाले को कुछ सिखाने के लिये कान में बहुत कुछ फुसफुसा गया एक साल


बहुत
कुछ बता गया 
बहुत
कुछ सिखा गया 
याद
नहीं है सब कुछ 
पर
बहुत कुछ
लिखा गया एक साल 

और
आते आते 
सामने से साफ साफ 
दिख रहा है अब

सीटी बजाता जाता हुआ एक साल 

पिछले
सालों की तरह 
हौले हौले से
जैसे मुस्कुरा कर

अपने ही 
होंठों के अन्दर अन्दर कहीं
अपने ही
हाथ का अँगूठा 
दिखा गया एक साल 

अच्छे दिन 
आने के सपने 
सपनों के सपनों में भी 

बहुत
अन्दर अन्दर तक कहीं 
घुसा गया एक साल 

असलियत 
भी बहुत ज्यादा खराब 
नहीं दिख रही है 
अच्छे अच्छे हाथों में 
एक नया साफ सुथरा 
सरकारी कोटे से थोक में खरीदे गये 
झाड़ुओं में से एक झाडू‌ 
थमा गया एक साल 

लिखने को 
इफरात से था 
बहुत कुछ खाली दिमाग में था 
शब्द चुक गये लिखते लिखते 
पढ़ने वालों की 
पढ़ने की आदत छुड़ा गया एक साल 

ब्लाग बने कई नये 
पुराने ब्लागों के पुराने पन्नों को 
थूक लगा लगा कर 
चिपका गया एक साल 

अपनी अपनी अपने घर में 
सबके घर की सब ने कह दी 

सुनने वालों को ही बहरा 
बना गया एक साल 

खुद का खाना खुद का पीना 
खुद के चुटकुल्लों पर 
खुद ही हंस कर 

बहुत कुछ 
समझने समझाने की किताबें 
खुद ही लिखकर 

अनपढ़ों को बस्ते भर भर कर 
थमा गया एक साल 

खुश रहें आबाद रहें 
हिंदू रहें मुसलमान रहें 
रहा सहा आने वाले साल में कहें 

गिले शिकवे बचे कुचे 
आने वाले साल में 
और भी अच्छी तरह से लपेटने के नये तरीके 
सिखा गया एक साल । 

चित्र साभार: shirahvollmermd.wordpress.com

रविवार, 28 दिसंबर 2014

फिसलते हुऐ पुराने साल का हाथ छोड़ा जाता नहीं है

शुरु के सालों में
होश ही नहीं था

बीच के सालों में
कभी पुराने साल
को जाते देख
अफसोस करते
और
नये साल को
आते देख
मदहोश होकर
होश खोते खोते
पता ही नहीं चला
कि
बहुत कुछ खो गया

रुपिये पैसे की
बात नहीं है
पर बहुत कुछ
से कुछ भी
नहीं होते होते
आदमी
दीवालिया हो गया

पता नहीं
समझ नहीं पाया
उस समय समझ थी
या
अब समझ खुद
नासमझ हो गई

साल के
बारहवें महीने
की अंतिम तारीख
आते समय
कुछ अजीब अजीब
सी सोच
सबकी होने लगी है
या
मेरे ही दिमाग
की हालत
कुछ ऐसी
या वैसी
हो गई है

पुराने साल
को हाथ से
फिसलते देख
अब रोना
नहीं आता है

नये साल के
आने की
कोई खुशी
नहीं होती है

हाथ में
आता हुआ
एक नया हाथ
जैसे पकड़ा
जाता नहीं है

पता होता है
तीन सौ
पैंसठ दिन
पीछे के
जाने ही थे
चले गये हैं

तीन सौ पैंसठ
आगे के आने है
आयेंगे ही शायद
आना शुरु हो गये हैं

खड़ा भी
रहना चाहो
बीच में
सालों के
बिना
इधर हुऐ
या बिना
उधर हुऐ ही
ऐसा किसी
से किया
जाता नहीं है

इक्तीस की रात
कही जा रही है
कई जमानों से
कत्ल की रात
यही राज तो
किसी के
समझ में
आता नहीं है
जिसके आ
जाता है
वो भी
समझाता नहीं है ।

चित्र साभार: community.prometheanplanet.com

शनिवार, 27 दिसंबर 2014

इक्तीस दिसम्बर इस साल नहीं आ पाये सरकार के इस फरमान का मान रखें


ख्याल रखें
नया साल इस साल  मनाने की सोच कर
अपने लिये पैदा नहीं करें कोई बबाल
तुगलक और उसके फरमानों की फेहरिस्त
लिख लिखा कर
कहीं पैंट की जेब में सँभाल रखें

इक्तीस दिसम्बर को पूजा करें
हनुमान जी का ध्यान धरें
राम नामी माला ओढ़ कर
तुलसी माला के 108 दाने
दूध में धो कर धूप में सुखाकर
जनता को कुछ नया कर दिखाने का
मन ही मन ठान रखें

बीमार नहीं होना है छुट्टी नहीं लेनी है
पीने पिलाने का कार्यक्रम करें कोई रोक नहीं है
परदा लगा कर एक मोटा
इक्तीस को छोड़ कर किसी और दिन 
अपने घर से कहीं दूर किसी और की गली में करते समय 
ध्यान से अपने चेहरे पर एक रुमाल रखें

जनता के लिये जनता के द्वारा 
जनता के बीच जनता के साथ
तुगलक के नये वर्ष की तुगलकी एक जनवरी 
साल के किसी तीसरे या चौथे महीने से शुरु करते हुऐ
उम्मीदों को खरीदने बेचने की एक
नई दुकान की नई पहल के नये फरमान का
कुछ तो मान रखें ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

धीरे से लाईन के अंदर चले जाना बस वहीं का रहता है मौसम आशिकाना

साल भी चौदहवां
दिन भी चौदहवा
दसवीं बार आ गया
फिर इस बार
दो बार और आयेगा
अब चौदहवाँ महीना
तो होता नहीं है जो
चौदाह चौदाह चौदाह
भी हो जायेगा
दिमाग लगाने की
जरूरत नहीं है
इस सब में
ये तो बस बात
शुरु करने को एक
शगूफा छोड़ना है
और जो दिमाग है
बस आज वही कुछ
यहाँ नहीं कहना है
इसलिये ऐसा
कह दिया है
नहीं तो कहने को
वैसे भी बहुत
कुछ होता है
भिखारी की फटी
झोली में तक
फिर भी कौन
नजर डालता है
अंदर कुछ नहीं
भी होता है और
बहुत कुछ
होता भी है
सड़क में लाईन
के पीछे या आगे
या बीच में कहीं भी
रहने की आदत
नहीं होने से
यही सब होता है
सब के लिये
सब कुछ सही
होते हुऐ भी
लाईन से बाहर
सड़क के किनारे से
दूर चलने वाले
की तरह काम की
बातें छूट जाती हैं
बाहर से बहुत सी
चीजें नजर आना
शुरु हो जाती हैं
अभी भी सुधर जा
सब की तरह
किसी भी बात को
बुरा मत बता
वो सब जो
हो रहा होता है
सही हो रहा होता है
क्योंकि वो
हो रहा होता है
चैन से चैन लिखने
की भी सोच
बैचेन आत्मा की
तरह खुद को मत नोच
लाईन में चला जा
कहीं से भी
कभी भी
हाँ में हाँ मिला
गाना गा पर
बस झूम बराबर
झूम तक ही
ये नहीं कि
शराबी भी हो जा
चल अब सुधर जा
सड़क होती है
चलने के लिये
किनारे के मोह से
बाहर निकल आ
लिखने को कोई
 मना नहीं कर रहा है
अंदर जा कर देख
लाईन वाला
हर कोई तेरे से
बहुत अच्छा
लिख रहा है ।

चित्र साभार: http://www.clipartof.com/