उलूक टाइम्स

बुधवार, 23 जुलाई 2014

क्योंकि खिड़कियाँ मेरे शहर के पुराने मकानों में अब लोग नई लगा रहे थे

अपने
बच्चों को
समझाने में
लगे हुऐ
एक माँ बाप

उनको
उनसे उनकी
दिमाग की
खिड़की खोलने
को कहते हुऐ
जोर लगा कर
कुछ समझा रहे थे

लग नहीं
रहा था
कुछ ऐसा
जैसे बच्चे
कुछ सुनना
भी चाह रहे थे

माँ बाप
बच्चों की
तरफ देख कर
कुछ बोल रहे थे

बच्चे
अपने घर के
पड़ोस के मकान
की खिड़कियों की
तरफ देख कर
मुस्कुरा रहे थे

खिड़कियों
के बारे में
शायद माँ बाप से
ज्यादा पता था उनको

घर से लेकर
स्कूल तक
जाते जाते

रोज ना जाने
कितनी
खिड़कियों को
खुलते बंद होते
देखते हुऐ आ रहे थे

समझ रहे थे
स्कूल में गुरु लोग
खिड़कियों को
खोलने की विधि का
प्रयोग प्रयोगशाला
में करवाना चाह रहे थे

उसी बात
को लेकर
घर के लोग
घर पर भी
खिड़कियों
की बात
कर कर के
दिमाग खा रहे थे

सोच रहे थे
समझ रहे थे
हिसाब किताब भी
थोड़ा बहुत लगा रहे थे

पुराने
मकानो की
खिड़कियों
की तुलना
नये मकानो की
खिड़कियों से
किये जा रहे थे

माँ बाप
की चिंताओं
को जायज
मान ले रहे थे
देख रहे थे
समझ रहे थे

पुरानी
खिड़कियों के
कब्जे जंग खा रहे थे

खुलते जरूर थे
रोज ना भी सही
कभी कभी भी

लेकिन आवाजें
तरह तरह की
खुलने बंद होने
पर बना रहे थे

खिड़कियाँ
दरवाजे
समय के साथ
पुराने लोगों के
पुराने हो जा रहे थे

शायद
इसी लिये
सभी लोग नयी
पौँध से उनकी

अपनी अपनी
खिड़कियों को खोल
कर रखने की अपेक्षा
किये जा रहे थे

‘उलूक’
की समझ में
नहीं आ रहा था
कुछ भी

उसे उसके
पुराने मकान
के खंडहर में
खिड़की या
दरवाजे नजर ही
नहीं आ रहे थे ।