उलूक टाइम्स: तिरंगा
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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

जन्म दिन अभी तक तो तेरा ही हो रहा है आज के दिन कौन जाने कब तक

कुछ देर के लिये
याद आया तिरंगा

उससे अलग कहीं
दिखी तस्वीर
संत की
माने बदल गये

यहाँ तक आते आते
उसके भी इसके भी

एक
डिजिटल हो गया
दूसरे की याद भी
नहीं बची कहीं

दिखा थोड़ा सा बाकी
अमावस्या के चाँद सा

समय के साथ साथ
कुछ खो गया

सोच सोच में पड़ी
कुछ डरी डरी सी

कहीं किसी को
अंदाज
आ गया हो
सोचने का
श्राद्ध पर्व
पर जन्मदिन
के दिन का

दिन भी सूखा
दिन हो गया
याद आया कुछ
सुना सुनाया

कुछ कहानियाँ
तब की सच्ची
अब की झूठी

बापू
कुछ नहीं कहना
जरूरतें बदल गई
हमारी वहाँ से
यहाँ तक आते आते

तेरे जमाने
का सच
अब झूठ

और झूठ
उस समय का
इस समय का
सबसे बड़ा सच भी
निर्धारित हो गया

जन्मदिन
मुबारक हो
फिर भी बहुत बहुत

बापू
दो अक्टूबर
का दिन अभी तो
तेरा ही चल रहा है

भरोसा नहीं है
कब कह जाये कोई
अब और आज
से ही इस जमाने के
किसी नौटंकी बाज की
नौटंकी का दिन हो गया ।

चित्र साभार: caricaturez.blogspot.com

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

आम में खास खास में आम समझ में नहीं आ पा रहा है

आज का नुस्खा
दिमाग में आम
को घुमा रहा है
आम की सोचना
शुरु करते ही
खास सामने से
आता हुआ नजर
आ जा रहा है
कल जब से
शहर वालों को
खबर मिली कि
आम आज जमघट
बस आमों में आम
का लगा रहा है
आम के कुछ खासों
को बोलने समझाने
दिखाने का एक मंच
दिया जा रहा है
खासों के खासों का
जमघट भी जगह
जगह दिख जा रहा है
जोर से बोलता हुआ
खासों का एक खास
आम को देखते ही
फुसफुसाना शुरु
हो जा रहा है
आम के खासों में
खासों का आम भी
नजर आ रहा है
टोपी सफेद कुर्ता सफेद
पायजामा सफेद झंडा
तिरंगा हाथ में एक
नजर आ रहा है
वंदे भी है मातरम भी है
अंतर बस टोपी में
लिखे हुऐ से ही
हो जा रहा है
“उलूक” तो बस
इतना पता करना
चाह रहा है
खास कभी भी
नहीं हो पाया जो
उसे क्या आम में
अब गिना जा रहा है ।