उलूक टाइम्स

मंगलवार, 27 मार्च 2012

खुदा और नजर

नजर से नजर मिलाता है
नजर की नजर से मार खाता है

महफिल वो इसीलिये सजाता है

बुला के तुझको वहाँ ले जाता है

नजरों के खेल का इतना माहिर है
तुझे पता है कितना शातिर है

तुझ को पता नहीं क्या हो जाता है
चुंबक सा उसके पीछे चला जाता है

सबको पहले से ही बतायेगा
उसके इक इशारे पे चला आयेगा

इस बार फिर से महफिल सजायेगा
तुझको हमेशा की तरह बुलायेगा

सब मिलकर नजर से नजर मिलायेंगे
तुझे कुछ भी नहीं कभी बतायेंगे
तुझको तेरी नजर से गिरायेंगे

पर तू तो खुदा हो जाता है
खुदा कहां नजर बचाता है
मिला कर नजर मिलाता है।