उलूक टाइम्स

गुरुवार, 5 मार्च 2015

होली की हार्दिक शुभकामनाऐं कहना मजबूरी हो गया है छुट्टी खुद लेकर अपने घर जा कर अपना त्योहार खुद ही मनायें कहना जरूरी हो गया है

इस बार
ही हुआ है
पहली बार
हुआ है

होली में होता
था हर साल
मेरे घर में
बहुत कुछ

इस बार कुछ
भी नहीं हुआ है
पोंगा पंडित
लगता है
कहीं गया हुआ है

पूजा पाठ होने
की खबर इस बार
हवा में नहीं
छोड़ गया है

दंगा होने के
भय का अंदेशा
भी नहीं हुआ है

खुले रहे हैं
रात भर घर
के दरवाजे
चोर और थानेदार
दोनों ने मिलकर
भाँग घोट कर
साथ मिल बाँट
कर पिया है

छुटियों का
अपना खाता
सबने खुद ही
प्रयोग कर लिया है
दुकान के खुलने
बंद होने के
दिनों को कागज ने
पूरा कर दिया है

होली पढ़ने पढा‌ने
की बस बात है
पढ़ने वाला अब
समझदार हो गया है

ऊँचाईयों को
छूने के लिये
जमीन से पाँव
उठाना बहुत
जरूरी हो गया है

होली में होता था
हर साल मेरे घर
में बहुत कुछ
इस बार कुछ भी
नहीं हुआ है
किसी से नहीं
कहना है
बुरा ना मानो होली है
‘उलूक’ ने ऐसा वैसा
हमेशा का जैसा ही
कुछ कह दिया है ।

चित्र साभार: www.imagesbuddy.com