उलूक टाइम्स: चोर
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शनिवार, 25 मई 2024

रोज एक ना सही कभी तो कर पर कर बकवास दो चार


चोर डाकू उठाईगीर झपटमार गप्पमार या तडीपार
हो ले इनमें से कोई भी एक किस्मत लगा अपनी पार

 नैया पार लगाने में बस ये ही सब तो होते हैं मददगार
सबका साथ सबका विकास बहुत ही जरूरी है यार

 क्यों अटका रहता है तू भी कभी एक तो झटका मार
घर पर रह कर लिख गली में जा कर कभी झाडू मार

 शहर की खबरों को गोली मार सीख भी जा ना तडीपार
बगल में रखा कर सुबह का एक ताजा कोई अखबार

 मुंह में रख पान का बीड़ा जपा कर राम रोज कई हजार
ज़माना समझ नहीं पाया तू रहने दे तेरे बस का नहीं प्रचार

 वोट देने जाना  जरूर बटन दबाना पर्ची देखना है बेकार
पता है सबको सब कुछ क्या आना है काहे करना है रे इंतज़ार

 सबकी अपनी ढपली सबके अपने राग तू भी गा ले मल्हार
लिख कर पढ़ पढ़ कर लिख सीख कर बना उत्तम अचार

 ‘उलूक’ नारद नहीं नारायण नहीं भज ले कोई व्यापार
रोज एक ना सही कभी तो कर पर कर बकवास दो चार |

चित्र साभार:
https://www.quora.com/

सोमवार, 8 अप्रैल 2024

‘उलूक’ थे और वो थे बस कुछ बेवकूफों में गिने जाते थे मगर मशहूर थे

 

किताबें तो एक सी थी लिखा भी एक सा था
शायद पढ़ाने वाले ही कुछ और थे
लिखे हुए पन्नो पर हस्ताक्षर थे एक समय के ही थे
घड़ी पहने लोग कोई और थे

सिहासन नहीं था कहीं भी ना ही था राजा कहीं
समझाने वाले थे मगर कहीं और थे
समझ अपनी थी अपनी उनकी समझ उनकी ही थी
और थे कुछ चोर मगर चोर थे

हम भी देखते थे चोर थे वो भी देखते थे चोर थे
चोर ही थे मगर जो सच में चोर थे
चोर कहाँ चोर होते थे जहां सब तरफ सुने थे बस मोर थे
मोर थे हर तरफ बस मोर थे

चोर थे ही जरूरत बन चुकी थी इस तरफ थे बेकार थे
उस तरफ आये इक शोर थे
चोर होना ही जरूरी था जो नहीं हो पा रहे थे
सच में बेचारे थे बहुत ही कमजोर थे

चोर होना था यही सन्देश होना था मशहूर होना था
नहीं कहना था बस मजबूर थे
‘उलूक’ की किताबें थीं बंद थीं दिमाग था मगर बस था
वो कुछ  बेवकूफों में गिने जाते थे मगर मशहूर थे |

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

रविवार, 8 अक्टूबर 2023

मैं ही बस बिजूरवा रहूँगा कुछ और हो नहीं रहा हूँ

 

सितम्बर २०२३ तक  "उलूक टाइम्स" के साठ लाख पृष्ठ दृश्य के लिए पाठकों का आभार
चूहों की दौड़ के बीच में कहीं है
वो ही एक चूहा नहीं है
बस मैं ही कुछ हो नहीं रहा हूँ

नकाब चूहे का है मान लिया है उसने
किसी को छूआ नहीं है
मैं ही बस कुछ उनींदा हूँ सो नहीं रहा हूँ

सबकी दुआओं में रहता है
अहसास कभी हुआ नहीं है
बस एक  मैं ही हूँ जो खो नहीं रहा हूँ

घेर कर रखना चाह रहे हैं बंधुआ नहीं है
मैं ही हूँ बस बाहर हूँ और रो नहीं रहा हूँ

सही गलत कुछ भी लिखना जुआ नहीं है
बस एक मैं ही
ताश के पत्तों का जोकर हो नहीं रहा हूँ

नहीं भी है तब भी
ना लिखिए कहीं भी एक कुंआ नहीं है
बौछार लिख दीजिये
मैं ही बस बादल हो नहीं  रहा हूँ
 
सब जिम्मेदार हैं सब ईमानदार है
बस पूछिए वही जो हुआ नहीं है
मैं अभी हूँ यहीं कहीं हूँ
खो नहीं रहा हूँ

सब इज्जतदार हैं डरिये नहीं
मामा है कहीं बुआ नहीं
 है कहीं
ताऊ बन गया है यहीं
मैं ही बस इंसान हो नहीं रहा हूँ

खोज रहा हूँ
शायद कोई जाग रहा हो
 
मैं एक ही हूँ बस जो ढो नहीं रहा हूँ

किताब में
दो और दो चार बताया गया है
  
बस मैं ही नहीं और भी हैं
जो कहें
आठ होने की बाट जोह नहीं रहा हूँ

खबर अखबार में है एक मैं ही  सो रहा हूँ
सारे सोये हुओं ने दस्तखत किये हैं
मैं ही बस कह रहा हूँ रो नहीं रहा हूँ

अखबार छापता है खबर
जो दुधारू खबरी उसे देता है
खबरी ने सबूत दिए हैं
बस एक मैं ही कोई खबर बो नहीं रहा हूँ

ईमानदार शब्दकोष का  एक शब्द है
 सारे चोर
 ईमानदार है मुझे भी होना है कुछ
बस मैं ही यूं ही हो नहीं रहा हूँ

सभी
  कौए
पंख फैला कर मोर हो गए हैं
नाचना मुझे भी है आँगन टेढ़े हैं
मैं ही बस बिजूरवा रहूँगा
कुछ और हो नहीं रहा हूँ

हर कोई
लटका कर घूम रहा है 
गले में ताबीज किस्मत का अपनी
किसी एक रंग का
मैं ही बस काला रहूँ
अच्छा है खुश
 हो नहीं रहा हूँ

गेरुआ है सफ़ेद है हरा है तिरंगे में
खून का रंग लाल है सींचना है बागवां
  है
‘उलूक’ बकबकी कहे
अभी तो चुप हो नहीं रहा हूँ


चित्र साभार:  https://www.freepik.com/

सोमवार, 18 जनवरी 2021

एक चोर का डैमेज कंट्रोल वाह वाही चाहता है अखबार उसकी एक पुरानी खबर के बाद बस चुप हो जाता है

 


बहुत
हो गया है

कूड़ा
हो ही जाता है
कूड़े का डिब्बा
गले गले तक भर जाता है

होना
कुछ नहीं होता है
पता होता है

फुसफुसाने में
सब खो जाता है

बड़ी खबर
किसने कह दिया
आपके सोचने से होगी

आदमी
देख कर
खबर का खाँचा
बनाया जाता है

प्रश्न
प्रश्न होता है
क्या होता है
अगर किसी को
बता दिया जाता है

किसने बताया
किसको बताया
किसलिये पूछना चाहता है

जहाँ
कुछ नहीं होना होता है

वहाँ
एक कबूतर
हवा में उड़ा दिया जाता है

सजा
जरूरी होती है
मिलती भी है उसे

जिसको
पूछने की आदत के लिये
तमगा कभी दिया जाता है

शरीफ और नंगे
का अंतर
बहुत बारीक है

जमाना
किसे आगे देखना चाहता है

अभी अभी
देख कर उड़ा है
‘उलूक’
कुछ मुँह छुपा कर अपना

जो हुआ है
सब को पता है
जीत किसकी हुई
चोर चोर मौसेरे
घूँम रहे हैं खुले आम

एक शरीफ
अपना मुँह चुल्लू में डुबाना चाहता है ।

चित्र साभार: http://www.onlineaudiostories.com/

गुरुवार, 13 जून 2019

अपने अपने मतलब अपनी अपनी खबरें अपना अपना अखबार होता है बाकी बच गया इस सब से वो समाचार होता है

कागज
पर लिखा

जमीन का
कुछ भी

उसके लिये
बेकार होता है

चाँद तारों
पर जमा जमाया

जिसका
कारोबार होता है

दुनियाँ
जहाँ पर
नजर रखता है

बहुत ज्यादा
समझदार होता है

घर की
मोहल्ले की बातें

छोटे लोगों का
रोजगार होता है

बेमतलब
कुछ भी
कह डालिये

तुरंत
पकड़ लेता है
कलाकार होता है

मतलब
की छान

बचा
लौटा देता है

जितने
से उसका
सरोकार होता है

भीड़
के शोर का
फर्क नहीं पड़ता है

चुगलखोर
आदत से
लाचार होता है

दिख
नहीं रहा है

कुछ कह
नहीं रहा है

का मतलब

सुधर जाने
का संकेत
नहीं होता है

ऊपर नीचे
होता हुआ
बाजार होता है

गिरोह
यूँ ही नहीं
बनता है
एक जैसों का

चोर
का साथी
गिरहकट जैसी

पुरानी
कहावत के लिये

पुराना सरदार
जिम्मेदार होता है

तकनीक
का जमाना है

हाथ
साफ होते हैं

कोयले का
व्यापार होता है

‘उलूक’
की खींसे
होती नहीं हैं

क्या निपोरे

चुगलखोरी
की अपनी
आदत से

बस
लाचार होता है ।

चित्र साभार: apps.apple.com

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

बधाई हो गुफा के दरवाजे खोल लेने के लिये अलीबाबा को सिम सिम वाली सिम सम्भाल कर रखें जल्दी ही फिर से काम आयेगी

तैयार
हो जाइये
खबर आई है

अलीबाबा की
मेहनत रंग लायी है

गुफा
खुल गयी है

अशर्फियाँ

दिखने लगी हैं
मतलब मिल गयी हैं


चालीस
चोरों का
पता नहीं
चल पा रहा है

खबर के
चलने के
बाद से ही
उनका
सरदार भी
मुँह छुपा रहा है

जल्दी ही
तराजुओं की
दुकानें खुलना
शुरु हो जायेंगी

तली में
गोंद लगाने की
जरूरत नहीं पड़ेगी

अशर्फियाँ
खुद ही आ आ
कर चिपक जायेंगी

मरजीना के
खुद के नाचने
का जमाना
अब रहा नहीं

इशारे
भर से उसके

नाचने
वालोंं की
लम्बी लाईनें
अपने आप
लगना शुरु
हो जायेंगी

बस
जरूरत है
महसूस करने की

एक
छोटी सी
गुफा को
खोल ले जाने के
छोटे छोटे
खुल जा सिम सिम को

यही मंत्र है
यही तंत्र है
हर बार
यही वाली सिम

सिम सिम की
काम में आयेंगी

जरूरत है
समझने की
ऐसी ही
छोटी छोटी गुफाएं

किस तरह बस
कुछ ही बचे महीनों में
बड़ी एक गुफा के
दरवाजे तक
पूरे देश को ले जायेंगी

फिर शुरु होगा

अलीबाबा का खेल

फिर से
सिम सिम
कहते ही
अशर्फियाँ दिखना
शुरु हो जायेंगी

लोग
करना शुरु
हो जायेंगे साफ
अपने अपने तराजू

अशर्फियों
के सपने
पुराने सालों के

फिर से हरे
हो जायेंगे

ढोल नगाड़े
पठाखे के
शोर के बीच

‘उलूक’
सोचना
शुरु कर देगा
कुछ नयी
बकवासों
के शीर्षक

अगले
पाँच सालों में
शायद उसकी
बकवासों की
घड़ी की सुई

क्या पता
उसके लिये
पच्चीस छब्बीस
सताईस बजाना
शुरु हो जायेगी।

चित्र साभार: http://www.ssdsnassau.org

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

थोड़े से शब्दों से पहचान हो जाना, बहुत बुरा होता है ‘उलूक’, कवि की पहचान हो कर बदनाम हो जाना

हर गधे के पास एक कहानी होती है 'उलूक'

कल फिर
कविता से
मुलाकात
हो पड़ी

बीच
रास्ते में
पता नहीं
रास्ता रोककर

ना जाने
क्यों
हो रही थी खड़ी

हमेशा ही
कविता से
बचना चाहता हूँ

फिर भी
पता नहीं

कहाँ
जा कर

किस
खराब
घड़ी में

उसी के
आगे पीछे
अगल बगल
कहीं

अपने को
उलझन में
खड़ा पाता हूँ

समझाते
समझाते
थक जाता हूँ
कवि नहीं हूँ

बस
थोड़ा बहुत
लिखना पढ़ना
कर ले जाता हूँ

सीधे सीधे
भड़ास निकालना
ठीक नहीं होता है

चोर के मुँह
चोर चोर कहकर
नहीं लिपट पाता हूँ

डरना भी
बहुत जरूरी है
सरदारों से भी
और उनके
गिरोहों से भी

नये
जमाने के

इज्जतदारों से

किसी तरह

अलग रहकर

अपनी
इज्जत

लुटने से
बचाता हूँ


बख्श
क्यों नहीं
देते होंगे

कवि
और
उनकी
कविताएं

कुछ एक
शब्दों के
अनाड़ी
खिलाड़ियों को

टूट जाते हैं
जिनसे भूलवश

कुल्हड़
भावनाओं
के यूँ ही
बेखुदी
में कभी
करते हुऐ
बेफजूल
इशारों को

पचने में
सरल सी
बातों से होती
बदहजमी को
जरा सा भी
समझ नहीं
पाता हूँ

कविताओं
की भीड़ से

दूर से ही

बस
उनसे नजरें
मिलाना
चाहता हूँ

कविता
अच्छी लगती है

पढ़ भी
ली जाती है

कभी कभी
थोड़ा बहुत
समझ में भी
आ जाती है

मजबूरियाँ
नासमझी की

बड़ी बड़ी
उलझी हुई 
लटें भी
सुलझा
कर कभी

आश्चर्यचकित

भी कर जाती हैं

पता नहीं
‘उलूक’
की
आड़ी तिरछी
लकीरें
बेशरम सी

क्यों
जान बूझ कर
कविताओं
की भीड़ में
जा जाकर
फिर फिर
खड़ी
हो जाती हैं

बहुत
असहज
महसूस
होने लगता है

ऐसे ही में
जब
एक कविता

सड़क
के बीच
खड़ी होकर
कुछ
रहस्यमयी
मुस्कुराहट
के साथ

कवि और
कविताओं
के बहाने

तबीयत
के बारे में
पूछना शुरु
हो जाती है । 


चित्र साभार:
http://www.poetrydonkey.com/

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

परिभाषायें बदल देनी चाहिये अब चोर को शरीफ कह कर एक ईमानदार को लात देनी चाहिये

सारे
शरीफ हैं

और

एक भीड़
हो गयी है

शरीफों की

तू
नहीं है
उसमें

और
तुझे
अफसोस
भी नहीं
होना चाहिये

किसलिये
होना है
होना ही
नहीं चाहिये

किसलिये
लपेट कर
बैठा है

कुछ कपड़े

ये
सोच कर


ढक लेंगे
सारा सब कुछ

नंगों का
कुछ नहीं
होना है

नंगा
भगवान होता है

होना भी चाहिये

एक
मन्दिर में

मन्दिर
वालों के
पाले हुऐ

कुछ
कबूतरों ने
बर्थडे
केक काटा

जन्मदिन
होता है
होना है

होना भी चाहिये

मन्दिर
प्राँगण में
शोर मचाया

कुछ
लोगों
ने देखा 

कुछ
बुदबुदाया

और 
इधर उधर
हो गये
उनमें
मैं भी एक था

आप मत मुस्कुराइये

लिखने
लिखाने से 
कभी कुछ
हुआ है क्या 

जो अब होना चाहिये

हिम्मत
होती ही
नहीं है 
नंगई
लिखने की

नंगों के
बीच में
रहते हैं
 शराफत से
कुछ नंगे

शरीफ
भी कुछ
हम जैसे

शराफत से
नंगई
छिपाते हुऐ

कुछ
कहना है

कुछ नहीं
कहना है

कहना भी नहीं चाहिये

सारा
सब कुछ
लिख भी
दिया जाये

तो भी क्या होना है

सबने
अपनी अपनी
औकात का रोना है

लिखना पढ़ना
पढ़ना लिखना

दो चारों के बीच
ही तो होना है

घर घर में
लगे हैं
ग़णेश जी के चूहे

उन्होने ही
सारा
सब कुछ
खोद देना है

‘उलूक’
गिरते
मकान को
छोड़ने की
सोचने से पहले

गणेश
की भी
और
उसके
चूहों की भी

जय जयकार
करते हुऐ

अब सबको रोना है

रोना भी चाहिये।

चित्र साभार: http://paberish.me/clip-art-of-owl-on-book/clip-art-of-owl-on-book-read-birthday-cake-ideas

मंगलवार, 31 जुलाई 2018

गुलामी आजाद कर रहे हैं ये तो मनमानी है आओ किसी की पाली हुयी एक ढोर हो जायें

दूर करें
अकेलापन
बहुत
आसानी से

किसी भी
भीड़ में एक
कहीं घुसकर
खो जायें

आओ
एक चोर हो जायें

मुश्किल है
बचाना
सोच को अपनी
बहुत दिनों तक

क्या परेशानी है

आओ
जंगल में
नाचता हुआ
एक मोर हो जायें

कारवाँ
भटकने
लगे हैं रास्ते

पहुचने की
किसने ठानी है

खोने का डर
निकालें दिल से

आओ
निडर होकर

किसी गिरोह
को जोड़ने की
एक डोर हो जायें

सच रखे हैं
सबने अपने
अपनी जेब में

कौन सा
बे‌ईमानी है

बहुमत
की मानें
इतने सारे
एक से हैं

आओ
एक और हो जायें

पाठ्यक्रम
सारे बदल गये हैं
किताबें सब पुरानी हैं

‘उलूक’ की
बकबक में
दिमाग ना लगायें

आओ
किसी की
पाली हुयी
एक ढोर हो जायें।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

खेल भावना से देख चोर सिपाही के खेल

वर्षों से
एक साथ
एक जगह
पर रह
रहे होते हैं

लड़ते दिख
रहे होते हैं
झगड़ते दिख
रहे होते हैं

कोई गुनाह
नहीं होता है
लोग अगर
चोर सिपाही
खेल रहे होते हैं

चोर
खेलने वाले
चोर नहीं हो
रहे होते हैं
और
सिपाही
खेलने वाले भी
सिपाही नहीं
हो रहे होते हैं

देखने वाले
नहीं देख
रहे होते हैं
अपनी आँखें

शुरु से
अंत तक
एक ही लेंस से
उसी चीज को
बार बार

अलग अलग
रोज रोज
सालों साल
पाँच साल

कई बार
अपने ही
एंगल से
देख रहे
होते हैं

खेल खेल में
चोर अगर कभी
सिपाही सिपाही
खेल रहे होते है

ये नहीं समझ
लेना चाहिये
जैसे चोर
सिपाही की
जगह भर्ती
हो रहे होते हैं

खेल में ही
सिपाही चोर
को चोर चोर
कह रहे होते है

खेल में ही
चोर कभी चोर
कभी सिपाही
हो रहे होते हैं

खबर चोरों के
सिपाहियों में
भर्ती हो जाने
की अखबार
में पढ़कर

फिर
किस लिये
‘उलूक’
तेरे कान
लाल और
खड़े हो
रहे होते हैं

खेल भावना
से देख
खेलों को
और समझ
रावणों में ही
असली
रामों के
दर्शन किसे
क्यों और कब
हो रहे होते हैं

ये सब खेलों
की मायाएं
होती हैं

देखने सुनने
पर न जा
खेलने वालों
के बीच और
कुछ नहीं
होता है
खेल ही हो
रहे होते हैं ।

चित्र साभार: bechdo.in

गुरुवार, 12 जनवरी 2017

ताजी खबर है देश के एन जी ओ ऑडिट नहीं करवाते हैं

चोर सिपाही
खेल
खेलते खेलते
समझ में
आना शुरु
हो जाते हैं

चोर भी
सिपाही भी
थाना और
कोतवाल भी

समझ में
आ जाना
और
समझ में
आ जाने
का भ्रम
हो जाना
ये अलग
अलग
पहलू हैं

इस पर
अभी चलो
नहीं जाते हैं

मान लेते हैं
सरल बातें
सरल
होती हैं

सब ही
सारी बातें
खास कर
खेल
की बातें
खेलते
खेलते ही
बहुत अच्छी
तरह से
सीख ले
जाते हैं

खेलते
खेलते
सब ही
बड़े होते हैं
होते चले
जाते हैं

चोर
चोर ही
हो पाते हैं
सिपाही
थाने में ही
पाये जाते हैं

कोतवाल
कोतवाल
ही होता है

सैंया भये
कोतवाल
जैसे मुहावरे
भी चलते हैं
चलने भी
चाहिये

कोतवाल
लोगों के भी
घर होते हैं
बीबियाँ
होती हैं
जोरू का
गुलाम भी
बहुत से लोग
खुशी खुशी
होना चाहते हैं

पता नहीं
कहाँ से
कहाँ पहुँच
जाता है
‘उलूक’ भी
लिखते लिखते

सुनकर
एक
छोटी सी
सरकारी
खबर
कि
देश के
लाखों
एन जी ओ
सरकार का
पैसा लेकर
रफू चक्कर
हो जाते हैं

पता नहीं
लोग
परिपक्व
क्यों
नहीं हो
पाते हैं

समझ में
आना
चाहिये

बड़े
होते होते
खेल खेल में
चोर भी चोर
पकड़ना
सीख जाते हैं

ना थाने
जाते हैं
ना कोतवाल
को बुलाते हैं
सरकार से
शुरु होकर
सरकार के
हाथों
से लेकर
सरकार के
काम
करते करते
सरकारी
हो जाते हैं ।

चित्र साभार: Emaze

सोमवार, 9 नवंबर 2015

जब पकाना ही हो तो पूरा पकाना चाहिये बातों की बातों में बात को मिलाना आना चाहिये

अब
चोर होना
अलग बात है

ईमानदार होना
अलग बात है

चोर का
ईमानदार होना
अलग बात है

चोरी करने
के लिये
कुछ सामने
से होना
अलग बात है

बिना कुछ
उठाये
छिपाये भी
चोरी हो जाना
अलग बात है

कहने का
मतलब
ऐसे तो कुछ
भी नहीं है
पर
वैसे कहो
तो कुछ है
और
नहीं भी है

बात कहने में
क्या जाता है
बातें बताना
अलग बात है
बातें बनाना
अलग बात है

जैसे बात
दिशा बताने
की हो तो भी
बिल्कुल
जरूरी नहीं है
दिशा का ज्ञान हो

बच्चे का
चेहरा हो
शरीर
जवान हो
अधेड़ की
सोच हो
बुढ़ापे की
झुर्रियों
के पहले
से ही छिपे
हुऐ निशान हो

इसकी जीत में
उसकी हार हो
किसी के लिये
हार और जीत
दोनो बेकार हों

समय के
निशानों पर
छिपाये
निशान हों

जन्मदिन हो
जश्न हो
शहर हो
प्रदेश हो
ईमानदार
का ईमान हो
झूठ बस
बे‌ईमान हो

ईमानदारी
पर भाषण हो
झूठ का
सच हो
सच का
झूठ हो
शासन का
राशन हो
योगा का
आसन हो
बात का
बात से
बात पर
प्रहार हो
मुस्कुराता

अंदर
ही अंदर
अंदर का
व्यभिचार हो

पर्दा खुला
रहने रहने
तक तो
कम से कम
नाटक हो
और
जोरदार हो ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

औरों के जैसे देख कर आँख बंद करना नहीं सीखेगा किसी दिन जरूर पछतायेगा

थोड़ा
कुछ सोच कर
थोड़ा
कुछ विचार कर

लिखेगा तो

शायद
कुछ अच्छा
कभी लिख
लिया जायेगा

गद्य हो
या पद्य हो
पढ़ने वाले
के शायद

कुछ कभी
समझ में
आ ही जायेगा

लेखक
या कवि
ना भी कहा गया

कुछ
लिखता है
तो कम से कम
कह ही दिया जायेगा

देखे गये
तमाशे को
लिखने पर

कैसे
सोच लेता है

कोई
तमाशबीन
आ कर
अपने ही
तमाशे पर
ताली जोर से
बजायेगा

जितना
समझने की
कोशिश करेगा
किसी सीधी चीज को

उतना
उसका उल्टा
सीधा नजर आयेगा

अपने
हिसाब से
दिखता है
अपने सामने
का तमाशा
हर किसी को

तेरे
चोर चोर
चिल्लाने से
कोई थानेदार
दौड़ कर
नहीं चला आयेगा

आ भी गया
गलती से
किसी दिन
कोई भूला भटका

चोरों के
साथ बैठ
चाय पी जायेगा

बहुत ज्यादा
उछल कूद
करेगा ‘उलूक’
इस तरह से हमेशा

लिखना
लिखाना
सारा का सारा
धरा का धरा
रह जायेगा

किसी दिन
चोरों की रपट
और गवाही पर
अंदर भी कर
दिया जायेगा

सोच
कर लिखेगा

समझ
कर लिखेगा

वाह वाह
भी होगी

कभी
चोरों का
सरदार

इनामी
टोपी भी
पहनायेगा । 


चित्र साभार: keratoconusgb.com

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

चोर है बस चोर है चारों ओर चोर है और चोर है

जमाना चोरों का है
कुछ इधर चोर
कुछ उधर चोर
लड़ाई है
होती है
दिखती भी है
हो रही है
चोरों की लड़ाई
चोरों के बीच
तू भी चोर
और मैं भी चोर
इधर भी चोर
उधर भी चोर
कुर्सी में बैठा
एक बड़ा चोर
घिरा हुआ
चारों ओर से
सारे के सारे चोर
तू भी चोर
और मैं भी चोर
घर घर में चोर
बाजार में चोर
स्कूल में चोर
अखबार के सारे
समाचार में चोर
चोर चोर
चारों ओर चोर
हड़ताल करते
हुऐ चोर
कुछ छोटे से चोर
बताते हुऐ चोर
मनाते हुऐ चोर
कुछ बड़े बड़े चोर
अंदाज कैसे आये
किसलिये खड़ा है
एक बड़े चोर के
सामने एक
छोटा सा चोर
सच बस यही है
चोर है चोर है
चोर के सामने
है एक चोर
एक दूसरा चोर
चोर चोर सारे
के सारे चोर
तू भी चोर
मैं भी चोर
कोई छोटा चोर

कोई बड़ा चोर । 


चित्र साभार: www.clipartsheep.com

सोमवार, 29 जून 2015

चोर की देश भक्ति से भाई कौन परेशान होता है

चोर हो तो 
होने से भी
क्या होता है
देश भक्ति
की पाँत में

तो सबसे आगे 

ही खड़ा होता है 

देश भक्ति अलग
एक बात होती है
चोरी करने के
साथ और नहीं
करने के भी
साथ होती है
एक देश भक्त
पूरा ही पर खाली
भगत होता है
एक देश भक्त
होने के साथ साथ
चोर भी छोटा सा
या बहुत बड़ा
भी कोई होता है
समझना देश को
फिर भक्ति को
चोरी चकारी के
साथ होना गजब
और बहुत ही
गजब होता है
संविधान उदार
देश का बहुत ही
उदार होता है
चोर जेल में रहे
या ना रहे
देश का भगत
होने से कुछ भी
कहीं भी कुछ
कम नहीं होता है
क्यों नहीं समझता
है कोई कितना ढेर
सारा काम होता है
सुबह से लेकर
शाम तक कहाँ
आराम होता है
देशभक्ति के
साथ साथ चोरी
चकारी भी कर
ले जाना बस में
सबके नहीं होता है
‘उलूक’ शर्म होनी
चाहिये उसे जो
ना भगत होता है
ना चोर होता है
खाली रोज जिस
नक्कारे के हाथ में
दूसरों को चाटने
के वास्ते काला
रंग भरा हुआ बस
एक कलम होता है
ऐसे ही कुछ देश
भक्तों की खाली
भक्ति के कारण
ही सारा देश
बदनाम होता है ।

चित्र साभार: anmolvachan.in

शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

जो जैसा था वैसा ही निकला था गलती सोचने वाले की थी उसकी सोच का पैर अपने आप ही फिसला था


भीड़ वही थी 
चेहरे वही थे कुछ खास नहीं बदला था

एक दिन
इसी भीड़ के बीच से निकल कर
उसने उसको 
सरे आम एक चोर बोला था
सबने
उसे कहते हुऐ देखा और सुना था

उसके लिये
उसे इस तरह से 
ऐसा कहना सुन कर बहुत बुरा लगा था

कुछ
किया विया तो नहीं था
बस
उस कहने वाले से किनारा कर लिया था

पता ही नहीं था
हर घटना की तरह इस घटना से भी
जिंदगी का एक नया सबक नासमझी का
एक बार फिर से सीखना था

सूरज को हमेशा
उसी तरह सुबह पूरब से ही निकलना था
चाँद को भी हमेशा पश्चिम में जा कर ही डूबना था

भीड़ के बनाये
उसके अपने नियमों का
हमेशा की तरह कुछ नहीं होना था
काम निकलवाने के क्रमसंचय और संयोजन को
समझ लेना इतना आसान भी नहीं था

मसला
मगर बहुत छोटा सा 
एक रोज के होने वाले
मसलों के बीच का ही एक मसला था

आज उन दोनों का जोड़ा
सामने से ही
हाथ में हाथ डाल कर जब निकला था

कुछ हुआ था या नहीं हुआ था
पता ही नहीं चल सका था

भीड़ वही थी चेहरे वही थे
कहीं कुछ हुआ भी है
का कोई भी निशान
किसी चेहरे पर बदलता हुआ
कहीं भी नहीं दिखा था

‘उलूक’ ने
खिसियाते हुऐ हमेशा की तरह
एक बार फिर अपनी होशियारी का सबक
उगलते उगलते
अपने ही थूक के साथ
कड़वी सच्चाई की तरह ही निगला था ।

चित्र साभार: davidharbinson.com

रविवार, 23 नवंबर 2014

कुछ नहीं किया जा सकता है उस बेवकूफ के लिये जो आधी सदी गुजार कर भी कुछ नहीं सीख पाता है

रोज की बात है
रोज चौंकता है
अखबार पर
छपी खबर
पढ़ कर के
फिर यहाँ आ आ
कर भौंकता है
बिना आवाज के
कुत्ते की तरह
ऐसा चौंकना
भी क्या और
ऐसा भौंकना
भी क्या
अरे क्या हुआ
अगर एक चोर
कहीं सम्मानित
किया जाता है
ये भी तो देखा कर
एक चोर ही
उसके गले में
माला पहनाता है
अब चोर चोर के
बीच की बात में
तू काहे अपनी
गोबर भरे
दिमाग की
बुद्धी लगाता है
क्या होता है
अगर किसी
बंदरिया को
अदरख़ बेचने
खरीदने का
ठेका दे भी
दिया जाता है
और क्या होता है
अगर किसी
जुगाड़ी का जुगाड़
किसी की भी
हो सरकार
सबसे बड़ा जुगाड़
माना जाता है
बहुत हो चुका
तेरा भौंकना
तेरा गला भी
लगता है
कुछ विशेष है
खराब भी
नहीं होता है
थोड़ा बहुत
कुछ भी
कहीं भी
होता है
खरखराना
शुरु हो
जाता है
समय के
साथ साथ
बदलना
क्यों नहीं
सीखना
चाहता है
खुद का समय
तो निकल गया
के भ्रम से भ्रमित
हो भी चुका है
तो भी अपनी
अगली पीढ़ी को
ये कलाबाजियाँ
क्यों नहीं
सिखाता है
जी नहीं पायेगी
मर जायेगी
तेरी ही आत्मा
गालियाँ खायेगी
तेरी समझ में
इतना भी
नहीं आता है
कौन कह रहा है
करने के लिये
सिखाना है
समझा कर
समझने के लिये
ही उकसाना है
समझने के लिये
ही बताना है
चोरी चकारी
बे‌ईमानी भ्रष्टाचारी
किसी जमाने में
गलत मानी
जाती होंगी
अब तो बस
ये सब नहीं
सीख पाया तो
गंवारों में
गिना जाता है
वैसे सच तो ये है
कि करने वालों
का ही कुछ
नहीं जाता है
नहीं करने वाला
कहीं ना कहीं
कभी ना कभी
स्टिंग आपरेशन
के कैमरे में
फंसा दिया जाता है
इसी लिये ही तो
कह रहा है ‘उलूक’
गाँठ बाँध ले
बच्चों को अपने ही
मूल्यों में ये सब
बताना जरूरी
हो जाता है
करना सीख
लेता है जो
वो तो वैसे भी
बच जाता है
नहीं सीख पाता है
लेकिन जानता है
कम से कम
अपने आप को
बचाने का रास्ता तो
खोज ही ले जाता है ।

चित्र साभार: poetsareangels.com

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

अभी ये दिख रहा है आगे करो इंतजार क्या और नजर आता है

हमाम
के चित्र 

बाहर
ही बाहर
तक दिखाना
तो समझ
में आता है

पता नहीं
कैमरे वाला
क्यों
किसी दिन
अंदर तक
पहुँच जाता है

कब कौन
सी बात को
कितना
काँट छाँट
कर दिखाता है

सामने बैठे
ईडियट
बाक्स के

ईडियट
‘उलूक’ को
कहाँ कुछ
समझ में
आता है

बहुत बार
बहुत से
झाडुओं
की कहानी

झाडू‌
लगाने वालों
के मुँह से
सुन चुका
होना ही
काफी
नहीं होता है

गजब की
बात होती है
जब झाड़ू
लगाने वाला
झाड़ू लगाने
से पहले
खुद ही कूड़ा
फैलाता है

बहुत
अच्छी तरह
से आती है
कुछ बाते
कभी कभी
समझ में
बेवकूफों
को भी

पर क्या
किया जाये

कुछ
बेवकूफों के
कहने
कहाने पर

बेवकूफ
कह रहा है
क्यों सुनते हो

बात में
दम नजर
नहीं आता है
जैसा ही
कुछ कुछ
कह दिया
जाता है

और
कुछ लोग
कुछ भी नहीं
समझते हैं
या समझना
ही नहीं
चाहते हैं

भेड़ के
रेहड़ के
भेड़ हो
लेते हैं

पता
होता है
उनको
बहुत ही
अच्छी
तरह से

भीड़ की
भगदड़
में मरने
में भी
मजा
आता है

कोई माने
या ना माने
बहुत
बोलने से
कुछ
नहीं भी
होता है

फिर भी
बोलते बोलते

कलाकारी से
एक कलाकार

बहुत सफाई से
मुद्दे चोरों के भी

चुरा चुरा कर
चोरों को ही
बेच जाता है ।

चित्र साभार: imageenvision.com

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

तोते के बारे में तोता कुछ बताता है जो तोते को ही समझ में आता है


तोते कई तरह के पाये जाते है
कई रंगों में कई प्रकार के
कुछ छोटे कुछ बहुत ही बड़े

तोतों का कहा हुआ तोते ही समझ पाते हैं

हरे तोते पीले तोते की बात समझते हैं
या पीले पीले की बातों पर अपना ध्यान लगाते हैं

तोतों को समझने वाले ही
इस सब पर अपनी राय बनाते हैं

किसी किसी को शौक होता है तोते पालने का
और किसी को खाली पालने का शौक दिखाने का

कोई मेहनत कर के
तोतों को बोलना सिखा ले जाता है
उसकी अपनी सोच के साथ
तोता भी अपनी सोच को मिला ले जाता है

किसी घर से सुबह सवेरे
राम राम सुनाई दे जाता है
किसी घर का तोता चोर चोर चिल्लाता है

कोई सालों साल
उल्टा सीधा करने के बाद भी
अपने तोते के मुँह से
कोई आवाज नहीं निकलवा पाता है

‘उलूक’ को क्या करना इस सबसे

वो जब उल्लुओं के बारे में ही कुछ
नहीं कह पाता है

तो हरों के हरे
और पीलों के पीले
तोतों के बारे में कुछ पूछने पर

अपनी पूँछ को अपनी चोंच पर चिपका कर
चुप रहने का संकेत जरूर दे जाता है

पर तोते तो तोते होते हैं
और तोतों को तोतों का कुछ भी कर लेना
बहुत अच्छी तरह से समझ में आ जाता है ।

चित्र साभार: http://www.www2.free-clipart.net/

शनिवार, 27 सितंबर 2014

छोटी चोरी करने के फायदों का पता आज जरूर हो रहा है

                               

चोर होने की औकात है नहीं डाकू होने की सोच रहा है 
तू जैसा है वैसा ही ठीक है 
तेरे कुछ भी हो जाने से 
यहाँ कुछ
नया जैसा नहीं हो रहा है 

थाना खोल ले
घर के किसी भी कोने में 
और सोच ले
कुर्सी पर बैठा एक थानेदार 
मेज पर अपना सिर टिका कर सो रहा है 

देख नहीं रहा है दूरदर्शन आज का 
कुछ अनहोनी सी खबर कह रहा है 

चार साल के लिये अंदर हो जाने वाली है 
और ऊपर से
सौ करोड़ जमा करने का आदेश भी
न्यायालय
उसको साथ में दे रहा है 

बेचारी को
बहुत महँगा पड़ रहा है 
दोस्त देश के बाहर गया हुआ भी 
दो शब्द साँत्वना के नहीं कह रहा है 

समझ में
ये नहीं आ पा रहा है कि 
पुराना घास खा गया घाघ अभी तक अंदर है 
या बाहर कहीं किसी जगह अब मौज में सो रहा है 
खबर ही नहीं आती है उसकी कुछ भी मालूम नहीं हो रहा है 

आज कुछ कुछ
कोहरे के पीछे का मंजर
थोड़ा सा कुछ साफ जैसा हो रहा है 

बहुत समझदार है
मध्यम वर्गीय चोर मेरे आस पास का 
ये आज ही सालों साल सोचने के बाद भी बिना सोचे 
बस आज और आज ही पता हो रहा है 

हाथ लम्बे
होने के बाद भी 
लम्बे हाथ मारने का खतरा कोई फिर भी 
क्यों नहीं ले रहा है 

बस थोड़ा थोड़ा
खुरच कर दीवार का रंग रोगन 
अपने आने वाले भविष्य की संतानों के लिये
बनने वाले सपने के ताजमहल की पुताई का 
मजबूत जुगाड़ ही तो हो रहा है 

‘उलूक’ बैचेन है 
आज जो भी हो रहा है किसी के साथ 
इस तरह का बहुत अच्छा जैसा तो नहीं हो रहा है 

थोड़ी थोड़ी करती
रोज कुछ करती हमारी तरह करती 
तो पकड़ी भी नहीं जाती 
शाबाशियाँ भी कई सारी मिलती 
जनता रोज का रोज ताली भी साथ में बजाती 
सबकी नहीं भी होती
तो भी 
दो चार शातिरों की फोटो
खबर के साथ अखबार में 
रोज ही किसी कालम में नजर आ ही जाती 

दूध छोड़ कर
बस मलाई चोर कर खाने का 
बिल्कुल भी अफसोस 
आज जरा सा भी नहीं हो रहा है । 

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/