उलूक टाइम्स

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

हत्यारे की जाति का डी एन ए निकाल कर लाने का एक चम्मच कटोरा आज तक कोई वैज्ञानिक क्यों नहीं ले कर आया

शहर के एक
नाले में मिला
एक कंकाल
बेकार हो गया
एक छोटी
सी ही बस
खबर बन पाया
किस जाति
का था खुद
बता ही
नहीं पाया
खुद मरा
या मारा गया
निकल कर
अभी कुछ
भी नहीं आया
किस जाति
के हत्यारे
के हाथों
मुक्ति पाया
हादसा था
या किसी ने
कुछ करवाया
समझ में
समझदारों के
जरा भी नहीं
आ पाया
बड़ी खबर
हो सकती थी
जाति जैसी
एक जरूरी
चीज हाथ में
लग सकती थी
हो नहीं पाया
लाश की जाति
और
हत्यारे की जाति
कितनी जरूरी है
जो आदमी है
वो अभी तक
नहीं समझ पाया
विज्ञान और
वैज्ञानिकों को
कोई क्यों नहीं
इतनी सी बात
समझा पाया
डी एन ए
एक आदमी
का निकाल कर
उसने कितना
बड़ा और बेकार
का लफ़ड़ा
है फैलाया
जाति का
डी एन ए
निकाल कर
लाने वाला
वैज्ञानिक
अभी तक
किसी भी
जाति का
लफ़ड़े को
सुलझाने
के लिये
आगे निकल
कर नहीं आया
‘उलूक’
कर कुछ नया
नोबेल तो
नहीं मिलेगा
देश भक्त
देश प्रेमी
लोग दे देंगे
जरूर
कुछ ना कुछ
हाथ में तेरे
बाद में मत
कहना
किसी से
इतनी सी
छोटी सी
बात को भी
नहीं बताया
समझाया ।

चित्र साभार: Clipart Kid

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

आदमी एकम आदमी हो और आदमी दूना भगवान हो

गीत हों
गजल हों
कविताएं हों
चाँद हो
तारे हों
संगीत हो
प्यार हो
मनुहार हो
इश्क हो
मुहब्बत हो
अच्छा है

अच्छी हो
ज्यादा
ना हो
एक हो
कोई
सूरत हो
खूबसूरत हो
फेस बुक
में हो
तस्वीर हो
बहुत ही
अच्छा है

दो हों
लिखे हों
शब्द हों
सौ हों
टिप्पणिंयां हों
कहीं कुछ
नहीं हो
उस पर
कुछ नहीं
होना हो
बहुत
अच्छा है

तर्क हों
कुतर्क हों
काले हों
सफेद हों
सबूत हों
गवाह हों
अच्छी सुबह
अच्छा दिन
और
अच्छी रात हो
अच्छा है

भीड़ हो
तालियाँ हो
नाम हो
ईनाम हो
फोटो हो
फूल हों
मालाऐं हों
अखबार हो
समाचार हो
और भी
अच्छा है

झूठ हों
बीज हों
बोने वाले हों
गिरोह हो
हवा हो
पेड़ हों
पर्यावरण हो
गीत हों
गाने वाली
भेड़ हों
हाँका हो
झबरीले
शेर हों
अच्छा है

फर्क नहीं
पड़ना हो
दिखना
कोई
और हो
दिखाना
कोई
और हो
करना
कहीं
और हो
भरना
कहीं
और हो
बोलने वाला
भगवान हो
चुप रहने
वाला
शैतान हो
सबसे
अच्छा है

‘उलूक’ हो
पहाड़ा हो
याद हो
आदमी
एकम
आदमी हो
और
आदमी
दूना
भगवान हो
बाकी
सारा
हो तो
राम हो
नहीं तो
हनुमान हो
कितना
अच्छा है।

चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/

बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

फेसबुक में पोस्ट की गयी तस्वीर और स्टेटमेंट ही देशभक्ति होती है सारे देशभक्त समझ रहे होते हैं

जरूरत
नहीं है
आज के
अर्जुनों को
गाँडीव की
ना ही शंख
पाँचजन्य की
ना ही
जरूरत है
कृष्ण और
उसके
अर्जुन से किये
संवादों की
या किसी
गीता की
आज के
सारे अर्जुन
धृतराष्ट्र होने
में गर्व
महसूस
करते हैं
आँखे होती हैं
फिर भी
गाँधारी की
तरह नहीं
करते हैं
खुली आँख से
अपने सामने
हो रहे
कुछ भी को
देखना पसंद
नहीं करते हैं
जमाने के साथ
चलने
उठने बैठने
के शौकीन
होते हैं
अपने खुद के
दिमाग से
कुछ भी
सोचना अपनी
तौहीन
समझते हैं
दूर अंधेरे में
बैठे किसी
चमकीले
चमगादड़ की
चमक से
प्रभावित हो
कहीं भी
उल्टा लटक
किसी और
की उल्टी
बात पर
उल्टी कर
लेना पसन्द
करते हैं
अपने
आस पास
हो रही
लूट पर
चुप रहते हैं
कुछ नहीं
 कहते हैं
बेवकूफ
समझते हैं
दुनियाँ को
भौँकते हैं
अपनी
गलियों से
दूर कहीं
जा कर
वीडियो
फेसबुक में
अपलोड
किये होते हैं
‘उलूक’
जानता है
अपने मोहल्ले
अपनी गली
अपने शहर
के सियारों
को
नोच लेता है
अपने सिर के
बाल दो चार बस
जब सारे
शहर के सियार
देश के वफादार
कुत्ते होने का
दम भर कर
फेसबुक में
भौंक रहे होते हैं ।

 चित्र साभार: www.canstockphoto.com

सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

कर कुछ उतारने की कोशिश तू भी कभी 'उलूक'

कोशिश
कर तो सही
उतारने की
सब कुछ कभी

फिर दौड़ने
की भी
उसके बाद
दिन की
रोशनी में ही
बिना झिझक

जो सब
कर रहे हैं
क्यों नहीं हो
पा रहा है तुझसे

सोचने का
विषय है तेरे लिये

उनके लिये नहीं
जिन्होने उतार
दिया है सब कुछ
कभी का
सब कुछ के लिये

हर उतारा हुआ
उतारे हुए के साथ
ही खड़ा होता है
तू बस देखता
ही रहता है

दोष
किसका है
उतार कर तो देख
बस एक बार
शीशे के सामने ही सही

अकेले में
समझ सकेगा
पहने हुऐ
होने के नुकसान

जाति उतारने
की बात नहीं है

क्षेत्र उतारने
की बात नहीं है

धर्म उतारने
की बात नहीं है

कपड़े उतारने
की बात भी नहीं है

बात उतरे हुए
को सामने से
देख कर ही
समझ में आती है

निरन्तरता
बनाये रखने
के लिये वैसे भी
बहुत जरूरी है
कुछ ना कुछ
करते चले जाना

समय के साथ
चलने के लिये
समय की तरह
समय पहने तो
पहन लेना

समय उतारे तो
उतार लेना अच्छा है

सब को सब की
सारी बातें समझ में
आसानी से नहीं आती हैं

वरना आदमी
के बनाये आदमी
के लिये नियमों
के अन्दर किसी को
आदमी कह देने
के जुर्म में कभी भी
अन्दर हो सकता है
कोई भी आदमी

आमने सामने
ही पीठ करके
एक दूसरे से
निपटने में
लगे हुऐ
सारे आदमी

अच्छी तरह
जानते हैं
उतारना पहनना
पहनना उतारना

तू भी लगा रह
समेटने में अपने
झड़ते हुए परों को
फिर से चिपकाने की
सोच लिये ‘उलूक’

जिसके पास
उतारने के लिये
कुछ ना हो
उसे पहले कुछ
पहनना ही पड़ता है

पंख ही सही
समय की मार
खा कर गिरे हुए ।

चित्र साभार:
www.clipartpanda.com

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

रोज की बकबक से हटकर कुछ शब्द फेसबुक मित्र के आग्रह पर


                           सुमित जी की पुत्री अदिति के जन्मदिन पर 


https://www.facebook.com/photo.php?fbid=672690342904828&set=a.110634102443791.17445.100004916046065&type=3&theater 


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आओ 
बिटिया 
आज 
मनायें 
हम सब 
मिलकर 
तुम्हारा 
जन्मदिन 
थोड़ा थोड़ा 
सब मुस्कुराएं 
बाँटे खुशियाँ 
वर्ष के एक दिन 
कुछ बन जायें 
सुन्दर से फूल 
कुछ मधु 
मक्खियाँ 
और कुछ 
रंगबिरंगी 
तितलियाँ 
आओ बिटिया
आज सब 
मिलजुल कर 
इतना फैलायें 
रंग और खुश्बू 
इतना खिलायें 
और बाँटें 
प्यार से मधु 
आज के शुभ 
दिन के 
लिये ही नहीं 
आने वाले वर्ष 
के लिये ही नहीं 
हमेशा के लिये 
इतना इतना 
हो जाये 
जो सब की 
पहुँच तक 
पहुँचता 
चला जाये 
थोड़ा थोड़ा 

आओ बिटिया 
आज तुम्हारे 
जन्मदिन 
की इस 
दावत को 
यादगार 
एक बनायें 

बेटियों के प्यार 
बेटियों के व्यवहार 
बेटियों के उदगार 

आओ 
आज के दिन 
सब को बतायें 
बेटियों के सर्वश्रेष्ठ 
होने की बात को 
 गर्व से फैलायें 

आओ बिटिया 
आज तुम्हारे 
जन्मदिन 
के साथ सारी 
बिटियाओं 
का जन्मदिन 
मनायें 
बिटिया के 
जन्मदिन 
को इतना 
यादगार 
बनायें 

आओ 
बिटिया 
हम सब 
और तुम 
मिलकर 
फूलों 
तितलियों 
भवरों 
पेड़ पौंधौं 
नदी पहाड़ 
बादल 
समुद्र 
के साथ 
तुम्हारा 
जन्मदिन 
मनायें 
कुछ इस 
तरह से 
जैसे 
सब कुछ 
मिलकर 
इंद्रधनुष 
बन जाये
प्रकृति में 
प्रकृति का 
समावेश 
हो जाये 
याद करें 
सारी 
बेटियों को 
प्रार्थना करें 
सब के लिये 
सारी की 
सारी दुआयें 
तुम्हारे लिये 
एकत्रित 
कर लायें 
आओ 
बिटिया
आज 
मनायें 
हम सब 
मिलकर 
तुम्हारा 
जन्मदिन। 

 चित्र साभार: www.ahsbt.co