उलूक टाइम्स: रस्म
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शनिवार, 14 दिसंबर 2013

आँख में ही दिखता है पर बाजार में भी बिकता है अब दर्द

आँख में झाँक कर
दिल का दर्द
देख कर आ गया
मुझे पता है तू
अंदर भी बहुत सी
जगहों पर जा कर
बहुत कुछ देख सुन
कर वापस आ गया
कितना तुझे दिखा
कितना तूने समझा
मुझे पता नहीं चला
क्योंकि आने के बाद
तुझसे कुछ भी कहीं भी
ऐसा कुछ नहीं कहा गया
जिससे पता चलता
किसी को कि
तू गया तो
इतने अंदर तक
कैसे चला गया
और बिना डूबे ही
सही सलामत पूरा
वापस आ गया
जमाने के साथ
नहीं चलेगा तो
बहुत पछतायेगा
किसी दिन अंदर गया
वाकई में डूब जायेगा
वैसे किसी की
आँखों तक
नहीं जाना है
जैसी बात
किसी किताब
ने बताई नहीं है
कुऐं के मुडेर से
रस्सी से पानी
निकाल लेने में
कोई बुराई नहीं है
बाल्टी लेकर कुऐं
के अंदर भी जाते थे
किसी जमाने के लोग
पर अब कहीं भी
उस तरह की साफ
सफाई और
सच्चाई नहीं है
आ जाया कर
आने के लिये
किसी ने नहीं रोका है
पर दलदल में उतरने में
तेरी भी भलाई नहीं है
जो दिखता है
वो होता नहीं
जो होता नहीं
उसी को बार बार
दिखाने की रस्म
लगता है अभी तक
तुझे किसी ने भी
समझाई नहीं है
कितने जमाने
गुजर गये और
तुझे अभी तक
जरा सी भी
अक्ल आई
नहीं है ।