उलूक टाइम्स: फेसबुक
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गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

डाकिया डाकखाना छोड़ कर चिट्ठियाँ खुले आम खुले में खोल कर दिखा रहा है

शेरो शायरी
बहुत हो गयी
मजा उतना
नहीं आ रहा है

सुना है फिर से
चिट्ठियाँ लिखने
का चलन लौट
कर वापस
आ रहा है

कागज
कलम दवात
टिकट लिफाफे
के बारे में
पूछ रहा है कोई

कई दिनों से
इधर और उधर
के डाकखानों के
चक्कर लगा रहा है

चिट्ठियाँ
लिखना भेजना
डाकिये का पता
देख कर किसी
का घर ढूँढना
कितना होम वर्क
किया जा रहा है

बहुत जरूरी था
चिट्ठी लिखना
लिखवाना
समझ में भी
आ रहा है

फेस बुक
व्हाट्स अप
में अच्छी
तरह से
नहीं पीटा
जा रहा है

चिट्ठियाँ लिखी
जा रही हैं
उसके लिये
मुहूरत भी
निकाला
जा रहा है

बहस
नहीं होनी
चाहिये किसी मुद्दे पर
किसी विशेष दिन
समझ में आ रहा है

ध्यान भटकाना है
मुद्दे और दिन से
चिट्ठी लिखने की
सुपारी को

चिट्ठी
लिखवाने वाला
लिखने वाले
को उसी दिन
भिजवा रहा है

प्रेम पत्र नहीं
सरकारी
पत्र नहीं
कुशल क्षेम
पूछने में
शरमा रहा है

चिट्ठी प्यार का
संदेश नहीं
प्रश्नों का पुलिंदा
बनाया जा रहा है

चिट्ठी
लिख रहा है
लिखने वाला
लिफाफे में
बन्द कर
टिकट नहीं
लगा रहा है

डाकखाना
डाकिया की
बात कौन
किस से पूछे
‘उलूक’

लिखवाने वाला
गली मोहल्ले
सड़क की
दीवार पर
चिपका रहा है ।

चित्र साभार: Pinterest

सोमवार, 17 जुलाई 2017

फेस बुक मित्र के मित्रों के मित्रों के गिरोहों की खबरें

गिरोह
गिरोह की
बात करें

देखें
समझें
एक दूसरे को
आदाब करें

किसने
रोका है


खामखा
अकेले
चने को

भीड़ की
खबरें
दिखा कर

उसकी
शामें तो
ना बरबाद करें

माना कि
जमीन से
कुछ उठाने
के लिये
झुकना बहुत
जरूरी है

मिल कर झुकें
हाथ में हाथ
डाल कर झुकें

उठा लें
सारा
सब कुछ
मिल बाँट कर

मिट्टियाँ
अपने अपने
खेतों के नाम करें

सर उठा
कर जीने दें
एक दो पैर पर
खड़े इन्सान को

काट लें
बहुत जरूरी हो
सर कलम का
अगर मजबूरी हो

अपनी
खुद की
आँखों में

किसी
के शर्मसार
होने का ना
इन्तजाम करें

आपका
पन्ना है
आपके
दोस्त हैं

जो
करना है करें
कल्तेआम करें

जो
नहीं चाहता है
शामिल होना
गिरोहों के
जलसों
की खबरों में

उसके
पन्नों में
ले जा जाकर
खबरें अपनी

विज्ञापन
अपने अपने
धन्धों के
ना सरे आम करें

‘उलूक’
की आदत है
दिन के अंधेरे में
नहीं देखने के
बहाने लिखना

लिखने दें
भाड़ नहीं
फोड़ सकने
की खिसियाहट
उसे भी थोड़ी

मिल जुल कर
करें चीर हरण

खबर
अर्जुन ने
किया
बलात्कार

या फिर
कन्हैया
के ही
नाम करें।

चित्र साभार: Chatelaine

बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

फेसबुक में पोस्ट की गयी तस्वीर और स्टेटमेंट ही देशभक्ति होती है सारे देशभक्त समझ रहे होते हैं

जरूरत
नहीं है
आज के
अर्जुनों को
गाँडीव की
ना ही शंख
पाँचजन्य की
ना ही
जरूरत है
कृष्ण और
उसके
अर्जुन से किये
संवादों की
या किसी
गीता की
आज के
सारे अर्जुन
धृतराष्ट्र होने
में गर्व
महसूस
करते हैं
आँखे होती हैं
फिर भी
गाँधारी की
तरह नहीं
करते हैं
खुली आँख से
अपने सामने
हो रहे
कुछ भी को
देखना पसंद
नहीं करते हैं
जमाने के साथ
चलने
उठने बैठने
के शौकीन
होते हैं
अपने खुद के
दिमाग से
कुछ भी
सोचना अपनी
तौहीन
समझते हैं
दूर अंधेरे में
बैठे किसी
चमकीले
चमगादड़ की
चमक से
प्रभावित हो
कहीं भी
उल्टा लटक
किसी और
की उल्टी
बात पर
उल्टी कर
लेना पसन्द
करते हैं
अपने
आस पास
हो रही
लूट पर
चुप रहते हैं
कुछ नहीं
 कहते हैं
बेवकूफ
समझते हैं
दुनियाँ को
भौँकते हैं
अपनी
गलियों से
दूर कहीं
जा कर
वीडियो
फेसबुक में
अपलोड
किये होते हैं
‘उलूक’
जानता है
अपने मोहल्ले
अपनी गली
अपने शहर
के सियारों
को
नोच लेता है
अपने सिर के
बाल दो चार बस
जब सारे
शहर के सियार
देश के वफादार
कुत्ते होने का
दम भर कर
फेसबुक में
भौंक रहे होते हैं ।

 चित्र साभार: www.canstockphoto.com

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

रोज की बकबक से हटकर कुछ शब्द फेसबुक मित्र के आग्रह पर


                           सुमित जी की पुत्री अदिति के जन्मदिन पर 


https://www.facebook.com/photo.php?fbid=672690342904828&set=a.110634102443791.17445.100004916046065&type=3&theater 


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आओ 
बिटिया 
आज 
मनायें 
हम सब 
मिलकर 
तुम्हारा 
जन्मदिन 
थोड़ा थोड़ा 
सब मुस्कुराएं 
बाँटे खुशियाँ 
वर्ष के एक दिन 
कुछ बन जायें 
सुन्दर से फूल 
कुछ मधु 
मक्खियाँ 
और कुछ 
रंगबिरंगी 
तितलियाँ 
आओ बिटिया
आज सब 
मिलजुल कर 
इतना फैलायें 
रंग और खुश्बू 
इतना खिलायें 
और बाँटें 
प्यार से मधु 
आज के शुभ 
दिन के 
लिये ही नहीं 
आने वाले वर्ष 
के लिये ही नहीं 
हमेशा के लिये 
इतना इतना 
हो जाये 
जो सब की 
पहुँच तक 
पहुँचता 
चला जाये 
थोड़ा थोड़ा 

आओ बिटिया 
आज तुम्हारे 
जन्मदिन 
की इस 
दावत को 
यादगार 
एक बनायें 

बेटियों के प्यार 
बेटियों के व्यवहार 
बेटियों के उदगार 

आओ 
आज के दिन 
सब को बतायें 
बेटियों के सर्वश्रेष्ठ 
होने की बात को 
 गर्व से फैलायें 

आओ बिटिया 
आज तुम्हारे 
जन्मदिन 
के साथ सारी 
बिटियाओं 
का जन्मदिन 
मनायें 
बिटिया के 
जन्मदिन 
को इतना 
यादगार 
बनायें 

आओ 
बिटिया 
हम सब 
और तुम 
मिलकर 
फूलों 
तितलियों 
भवरों 
पेड़ पौंधौं 
नदी पहाड़ 
बादल 
समुद्र 
के साथ 
तुम्हारा 
जन्मदिन 
मनायें 
कुछ इस 
तरह से 
जैसे 
सब कुछ 
मिलकर 
इंद्रधनुष 
बन जाये
प्रकृति में 
प्रकृति का 
समावेश 
हो जाये 
याद करें 
सारी 
बेटियों को 
प्रार्थना करें 
सब के लिये 
सारी की 
सारी दुआयें 
तुम्हारे लिये 
एकत्रित 
कर लायें 
आओ 
बिटिया
आज 
मनायें 
हम सब 
मिलकर 
तुम्हारा 
जन्मदिन। 

 चित्र साभार: www.ahsbt.co

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

अंदर कुछ और और लिखा हुआ कुछ और ही होता है


सोच कर 
लिखना 
और 
लिख कर 
लिखे पर 
सोचना 

कुछ 
एक 
जैसा ही 
तो 
होता है 

पढ़ने वाले 
को तो बस 
अपने 
लिखे का 
ही 
कुछ 
पता होता है 

एक 
बार नहीं 
कई 
बार होता है 
बार बार होता है 

कुछ 
आता है
यूूँ ही खयालों में 

खाली दिमाग 
के 
खाली पन्ने 
पर 
लिखा हुआ 
भी तो 
कुछ 
लिखा होता है 

कुछ 
देर के लिये 
कुछ 
तो कहीं 
पर 
जरूर होता है 

पढ़ते पढ़ते ही 
पता नहीं 
कहाँ 
जा कर 
थोड़ी सी 
देर में ही 

कहाँ जा कर 
सब कुछ 
कहीं खोता है 

सबके 
लिखने में 
होते हैं गुणा भाग 

उसकी 
गणित 
के 
हिसाब से 
अपना 
गणित खुद पढ़ना 
खुद सीखना 
होता है 

देश में लगी 
आग 
दिखाने के लिये 
हर जगह होती है 

अपनी 
आँखों का 
लहू 
दूसरे की 
आँख में 
उतारना होता है 

अपनी बेशरमी
सबसे बड़ी 
शरम होती है 

अपने लिये 
किसी 
की 
शरम का 
चश्मा 
उतारना 
किसी 
की 
आँखों से 


कर सके कोई 
तो 
लाजवाब होता है 

वो 
कभी लिखेंगे 
जो लिखना है वाकई में 

सारे 
लिखते हैं 
उनका खुद का 
लिखना 
वही होता है 


जो कहीं भी 
कुछ भी 
लिखना ही नहीं होता है 

कपड़े ही कपड़े 
दिखा रहा होता है 
हर तरफ ‘उलूक’ 
बहुत फैले हुऐ 
ना पहनता है जो 
ना पहनाता है 

जिसका 
पेशा ही 
कपड़े उतारना होता है 

खुश दिखाना 
खुद को 
उसके पहलू में खड़े हो कर 
दाँत निकाल कर 
बहुत ही 
जरूरी होता है 

बहुत बड़ी 
बात होती है 
जिसका लहू चूस कर 
शाकाहारी कोई 

लहू से अखबार में 
तौबा तौबा 
एक नहीं 
कई किये होता है 

दोस्ती 
वो भी 
फेसबुक 
की करना 
सबके 
बस में कहाँ होता है 

इन सब को 
छोड़िये 
सब से 
कुछ अलग 
जो होता है 

एक 
फेस बुक का 
एक अलग
पेज हो जाना
होता है । 

चित्र साभार: www.galena.k12.mo.us

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

वैसे तो फेसबुक पर जो भी चाहे एक खाता खुलवा सकता है

लिखने लिखाने
के विषयों पर

क्या कहा
जा सकता है

कुछ भी कभी भी
खाली दिमाग को

फ्यूज होते
बल्ब के जैसे
चमका सकता है

कभी
घर की
एक बात
उठ सकती हैं

कभी
पड़ोसी का
पड़ोसी से पंगा

एक मसालेदार
मीनू बना सकता है

काम करने
की जगह पर
एक नहीं
कई पाकिस्तान
बनते बिगड़ते ही हैं

रोज का रोज
नवाज शरीफ
के भेजे आम
एक आम आदमी
कहाँ पचा सकता है

घर पर
आता भी हो
अगर
अखबार रोज

सामने के पन्ने
की खबरों पर
ज्यादा कुछ नहीं
कहा जा सकता है

उल्टी खोपड़ी वाले
उल्टा शुरु करते हैं
पढ़ना अखबार को

हमेशा ही
पता होता है
बस उन्हें ही

पीछे का पन्ना
कुछ ना कुछ
नया गुल
जरूर खिला
सकता है

‘अमर उजाला’
के पेज सोलह पर
आज ही छ्पी
शोध की खोज से
अच्छा विषय
क्या हो सकता है

लगा

ये तो
अच्छे खासों से
कुछ नया
कुछ करवा
सकता है

भारत
की खबरें
पकते पकाते
कच्ची पक्की
भले ही
रह सकती हैं

अमेरिका
से पका कर
भेजा हुआ ही
बिना जले भुने
भी आ सकता है

कहा गया है
बहुत दावे के साथ

‘शर्मीले लोग
फेसबुक पर बिताते
हैं ज्यादा वक्त’

दो सौ
प्रतिशत
सत्य है

और
बेशरमों को
ये
वक्तव्य
बहुत
बड़ी
राहत भी

दिलवा
सकता है


‘उलूक’
बेशरम
भी है


और

फेसबुक
पर भी

बिताता है
ज्यादा समय

किसी ने
कहाँ
किया

है शोध

कि
शोध
करने वालों
का हर तीर

निशाने
पर
जा
कर
ठिकाना
बना सकता है । 



चित्र: गूगल से साभार ।  

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

फेसबुक पर मिले एक संदेश का जवाब: बकवास रहने दीजिये कविता मत कहिये जनाब

S.k. SrivastavaJoshi ji ajkal apki kavitayen nahi aa rahi hai.



हाँ 
वो
आजकल 
नहीं आ रही है
जो बकवास आपको
कविता नजर आ रही है 

पता ही 
नहीं लग पा रहा है 
कहाँ जा रही है 

रोज ही 
कुछ ना कुछ 
देने आ जाती थी 
कुछ दिन से लग रहा है 
सब नहीं दे जाती थी 
कुछ कुछ छुपा भी ले जाती थी 

वैसे वो
आये 
या ना आये 
बहुत अंतर नहीं आता है 

आती है तो 
कोई ना कोई 
कुछ ना कुछ कह जाता है 
नहीं आती है 
तब भी खाना पच ही जाता है 

अब
जब 
आपने कहा 
वो आजकल नहीं आ रही है 
हमे भी लगा 
वाकई वो नहीं आ रही है 

फिर अगर
वो 
नहीं आ रही है 
तो पता तो लगना ही चाहिये 
कि वो 
कहाँ जा रही है 

अब 
आप ही
पता 
लगा दीजिये ना 
कुछ हमारा भी भला हो जायेगा 
कुछ होगा या नहीं 
ये बाद में फिर देखा जायेगा 

कम से कम 
आप की तरह कोई मेहरबान 
उसको पकड़ कर
वापिस 
मेरे पास ले आयेगा 

वापिस आ गयी 
फिर से
आने 
जाने लग जायेगी 
जैसे पहले 
आया जाया कर रही थी 
करना शुरु हो जायेगी 

फिर 
आप भी नहीं कह पायेंगे 
वो आजकल 
क्यों नहीं आ रही है 

क्या करें कैसे लिखें
बकवास ही सही
जब वो 
हमको ही आजकल
कुछ 
नहीं बता रही है

'उलूक' की बकवास 
कविता
कही जा रही है
बिना बात इतरा रही है।

चित्र साभार: 
https://sites.google.com/