उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

फिजाँ कैसी मीठी मीठी हो रही है मक्खियाँ ही मक्खियाँ हर तरफ हो रही हैं मधुमक्खियाँ नजर अब आती नहीं हैं ना जाने कहाँ सब लापता हो रही हैं


मक्खियाँ 
ही 
मक्खियाँ 

हो 
रही हैं 

हर तरफ 
से 

भिन भिन 
हो 
रही है 

बस 
कहाँ हैं 

पता नहीं 
चलने 
दे 
रही हैं 

ठण्ड 

बहुत 
हो 
रही है 

इस साल 

शायद 

सिकुड़
कर 
छोटी 
हो रही हैं 

महसूस 
भर 
हो रही हैं 

हर 
तरफ 
उड़ रही हैं 
मक्ख़ियाँ

बस 
दिखाई
नहीं दे रही हैं 

कलम 
हैंं 

मगर
उठ 
नहीं रही हैं 

बस 
थोड़ी बहुत 
घिसट 
सी 
रही हैं 

कागज कागज 
बैठी हुयी हैं 
मक्खियाँ 

कुछ 
लिखने
भी 

नहीं 
दे रही हैं 

इस
पर 
लिख कहीं 

उधर
से 
माँग 
हो रही है 

उस पर 
लिखने
की 
चाहत 

इधर 
भी 
हो रही है 

मक्खियाँ 
हैं 
कि 
सोच में 

बैठी 
ही 
नहीं हैं 

चारों 
तरफ 
लिखे लिखाये 
के 

उड़ती 
फिर रही हैं 

कितनी 
मीठी मीठी 
बारिशें 
हो 
रही हैं 

शायद 
मक्खियाँ 
भी 
ज्यादा 

इसलिये 
पैदा 
हो रही हैं 

इतना 
मीठा 
हो चुका है 

सारा 
सभी कुछ 

बस 
मधुमक्खियाँ
हैं 

कहीं
भी 
दिखाई 
नहीं 
दे रही हैं 

ना
जानें 
इधर 
कुछ 
सालों से 

क्यों 

लापता 
सी 
हो रही हैं 

लिखने लिखाने 
की 
जगह सारी 

भरी भरी 
सी 
हो रही हैंं 

कैसे लिखे 
कोई 
कुछ 

पता ही 
नहीं 
चल रहा है 

‘उलूक’ 

मक्खियों 
की 
नसबन्दियाँ 

कब से 
शुरु हो रही हैंं ? 

चित्र साभार: