उलूक टाइम्स: बाप
बाप लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
बाप लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

काम हो जाना ही चाहिये कैसे होता है इससे क्या होता है

क्या बुराई है
सीखने में कुछ
कलाकारी
जब रहना ही
हो रहा हो
किसी का
कलाकारों के
जमघट में
अपने ही
घर में
बनाये गये
सरकस में
जानवर और
आदमी के
बीच फर्क को
पता करने को
वैसे तो कहीं
कोई लगा
भी होता है
आदमी को
पता भी होता है
ऐसा बहुत
जगह पर
लिखा भी
होता है
जानवर को
होता है
या नहीं
किसी को
पता भी
होता है
या नहीं
पता नहीं
होता है
आदमी को
आता है
गधे को बाप
बना ले जाना
अपना काम
निकालना
ही होता है
इसके लिये
वो बना देता है
किसी शेर को
पूंछ हिलाता
हुआ एक कुत्ता
चाटता हुआ
अपने कटे हुए
नाखूँनों को
निपोरता
हुआ खींसें
घिसे हुऐ तीखे
दातों के साथ
कुतरता हुआ घास
तो भी
क्या होता है
काम को होना
ही चाहिये
काम तो
होता है
आदमी आदमी
रहता है
या फिर एक
जानवर कभी
हो लेता है
‘उलूक’ को नींद
बहुत आती है
रात भर
जागता भी है
दिन दोपहर
ऊँघते ऊँघते
जमहाईयाँ भी
लेता है ।
चित्र साभार: www.englishcentral.com

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

रंग देखना रंग पढ़ना रंग लिखना रंग समझना या बस रंग से रंग देना कुछ तो कह दे ना

रंग दिखाये
माँ बाप ने
चलना शुरु
किया जब
पावों पर अपने
लड़खड़ाते हुऐ
सहारे से
उँगलियों के
उनकी ही
हाथों की

रंग कम
समझ में आये
उस समय पर
आई समझ में
तितलियाँ
उड़ती उड़ती
पेड़ पौंधे फूल
एक नहीं
बहुत सारे
कौआ काला
कबूतर सफेद

अच्छाई और बुराई
खुशी और दुख:
प्यार और दुलार
रंगीन तोते मोर
और होली में
उड़ते अबीर
और गुलाल

रंग बने इंद्र के
धनुष भी पर
युद्ध कभी भी नहीं
हमेशा उमड़े
भाव रंगीन

रंगों के साथ
रंगों को देखकर
छूकर या
आत्मसात कर
बिना भीगे भी
रंगों से रंगों के
रंगो का देवत्व
कृष्ण का हरा
या राम का हरा

कभी नहीं हरा सका
रंगो को रंगों
के साथ खेलते हुऐ
जैसे अठखेलियाँ
रंगों के ही
धनुष तीर और
तलवार होने
के बावजूद
लाल रंग देख
कर कभी
याद नहीं आया
खून का रंग तक

सालों गुजर गये
ना माँ रही
ना बाप रहे
पूछें किससे
सब बताते बताते
क्यों छिपा गये
रंगों के उस रंग को

जिसे देख कर
निकलने लगें
आँसू उठे दिल
में दर्द और
महसूस होने लगे
रंग का रंग से
अलग होना
समझ में आने लगे
काले का काला
और सफेद का
बस और बस
सफेद होना
रंग का टोपी
झंडा मफलर
और कपड़ा होना

एक नटखट
परी सोच का
बेकाबू बदरंग
जवान होना
रंग जीवन
के लिये
या जीवन
रंग के लिये
हो सके तो
तुम्हीं पूछ लेना
समझ में आ जाये
कभी कुछ इसी तरह
‘उलूक’

रंग को समझना
अगर कुछ भी
तो कुछ रंगों को
मुझे भी एक बार
फिर से समझा देना ।

चित्र साभार:
background-pictures.picphotos.net

बुधवार, 23 जुलाई 2014

क्योंकि खिड़कियाँ मेरे शहर के पुराने मकानों में अब लोग नई लगा रहे थे

अपने
बच्चों को
समझाने में
लगे हुऐ
एक माँ बाप

उनको
उनसे उनकी
दिमाग की
खिड़की खोलने
को कहते हुऐ
जोर लगा कर
कुछ समझा रहे थे

लग नहीं
रहा था
कुछ ऐसा
जैसे बच्चे
कुछ सुनना
भी चाह रहे थे

माँ बाप
बच्चों की
तरफ देख कर
कुछ बोल रहे थे

बच्चे
अपने घर के
पड़ोस के मकान
की खिड़कियों की
तरफ देख कर
मुस्कुरा रहे थे

खिड़कियों
के बारे में
शायद माँ बाप से
ज्यादा पता था उनको

घर से लेकर
स्कूल तक
जाते जाते

रोज ना जाने
कितनी
खिड़कियों को
खुलते बंद होते
देखते हुऐ आ रहे थे

समझ रहे थे
स्कूल में गुरु लोग
खिड़कियों को
खोलने की विधि का
प्रयोग प्रयोगशाला
में करवाना चाह रहे थे

उसी बात
को लेकर
घर के लोग
घर पर भी
खिड़कियों
की बात
कर कर के
दिमाग खा रहे थे

सोच रहे थे
समझ रहे थे
हिसाब किताब भी
थोड़ा बहुत लगा रहे थे

पुराने
मकानो की
खिड़कियों
की तुलना
नये मकानो की
खिड़कियों से
किये जा रहे थे

माँ बाप
की चिंताओं
को जायज
मान ले रहे थे
देख रहे थे
समझ रहे थे

पुरानी
खिड़कियों के
कब्जे जंग खा रहे थे

खुलते जरूर थे
रोज ना भी सही
कभी कभी भी

लेकिन आवाजें
तरह तरह की
खुलने बंद होने
पर बना रहे थे

खिड़कियाँ
दरवाजे
समय के साथ
पुराने लोगों के
पुराने हो जा रहे थे

शायद
इसी लिये
सभी लोग नयी
पौँध से उनकी

अपनी अपनी
खिड़कियों को खोल
कर रखने की अपेक्षा
किये जा रहे थे

‘उलूक’
की समझ में
नहीं आ रहा था
कुछ भी

उसे उसके
पुराने मकान
के खंडहर में
खिड़की या
दरवाजे नजर ही
नहीं आ रहे थे ।

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

घर घर की कहानी से मतलब रखना छोड़ काम का बम बना और फोड़

आज उसकी भी
घर वापसी हो गई
उधर वो उस घर से
निकल कर आ
गया था गली में
इधर ये भी
निकल पड़ा था
बीच गली में
पता नहीं कब से
उदास सा खड़ा था
दोनो बहुत दिनो से
गली गली खेल रहे थे
टीम से बाहर
निकाल दिया जाना
या नाराज होकर टीम
को छोड़ के आ जाना
एक जैसी ही बात है
खिलाड़ी खिलाड़ी के
खेल को समझते हैं
कोई गली में हो रहा
कठपुतली का तमाशा
जैसा जो क्या होता है
थोड़ी देर के लिये
पुतली की रस्सी
हाथ में किसी को
थमा के नचाने वाला
दिशा मैदान को
निकल जाये और
तमाशे की घड़ी
अटकी रहे खुली
बेशरम बेपरदा
देखने वाला भी
निकाल ले कुछ नींद
या लेता रहे जम्हाई
थोड़ी देर के लिये सही
अब घर की बात हो
और एक ही बाप हो
तो अलग बात है
बाप पर बाप हो
और घर से बाहर
एक बाप खुश और
एक बाप अंदर
से नाराज हो
खैर दूर से दूसरे के
घर के तमाशे को
देखने का मजा ही
कुछ और होता है
जब लग रहा था
इधर वाला उस
घर में घुस लेगा
और उधर वाला इस
घर में घुस लेगा
तभी सब ठीक रहेगा
पोल पट्टी खुलती रहेगी
खबर मिलती रहेगी
पर एक बाप अब
बहुत नाराज दिख रहा है
जब से वो अपने ही घर में
फिर से घुस गया है
अब क्या किया जाये
ये सब तो चलना ही है 

उलूक तू तमाशबीन है
था और हमेशा ही रहेगा
तूने कहना ही है कहेगा
होना वही ढाक के
तीन ही पत्ते हैं
बाहर था तो देख कर
खुजली हो जाती थी
अंदर चला गया
तो हाथ से ही
खुजला देगा
प्रेम बढ़ेगा
देश प्रेम भी
बाप और बेटों का
एक साथ ही दिखेगा
एक अंदर और एक
गली में वंदे नहीं कहेगा।

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

इस बार भी चढ़ जायेगा रंग कहाँ कुछ नहीं बतायेगा

होली के
रंगो के बीच
भंग की
तरँगो के बीच
रंग में रंग
मत मिला
मान जा
एक ही
रंग में रह
कोशिश कर
तिरंगा रंगों
का मत फहरा
रंगो का भी
होता है ककहरा
हरे को रहने
ही दे हरा
लाल बोल कर
रँग को रंग
से मत लड़ा
जिस रंग
में रंगा है
उसी रंग
से खेल
दो चार दिन
का सब्र कर
सालों साल
की मेहनत
पर ना डाल
मिट्टी या तेल
एक दिन
मुस्कुरायेगा
गले से लगायेगा
आशीर्वाद ढोलक
की थापों के साथ
एक नहीं कई
कई दे जायेगा
हो हो होलक रे
करता हुआ रंग
हवा में उड़ेगा
कुछ ही देर
फिर थोड़ा
मिट्टी में मिलेगा
कुछ पानी की
फुहारों के साथ
बह जायेगा
रंग बदलने वाला
क्या करेगा
बस यही नहीं
किसी के समझ
में आ पायेगा
रेडियो कुछ कहेगा
टी वी कुछ दिखायेगा
रंगों का गणित
बहुत सरल तरीके
से हल किया हुआ
अखबार भी बतायेगा
हर कोई कहेगा
जायेगा तो “आप”
के साथ ही
इस बार जायेगा
रंग रंग में मिलेगा
पता भी नहीं चलेगा
होली हुई नहीं
सब कुछ बदल जायेगा
जिसका चढ़ेगा रंग
वही बस वही
बाप हो जायेगा
रंग को रंग
ही रहने दे
अगर मिलायेगा
समझ ले बाद में
तेरे ही सर
चढ़ के बोलेगा
होली का होला
कब हो गया
“उलूक” तू बस
ऊपर से नीचे
देखता रह जायेगा ।

रविवार, 17 जून 2012

तेरा दिन है आज

हैप्पी फादर्स डे

बापू
आज मुझे 
तू बहुत याद आ रहा है

सुना है तेरा दिन है
और तू उसे धूमधाम से
कहीं मना रहा है

अखबार टी वी मीडिया
हर जगह तेरी फोटो को
दिखाया जा रहा है

बचपन से बढ़कर
जवान भी अगर कोई हो जाता है

बापू तू सामने खड़ा
बेटे को हर जगह नजर आता है

शादी होते ही बेटे की
बापू लोगों का वेट 
थोड़ा सा कम हो ही जाता है

तू बापू के साथ
एक लड़की का ससुर जो हो जाता है

समझदार बापू अगर हो
अपने बैंक बैलेंस से
बैलेंस इसको कर ही ले जाता है

दिमागदार बापू इस तरह 
मरने मरने तक बापू का तमगा
चमकाये चला जाता है बहुत कुछ पाता है

फादर्स डे को ग्रीटिंग कार्ड
डाकिया भी उसको देने आता है

जेब अपनी हल्की कर गया
जिंदगी में गल्ती से भी कहीं
वो वाला बापू पूअर डैडी हो जाता है

फादर्स डे के दिन
अखबार के विज्ञापन में
बाप का फोटो देखता है
थोड़ी देरे को सँजीदा हो जाता है 
बेटे की  चिंता में फिर से कहीं खो जाता है ।

सोमवार, 26 मार्च 2012

लड़की भाग गयी

एक लड़की
बरतन धो के
परिवार चलाती है

गाँव के
उसी घर से
एक लड़की
एक लड़के
के साथ
भाग जाती है

खाने के
जुगाड़ में
बाप
हाड़ तोड़ता
चला जाता है

पता नहीं
बच्ची के हाथ में
मोबाइल
क्यों दे जाता है

पहाड़ के बच्चों में
एक नया खेल
चल रहा है

मोबाइल रखना
और
मोटरसाईकिल पे चलना
नये भारतीय मूल्यों की
रामायण रच रहा है

दो कदम
चल नहीं सकते
पहाड़ के नौनीहाल
जो कभी सेना में जाते थे

मेडिकल मे
अन्फिट हो रहे है
वो जो गुटका खाते थे

लड़के मोटरसाईकिल
लड़किया स्कूटी में ही जाते हैं
घर के नीचे से उसमें
वो सब्जी लाते हैं

दो किलोमीटर
की त्रिज्या के शहर मेंं 
पचास चक्कर लगाते हैं

बरतन
धोने वाली लड़की
कल से काम पे
नहीं जाती है

बहन ढूढने को बेचारी
थाने के चक्कर लगाती है

गाँव गाँव में पहाड़ के
रोजगार नहीं मिल पाता है

पत्थर तोड़ने भी आदमी
पैदल दूर शहर में जाता है

खाने को रोटी तब भी
बड़ी मुश्किल से पाता है

क्यों उसके बच्ची को
मोबाईल मिल जाता है
और
बच्चा उसका
मोटरसाईकिल चलाता है

पैट्रोल चोरने के लिये
फिर एक पाईप लगाता है

ये सब करना
भी सही चलो
पर इन सब
बातों से ही
एक बाप
अपनी बेटी
पहाड़ की
मुफ्त में
बिकवाता है

लड़की को एक
बरतन धोने
पे लगाता है
लड़की मेहनत से
परिवार चलाती है
मोबाईल के चक्कर
में बहन गवांती है
रोती जाती है लड़की
रोती जाती है।