मक्खियाँ
ही
मक्खियाँ
हो
रही हैं
हर तरफ
से
भिन भिन
हो
रही है
बस
कहाँ हैं
पता नहीं
चलने
दे
रही हैं
ठण्ड
बहुत
हो
रही है
इस साल
शायद
सिकुड़
कर
छोटी
हो रही हैं
महसूस
भर
हो रही हैं
हर
तरफ
उड़ रही हैं
मक्ख़ियाँ
बस
दिखाई
नहीं दे रही हैं
नहीं दे रही हैं
कलम
हैंं
मगर
उठ
नहीं रही हैं
बस
थोड़ी बहुत
घिसट
सी
रही हैं
कागज कागज
बैठी हुयी हैं
मक्खियाँ
कुछ
लिखने
भी
भी
नहीं
दे रही हैं
इस
पर
पर
लिख कहीं
उधर
से
से
माँग
हो रही है
उस पर
लिखने
की
की
चाहत
इधर
भी
हो रही है
मक्खियाँ
हैं
कि
सोच में
बैठी
ही
नहीं हैं
चारों
तरफ
लिखे लिखाये
के
उड़ती
फिर रही हैं
कितनी
मीठी मीठी
बारिशें
हो
रही हैं
शायद
मक्खियाँ
भी
ज्यादा
इसलिये
पैदा
हो रही हैं
इतना
मीठा
हो चुका है
सारा
सभी कुछ
बस
मधुमक्खियाँ
हैं
हैं
कहीं
भी
भी
दिखाई
नहीं
दे रही हैं
ना
जानें
जानें
इधर
कुछ
सालों से
क्यों
लापता
सी
हो रही हैं
लिखने लिखाने
की
जगह सारी
भरी भरी
सी
हो रही हैंं
कैसे लिखे
कोई
कुछ
पता ही
नहीं
चल रहा है
‘उलूक’
मक्खियों
की
नसबन्दियाँ
कब से
शुरु हो रही हैंं ?
चित्र साभार: