उलूक टाइम्स: शातिर
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रविवार, 19 नवंबर 2017

अजीब से काम जब नजीर हो रहे होते हैं

पीछे लौटते हैं
लिखने वाले
लिखते लिखते
कई बार

पुराने लिखे
लिखाये की
कतरनों में
चिपके शब्दों
की खुरचनों के
लोग मुरीद
हो रहे होते हैं

चल देते
हैं ढूँढने
मायने हो रहे
बहुत कुछ के
जमाने में

काम हो रहे
होते हैं जब
बहुत सलीके से
मगर अजीब से
कुछ हो रहे होते हैं

नींद में नहीं
होते हैं खुली
आँखों से दिन में
सपने देखने वाले

जानते हैं
अच्छी तरह
हरम के रास्ते
बहुत बेतरतीब
हो रहे होते हैं

याद नहीं आते हैं
या होते ही नहीं हैं
कुछ शब्द कुछ
कामों के लिये

करने वाले
शातिर
सारे के सारे
फकीर हो
रहे होते हैं

छोड़ भी दे 
‘उलूक’
अकेले ढूँढना

शब्द
और मायने 
दिख रहे कुछ 
हो रहे के 

कई सारे
लोगों के 
मिलकर
किये 
जा
रहे कुछ 
अजीब से
काम 
जब नजीर 
हो रहे होते हैं । 

चित्र साभार: The Economic Times

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

कूड़ा हर जगह होता है उस पर हर कोई नहीं कहता है

एक दल में
एक होता है
एक दल में
एक होता है

क्यों दुखी होता है
कुछ नहीं होता है

किसी जमाने में
ये या वो होता था
अब सब कुछ
बस एक होता है

दलगत से बहुत
ही दूर होता है
दलदल जरूर होता है

कुछ इधर
उसका भी होता है
कुछ उधर
इसका भी होता है
डूबना
खुद नहीं होता है
डुबोने को
तैयार होता है

मिलता है
सभी को कुछ कुछ
आधा
इसके लिये होता है 
आधा
उसके लिये होता है

इसकी
गोष्ठी होती है
कमरा खुला होता है
उसकी
सभा होती है
बड़ा मैदान होता है

इसकी
शिकायत
उससे होती है
उसकी
शिकायत
इससे होती है

इसकी
सभायें होती हैं
उसकी
कथायें होती है

इसकी
नाराजगी होती है
इसे मिठाई देता है
गुस्सा
उसको आता है
उसे नमकीन देता है

बिल्लियों
की रोटियाँ होती है
बंदर
का आयोग होता है

कोई
कुछ नहीं करता है
अखबार
को 
लिखना ही होता है

उलूक
तेरे बरगद
के पेड़ में ही
लेकिन ये
सब नहीं होता है

हर जगह होता है
हर कोई नहीं कहता है

क्यों
परेशान होता है
फैसला
दल दल में
अब नहीं होता है

समर्थन
निर्दलीय
का जरूर होता है
शातिर
होने का ही ये
सबूत होता है

इसका
भी होता है
और
उसका
भी होता है
ये भी
उसके होते है
और
वो भी
उसके होते हैं

तू
कहीं नहीं होने की
सोच सोच कर रोता है

दल में
होने से
कहीं अच्छा
अब तो
निर्दलीय होता है

लिखने
का बस यही
एक फायदा होता है

कहना
ना कहना
कह देना होता है

किसी
का रोकना
टोकना ही तो बस
यहाँ पर नहीं होता है ।

मंगलवार, 27 मार्च 2012

खुदा और नजर

नजर से नजर मिलाता है
नजर की नजर से मार खाता है

महफिल वो इसीलिये सजाता है

बुला के तुझको वहाँ ले जाता है

नजरों के खेल का इतना माहिर है
तुझे पता है कितना शातिर है

तुझ को पता नहीं क्या हो जाता है
चुंबक सा उसके पीछे चला जाता है

सबको पहले से ही बतायेगा
उसके इक इशारे पे चला आयेगा

इस बार फिर से महफिल सजायेगा
तुझको हमेशा की तरह बुलायेगा

सब मिलकर नजर से नजर मिलायेंगे
तुझे कुछ भी नहीं कभी बतायेंगे
तुझको तेरी नजर से गिरायेंगे

पर तू तो खुदा हो जाता है
खुदा कहां नजर बचाता है
मिला कर नजर मिलाता है।

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

अभिनेता आज के समाज में

अंदर की
कालिख को
सफाई से
छिपाता हूँ

चेहरा
मैं हमेशा 
अपना
चमकाता हूँ

शातिर
हूँ मैं
कोई नहीं
जानता 
है

हर कोई मुझे
देवता जैसे
के नाम से
पहचानता 
है

मेरा
आज तक
किसी से कोई
रगड़ा
नहीं हुवा 
है

और तो और
बीबी से भी
कभी झगड़ा
नहीं हुवा 
है

धीरे धीरे
मैने अपनी
पैठ बनाई 
है

बड़ी मेहनत से
दुकानदारी 
चमकाई 
है

कितनो को
इस चक्कर में
मैने लुटवा दिया 
है

वो आज भी
करते हैं प्रणाम
सिर तक
अपने पांव में
झुकवा दिया 
है

पर अंदाज
किसी को 
कभी नहीं
आता  है

खेल खेल
में ही ये सब
बड़े आराम
से किया
जाता है

और  मैं
बडे़ आराम से हूँ
चैन की बंसी
बजाता हूं

जो भी
साहब
आता है
पहले उसको
फंसाता हूँ

सिस्टम को
खोखला
करने में
हो गई है
मुझे महारत

तैयारी में हूँ
अब करवा
सकता हूँ
कभी भी
महाभारत

तुम से ही
ये सारे
काम करवाउंगा

अखबार में
लेकिन फोटो
अपनी ही
छपवाउंगा

इस पहेली को
अब आपको ही
सुलझाना है

आसपास आज
आप के
कितने मैं
आबाद हो गये हैं
पता लगाना है

ज्यादा कुछ
नहीं करना है
उसके बाद
हल्का सा
मुस्कुराना है ।