उलूक टाइम्स: माहिर
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मंगलवार, 17 सितंबर 2019

बस समय चलता है अब इशारों में एक माहिर के सूईंया छुपाने से

किसलिये
डरता है
उसके
आईना
दिखाने से 

चेहरा
छुपा के
रखता है
वो
अपना
जमाने से 

कुछ
पूछते ही
पूछ लेना
उस से
उसी समय 

तहजीब
कहाँ गयी
तेरी

पूछने
चला है
हुकमरानो से 

ना देखना
घर में लगी
आग को

बुझाना भी नहीं 

दिखाना
आशियाँ
उसका जलता हुआ 

चूकना नहीं
तालियाँ
भी
बजाने से 

हिलती रहें
हवा में
आधी कटी
डालें
पेड़ पर ही 

सीखना
कत्ल करना

मगर बचना

लाशें
ठिकाने लगाने से 

नकाब
सबके
उतार देने का
दावा है
नकाबपोष का

शहर में
बाँटता है
चेहरे

खरीदे हुऐ
नकाबों के
कारखाने से

घड़ी
दीवार पर टंगी है

उसी
तरह से
टिकटिकाती हुयी

बस
समय चलता है
अब
इशारों में ‘उलूक’ 

एक
माहिर के
सूईंया
छुपाने से। 

चित्र साभार: https://www.fotolia.com

बुधवार, 6 जून 2012

आँख आँख

घर में आँख से
आँख मिलाता है

खाली
बिना बात के
पंगा हो जाता है

चेहरा फिर भाव
हीन हो जाता है

बाहर आँख वाला
सामने आता है
कन्नी काट कर
किनारे किनारे
निकल जाता है

आँख वाली से
आँख मिलाता है
डूबता उतराता है
खो जाता है

चेहरा नये नये
भाव दिखाता है

रोज कुछ लोग
घर पर आँख
को झेलते हैं

बाहर आ कर
खुशी खुशी
आँख आँख
फिर भी खेलते हैं

आँख वाली
की आँख
गुलाबी
हो जाती है

आँख वाले
को आँखें
मिल जाती हैं

सिलसिला सब ये
नहीं चला पाते हैं
कुछ लोग इस कला
में माहिर हो जाते हैं

करना वैसे तो बहुत
कुछ चाहते हैं
पर घर की आँखों
से डर जाते हैं

इसलिये बस
आँख से आँख
मिलाते हैं

पलकें झुकाते हैं
पलकें उठाते हैं
रोज आते हैं
रोज चले जाते हैं

आँख आँख में
अंतर साफ साफ
दिखाते हैं ।

मंगलवार, 27 मार्च 2012

खुदा और नजर

नजर से नजर मिलाता है
नजर की नजर से मार खाता है

महफिल वो इसीलिये सजाता है

बुला के तुझको वहाँ ले जाता है

नजरों के खेल का इतना माहिर है
तुझे पता है कितना शातिर है

तुझ को पता नहीं क्या हो जाता है
चुंबक सा उसके पीछे चला जाता है

सबको पहले से ही बतायेगा
उसके इक इशारे पे चला आयेगा

इस बार फिर से महफिल सजायेगा
तुझको हमेशा की तरह बुलायेगा

सब मिलकर नजर से नजर मिलायेंगे
तुझे कुछ भी नहीं कभी बतायेंगे
तुझको तेरी नजर से गिरायेंगे

पर तू तो खुदा हो जाता है
खुदा कहां नजर बचाता है
मिला कर नजर मिलाता है।

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

धुआँ

जरूरी नहीं 
कुछ जले और धुआँ भी उठे

धुऎं का धुआँ बनाना तो
और भी मुश्किल काम है

कब कौन क्या जला ले जाता है
किसी को पता नहीं चल पाता है

हर कोई अपना धुआँ बनाता है
हर कोई अपना धुआँ फैलाता है

कहते हैं 
आग होगी तो धुआँ भी उठेगा

माहिर लोग 
इन सब बातो को नहीं मानते हैं

वो तो 
धुऎं का धुआँ बनाना 
बहुत ही अच्छी तरह जानते हैं

बहुत बार
धुआँ धुऎं में ही मिल जाता है
कौन किसका धुआँ था 
पता नहीं लग पाता है

ये भी जरूरी नहीं 
हर चीज जल कर धुआँ हो जाये
बिना जले भी कभी कभी धुआँ देखा जाता है

धुऎं का धुआँ बनाकर धुआँ देखने वाला 
खुद कब धुआँ हो जाता है
ये धुआँ जरूर बताता है।

चित्र साभार: imgarcade.com

सोमवार, 21 नवंबर 2011

टी ऎ डी ऎ

एक पैन
एक कागज
ही तो
चाहिये होता
है बस

बनाने
के लिये
चार लोग
एक कार
को

रेल
हवाई जहाज
या बैलगाड़ी
के चार लोग

बाजीगरी
खूँन में
नहीं आती
किसी के

हुनर सिखाने
में माहिर
हो गये हैं
मेरे मोहल्ले
के लोग ।