शनिवार, 21 जनवरी 2012
शुक्रवार, 20 जनवरी 2012
बहुमत
बहुमत से
जीतना
अच्छा
होता होगा
जो आज हैं
वो भी
बहुमत से हैं
जो कल होंगे
वो भी
बहुमत से
ही होंगे
बहुमत
लोग ही
बनाया
करते हैं
फिर
बहुमत पर
लोग ही
गुर्राया
करते हैं
मैं तो अपने
आस पास के
बहुमत से
परेशान हूँ
बहुमत
लोग अपनी
सुविधा से
ही बनाते
आये हैं
मेरे
आसपास
मैंंने
महसूस
किया है
बहुमत को
बहुत
नजदीकी से
लोग
लगे हैं
मट्ठा
डालने में
बहुमत से
हमसे
नाराज भी
हो जाते हैं
लोग
बहुमत के
हमने
लेकिन हमेशा
अपने को
अल्पमत में
पाया है
बहुत से
लोग
बहुमत
के साथ
अभी भी
जा रहे हैं
अपने लिये
अल्पमत
का गड्ढा
सजा रहे हैं
क्या किया
जा सकता है
कुछ नहीं
कभी नहीं
कोई नहीं
जान पायेगा
कभी
कि
बहुमत
कितनी
चालाकी से
बनाया
जाता है
गलत
बातों को
इस तरह
से सजाया
जाता है
किसी को
भी पता
नहीं चल
कभी पाता है
कि
वो जा
रहा है
बहुमत
के साथ
अपने
लिये ही
एक कब्र
तैयार
करने
के लिए
जाग जाओ
ऎसा बहुमत
मत बनाओ।
जीतना
अच्छा
होता होगा
जो आज हैं
वो भी
बहुमत से हैं
जो कल होंगे
वो भी
बहुमत से
ही होंगे
बहुमत
लोग ही
बनाया
करते हैं
फिर
बहुमत पर
लोग ही
गुर्राया
करते हैं
मैं तो अपने
आस पास के
बहुमत से
परेशान हूँ
बहुमत
लोग अपनी
सुविधा से
ही बनाते
आये हैं
मेरे
आसपास
मैंंने
महसूस
किया है
बहुमत को
बहुत
नजदीकी से
लोग
लगे हैं
मट्ठा
डालने में
बहुमत से
हमसे
नाराज भी
हो जाते हैं
लोग
बहुमत के
हमने
लेकिन हमेशा
अपने को
अल्पमत में
पाया है
बहुत से
लोग
बहुमत
के साथ
अभी भी
जा रहे हैं
अपने लिये
अल्पमत
का गड्ढा
सजा रहे हैं
क्या किया
जा सकता है
कुछ नहीं
कभी नहीं
कोई नहीं
जान पायेगा
कभी
कि
बहुमत
कितनी
चालाकी से
बनाया
जाता है
गलत
बातों को
इस तरह
से सजाया
जाता है
किसी को
भी पता
नहीं चल
कभी पाता है
कि
वो जा
रहा है
बहुमत
के साथ
अपने
लिये ही
एक कब्र
तैयार
करने
के लिए
जाग जाओ
ऎसा बहुमत
मत बनाओ।
गुरुवार, 19 जनवरी 2012
एक राजा के लम्बे कान
धन्ना नाई
की कहानी
मेरी माँ मुझे
सुनाती थी
पेट में उसके
कोई भी
बात नहीं
पच पाती थी
निकल ही
किसी तरह
कही भी
आती थी
राजा ने
बाल काटने
उसे
बुलाया था
उसके
लम्बे कान
गलती से
वो देख
आया था
बताने पर
किसी को भी
उसे मार
दिया जायेगा
ऎसा कह कर
उसे धमकाया था
पर बेचारा
आदत का मारा
निगल
नहीं पाया था
एक
पेड़ के
ठूँठ के सामने
सब उगल
आया था
पेड़ की
लकड़ी का
तबला कभी
किसी ने
बना के
बजाया था
उसकी
आवाज में
राजा का
भेद भी
निकल
आया था
मेरी
आदत भी
उस नाई
की तरह ही
हो जाती है
अपने
आस पास
के सच
देख कर
भड़क जाती है
रोज तौबा
करता हूँ
कहीं
किसी को
कुछ नहीं
बताउंगा
सभी तो
कर रहे हैं
करने दो
मैं कौन सा
कद्दू में तीर
मार ले जाउंगा
उस समय
मैं अपने को
सबसे अलग सा
देखने लग जाता हूँ
सारे लोग
बहुत सही
लगते हैं
और
मैं अकेला
जोकर हो जाता हूँ
एक राजा के
दो लम्बे कान
तो बहुत
पुराने हो गये
कहानी सुने भी
मुझे अपनी माँ से
जमाने हो गये
आज रोज
एक राजा
देख के
आता हूँ
उसके लम्बे
कानों को
भी हाथ
लगाता हूँ
वहाँ कोई
किसी को
भाव नहीं देता
जान जाता हूँ
फिर रोज
धन्ना नाई
की तरह
कसम खाता हूँ
पर यहाँ
आ कर तो
हल्ला मचाने में
बहुत मजा आता है
लगता है
नक्कार खाने मे
तूती बजाने
जैसे कोई जाता है
देखना ये है
कि इस ठूंठ का
कोई कैसे
तबला बना पाता है
फिर
मेरे राजाओं
के लम्बे लम्बे
कानों की खबर
इकट्ठा कर
उनके कान भरने
चला जाता है?
चित्र साभार: Fresh Korean
की कहानी
मेरी माँ मुझे
सुनाती थी
पेट में उसके
कोई भी
बात नहीं
पच पाती थी
निकल ही
किसी तरह
कही भी
आती थी
राजा ने
बाल काटने
उसे
बुलाया था
उसके
लम्बे कान
गलती से
वो देख
आया था
बताने पर
किसी को भी
उसे मार
दिया जायेगा
ऎसा कह कर
उसे धमकाया था
पर बेचारा
आदत का मारा
निगल
नहीं पाया था
एक
पेड़ के
ठूँठ के सामने
सब उगल
आया था
पेड़ की
लकड़ी का
तबला कभी
किसी ने
बना के
बजाया था
उसकी
आवाज में
राजा का
भेद भी
निकल
आया था
मेरी
आदत भी
उस नाई
की तरह ही
हो जाती है
अपने
आस पास
के सच
देख कर
भड़क जाती है
रोज तौबा
करता हूँ
कहीं
किसी को
कुछ नहीं
बताउंगा
सभी तो
कर रहे हैं
करने दो
मैं कौन सा
कद्दू में तीर
मार ले जाउंगा
उस समय
मैं अपने को
सबसे अलग सा
देखने लग जाता हूँ
सारे लोग
बहुत सही
लगते हैं
और
मैं अकेला
जोकर हो जाता हूँ
एक राजा के
दो लम्बे कान
तो बहुत
पुराने हो गये
कहानी सुने भी
मुझे अपनी माँ से
जमाने हो गये
आज रोज
एक राजा
देख के
आता हूँ
उसके लम्बे
कानों को
भी हाथ
लगाता हूँ
वहाँ कोई
किसी को
भाव नहीं देता
जान जाता हूँ
फिर रोज
धन्ना नाई
की तरह
कसम खाता हूँ
पर यहाँ
आ कर तो
हल्ला मचाने में
बहुत मजा आता है
लगता है
नक्कार खाने मे
तूती बजाने
जैसे कोई जाता है
देखना ये है
कि इस ठूंठ का
कोई कैसे
तबला बना पाता है
फिर
मेरे राजाओं
के लम्बे लम्बे
कानों की खबर
इकट्ठा कर
उनके कान भरने
चला जाता है?
चित्र साभार: Fresh Korean
बुधवार, 18 जनवरी 2012
आशा है
समय के साथ
कितने माहिर
हो जाते हैं हम
चोरी घर में
यूँ ही
रोज का रोज
करते चले
जाते हैं हम
दिल्ली में चोर
बहुत हो गये हैं
जागते रहो
की आवाज भी
बड़ी होशियारी से
लगाते हैं हम
बहुत सारे चोर
मिलकर बगल
के घर में लगा
डालते हैं सेंघ
पर कभी कभी
पड़ोस में ही
होकर हाथ मलते
रह जाते हैं हम
चलो चोरी में
ना मिले हिस्सा
कोई बात नहीं
बंट जायेगा चोरी
का सामान कल
कुछ लोगों में जो
हमारे सांथ नहीं
फिर भी आशा
रखूंगा नहीं
घबराउंगा
बड़े चोर पर ही
अपना दांव
लगाउंगा
आज कुछ भी
हाथ नहीं
आया तो भी
बिल्कुल नहीं
पछताउंगा
कभी तो बिल्ली
के भाग से
छींका जरुर
टूटेगा और
मैं भी अपनी
औकात से
ज्यादा लपक के
ले ही आउंगा।
कितने माहिर
हो जाते हैं हम
चोरी घर में
यूँ ही
रोज का रोज
करते चले
जाते हैं हम
दिल्ली में चोर
बहुत हो गये हैं
जागते रहो
की आवाज भी
बड़ी होशियारी से
लगाते हैं हम
बहुत सारे चोर
मिलकर बगल
के घर में लगा
डालते हैं सेंघ
पर कभी कभी
पड़ोस में ही
होकर हाथ मलते
रह जाते हैं हम
चलो चोरी में
ना मिले हिस्सा
कोई बात नहीं
बंट जायेगा चोरी
का सामान कल
कुछ लोगों में जो
हमारे सांथ नहीं
फिर भी आशा
रखूंगा नहीं
घबराउंगा
बड़े चोर पर ही
अपना दांव
लगाउंगा
आज कुछ भी
हाथ नहीं
आया तो भी
बिल्कुल नहीं
पछताउंगा
कभी तो बिल्ली
के भाग से
छींका जरुर
टूटेगा और
मैं भी अपनी
औकात से
ज्यादा लपक के
ले ही आउंगा।
सोमवार, 16 जनवरी 2012
काले कौआ
कौऔं को बुलाने का
सुबह बहुत सुबह
हल्ला मचाने का
रस्में निभाने का
क्रम आज भी जारी है
कौऔं का याद आना
मास के अंतिम दिन का
मसांति कहलाना
जिस दिन का होता है
भात दाल बचाना
संक्रांति के दिन के
उरद के बड़े सहित
पकवान बनाना
दूसरे दिन सुबह
पकवानों की माला
गले में लटकाना
फिर चिल्ला चिल्ला
के कौऔ को बुलाना
"काले काले घुघुति माला खाले"
दादा जी के जमाने थे
वो भी रस्में निभाते थे
सांथ छत पर आते थे
काले काले भी
हमारे सांथ चिल्लाते थे
देखे थे मैने तब कौऎ आते
जब भी थे उनको हम बुलाते
वो थे आते घुघुती खाते
फिर थे उड़ जाते
समय के सांथ
परिवर्तन हैं आये
कौऔ ने सांथ
हमारे नहीं निभाये
कौऔ को बुलाना
और उनका आना
इतिहास सा हो गया
कौआ पता नहीं
कहाँ है खो गया
कल को फिर हम
सुबह सुबह चिल्लायेंगे
कौऎ शायद इस बार भी
नहीं आ पायेंगे
लगता है कौऔं के
यहा चुनाव अब नहीं
हो पाते हैं
इस लिये वो जरूरी
नहीं समझते होंगे
और इसीलिये अब
वो हमसे मिलने
पकवान निगलने
शायद नहीं आते हैं।
सुबह बहुत सुबह
हल्ला मचाने का
रस्में निभाने का
क्रम आज भी जारी है
कौऔं का याद आना
मास के अंतिम दिन का
मसांति कहलाना
जिस दिन का होता है
भात दाल बचाना
संक्रांति के दिन के
उरद के बड़े सहित
पकवान बनाना
दूसरे दिन सुबह
पकवानों की माला
गले में लटकाना
फिर चिल्ला चिल्ला
के कौऔ को बुलाना
"काले काले घुघुति माला खाले"
दादा जी के जमाने थे
वो भी रस्में निभाते थे
सांथ छत पर आते थे
काले काले भी
हमारे सांथ चिल्लाते थे
देखे थे मैने तब कौऎ आते
जब भी थे उनको हम बुलाते
वो थे आते घुघुती खाते
फिर थे उड़ जाते
समय के सांथ
परिवर्तन हैं आये
कौऔ ने सांथ
हमारे नहीं निभाये
कौऔ को बुलाना
और उनका आना
इतिहास सा हो गया
कौआ पता नहीं
कहाँ है खो गया
कल को फिर हम
सुबह सुबह चिल्लायेंगे
कौऎ शायद इस बार भी
नहीं आ पायेंगे
लगता है कौऔं के
यहा चुनाव अब नहीं
हो पाते हैं
इस लिये वो जरूरी
नहीं समझते होंगे
और इसीलिये अब
वो हमसे मिलने
पकवान निगलने
शायद नहीं आते हैं।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)