उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

मित्रों का वार्तालाप


भाई
आपका लिखा
पढ़ता हूँ पर
समझ में ही
नहीं आता है
समझ में नहीं
आने के बावजूद
भी रोज पढ़ने
चला आता हूँ
सोचता हूँ शायद
किसी दिन कुछ
समझ में
आ ही जाये
लेकिन कुछ भी
अपने हाथ में
आया हुआ
नहीं पाता हूँ
जब यहाँ से
पढ़ पढ़ा कर
हमेशा कि तरह
खाली हाथ
खाली दिमाग
लौट जाता हूँ
ऐसा कुछ लिखना
जरूरी है क्या
जो पचाना तो दूर
खाया भी
नहीं जाता है ?

जरूरी नहीं है
भाई जी
मजबूरी है
समझ में मेरे भी
बहुत कुछ
नहीं आता है
कोशिश करता हूँ
समझने की बहुत
जितना कुछ है
सोचने समझने का
जुगाड़ पूरा ही
लगाता हूँ
जब क्यों हो रहा है
होता हुआ
अपने सामने से
होते हुऐ को
देखता चला जाता हूँ
जो नहीं होना चाहिये
उस होने के लिये
हर किसी को
उस ओर खड़ा
नहीं होने के
साथ पाता हूँ
तो अंत में
थक हार कर
नहीं समझे हुऐ को
लिख लिखा कर
जमा करने
यहाँ चला आता हूँ
सोचता हूँ
आज नहीं समझ में
आने वाली कच्ची बात
किसी दिन शायद
पक कर पूरी आ जायेगी
हो जायेगी खाने लायक
और होगी अपने ही हाथ
सोच सोच कर
बस इसी तरह का
एक खाता यहाँ
बनाये चला जाता हूँ
पर ये ही समझ
नहीं पाता हूँ
समझ में ना आने
के बाद भी कुछ भी
तुमको रोज
यहाँ आकर
लिखे को पढ़ चुके
लोगों की सूची में
क्यों और
किसलिये पाता हूँ ?


अरे कुछ नहीं
ऐसे ही मित्र ‘उलूक’
मैं भी कौन सा
तुम को उलझाना
चाहता हूँ
कुछ हो गया होता है
जब पता चलता है
तुमने कुछ लिखा होगा
उसपर जरूर
सोच कर बस यही
पता करने को
चला आता हूँ
पर तुम्हारे लिखने
में कुछ भी नहीं मिलता
क्यों लिखते हो
इस तरह का जो
ना आये किसी की
समझ में कभी भी
यहाँ से जाने के बाद
बस सोचता और
सोचता ही
रह जाता हूँ
जब नहीं सुलझती
है उलझन तो
पूछने चला आता हूँ ।

चित्र साभार: www.gograph.com