उलूक टाइम्स

मंगलवार, 24 मार्च 2020

गले गले तक भर गये नहीं कहे जा रहे को रोक कर रखने से कौन सा उसका अचार हो लेना है


मन 
पक्का करना है बस
सोच को
संक्रमित नहीं होने देना है

भीड़ घेरती ही है
उसे कौन सा 
अपनी सोच से कुछ लेना देना है

शरीर नश्वर है
आज नहीं तो कल मिट्टी होना है

तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा
की 
याद आ रही हो सभी को
जब नौ दिशाओं से

ऐसे माहौल में
कुछ कहना जैसे ना कहना है

सिक्का उछालने वाला बदलने वाला नहीं है

चित भी उसकी पट भी उसकी
सिक्का भी उसी की तरह का

जिसे हर हाल में
रेत नहीं होने के बावजूद
सन्तुलन दिखाते मुँह चिढ़ाते
सीधा बिना इधर उधर गिरे खड़ा होना है

सकारात्मकता का ज्ञान दे रही
खचाखच हो गयी भीड़ की
चिल्ल पौं के सामने
कुछ कह देना

अपनी इसकी और उसकी 
की
ऐसी की तैसी करवा लेने का लाईसेंस
खुद अपने हस्ताक्षर कर के दे देना है

छोड़ क्यों नहीं देता है 
पता नहीं
‘उलूक’
बकवास करने के नशे को किसी तरह

गले गले तक भरे कबाड़ शब्दों को 

कौन सा
किसी सभ्य समाज के 
सभ्य ठेकेदार की 
खड़ी मूँछों को तीखी करने वाले 
तेल की धार हो लेना है ?

चित्र साभार: