उलूक टाइम्स: दीमक
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शनिवार, 1 जून 2019

बकवास अपनी कह कह कर किसी और को कुछ कहने नहीं देते हैं

बहुत कुछ है 
लिखने के लिये बिखरा हुआ 
समेटना ठीक नहीं इस समय
रहने देते हैं

होना कुछ नहीं है हिसाब का 
बेतरतीब ला कर 
और बिखेर देते हैं 
बहे तो बहने देते हैं

दीमकें जमा होने लगी हैं फिर से
नये जोश नयी ताकतों के साथ 
कतारें कुछ सीधी कुछ टेढ़ी 
कुछ थमने देते हैं 

आती नहीं है नजर 
मगर होती है खूबसूरत 
आदेश कतारबद्ध होने के 
रानी को 
घूँघट के पीछे से देने देते हैं

तरीके लूटने के नये 
अंगुलियाँ अंगुलीमाल के लिये 
साफ सफाई हाथों की जरूरी है 
डेटोल डाल कर धोने देते हैं 

बज रही हैं दुंदुभी रण की 
कोई नहीं है कहीं दूर तक 
शोर को गोलियों के 
संगीत मान चुके सैनिकों को 
सोने देते हैं 

दहाड़ सुनते हैं 
कुछ कागज के शेरों की 
उन्हें भी शहर के जंगलों की 
कुछ कागजी कहने देते हैं 

लिखना क्या सफेद कागज पर 
काली लकीरों को 
नावें बना कर रेत की नदी में 
तेजी से बहने देते हैं 

गाँधी झूठ के पर्याय 
खुल के झूठ बोलते रहे हैं सुना है 
सच तोलने वालों को चलो अब 
खुल के उनके अपने नये बीज 
बोने देते हैं

सच है दिखता है 
उनके अपने आईने से जो भी 
उन्हें सम्मानित कर ही देते हैं 

अखबार के पन्ने सुबह के 
बता देते हैं 
पढ़ने वालों में से कुछ रो ही लेते हैं 
तो रोने देते हैं 

बकवास करने में लगे कर 
जारी हों लाईसेंस 
सेंस में रहना अच्छा नहीं 
नाँनसेंस ‘उलूक’ जैसे 
अपनी कह कह कर 
किसी और को कुछ कहने नहीं देते हैं । 

चित्र साभार: clipartimage.com/

रविवार, 21 जनवरी 2018

‘बीस साल तक आपके घर का कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी दीमक’ : जब इस तरह के समाचार को देखते हैं

कभी
अखबार
को देखते हैं

कभी
अखबार
में छपे
समाचार
को देखते हैं

पन्ने
कई होते हैं
खबरें
कई होती हैं 

पढ़ने वाले
अपने
मतलब के

छप रहे
कारोबार
को देखते हैं

सीधे चश्मे से
सीधी खबरों
पर जाती है
सीधे साधों
की नजर

केकड़े कुछ
टेढ़े होकर

अपने जैसी
सोच पर
असर डालने
वाली
टेढ़ी खबर
के टेढ़े
कलमकार
को देखते हैं

रोज ही कुछ
नया होता है
हमेशा खबरों में

आदत के मारे
कुछ पुरानी
खबरों
से बन रहे

सड़
रही खबरों
के अचार
को देखते हैं

‘हिन्दुस्तान’
लाता है
कभी कभी
कुछ
सदाबहार खबरें

कुछ
आती हैं
समझ में
कुछ
नहीं आती हैं 

समझे बुझे
ऐसी खबरों
के खबरची
खबर छाप कर
जब अपनी
असरदार
सरकार को
देखते हैं

‘उलूक’
और
उसके

साथी दीमक
आसपास की
बाँबियों के

चिलम
लिये हाथ में

फूँकते
समय को

उसके धुऐं से
बन रहे छल्लों
की धार
को देखते हैं ।

चित्र साभार: दैनिक ‘हिंदुस्तान’ दिनाँक 21 जनवरी 2018

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

दीमक है इतनी जल्दी हरियाली देख कर कैसे हार जायेगा

सड़े हुऐ पेड़
की फुनगी पर
कुछ हरे
पत्ते दिखाई
दे रहे हैं

का समाचार लेकर
अखबारी दीमक
दीमकों की
रानी के पास
डरते डरते
जा पहुँचा

उसके मुँह पर
उड़ रही हवा
को देखकर
रानी ने अपने
मंत्री दीमक
को इशारा
करके पूछा

क्या बात है
क्या हो गया
इस को देख कर
तो लग रहा है
जैसे कहीं कोई
बहुत बड़ा तूफान
है आ बैठा

मंत्री मुस्कुराया
थोड़ा उठा
रानी जी के
नजदीक पहुँच कर
कान में फुसफुसाया

महारानी जी
कुछ भी कहीं
नहीं हुआ है
इसको थोड़ी
देर के लिये
कुछ मतिभ्रम सा
कुछ हो गया है

दो चार हरे पत्ते
पेड़ पर देख कर
क्या आ गया है

सारा जंगल हरा
हो जाने वाला है
सोच कर ही
फालतू में
चकरा गया है

आप क्यों
बेकार में
परेशान होने
जा रही हैं

कुछ मजबूत
दीमकों को
आज से
नई तरह से
काम शुरु करने
का न्योता
भेजा गया है

हमारे दीमक
इतना चाट चुके
हैं पेड़ की लकड़ी को

वैसे भी चाटने
के लिये कहीं
कुछ बचा क्या है

पुराने दीमकों को
छुट्टी पर इसलिये
कल से ही
भेज दिया गया है

नये दीमक
नई उर्जा से
चाटेंगे पेड़ के
कण कण को

यही संदेश
हर कोने कोने पर
पहुँचा दिया गया है

पीले दीमक
पीछे को
चले जा रहे हैं

लाल दीमक
झंडा अपना
अब लहरा रहे हैं

इस
बेवकूफ को
क्या पता
कहाँ कहाँ
इस युग में
क्या से क्या
हो गया है

पेड़ को भी
पता नहीं
आज ही
आज में
ना जाने
क्या हो गया है

बुझते हुऐ दिये
की जैसे एक
लौ हो गया है

चार हरे पत्तों से
क्या कुछ हो जायेगा

बेवकूफ
जानता ही नहीं

नया दीमक
लकड़ी के
साथ साथ
हरे पत्ते
सलाद
समझ कर
स्वाद से
खा जायेगा ।

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

दीमकों में से हो और दीमक नहीं हो नहीं होता है !



दीमकों
का काम
ही होता है
कुतरना

उसी
काम को
वो करते
जा रहे हैं

सारे दीमक
कुतरने में
लगे हुऎ हैं
जब एक
निकाय को

हे दीमक

तेरे
रंग ढंग
मेरी
समझ में तो
नहीं आ रहे हैं

दीमक है
दीमकों के
बीच में रहता है

दीमक हूँ भी
हमेशा से
खुद ही कहता है

फिर
वो कौन लोग हैं

जो
तुझ को
तेरे पेशे से ही
दूर ले जा रहे हैं

ऎसी
अजीब सी
हरकत तुझसे
पता नहीं क्यों
करवा रहे हैं

लगता है
दीमकों की
रानी का
नहीं होना

तेरे
कदमों को
पीछे को
ले जा रहे हैं

समझता
क्यों नहीं

राजतंत्र
अब बचा नहीं

दीमक ही
उसे कुतर कर
दफना कर के
आ रहे हैं

दीमकतंत्र
का आह्वान
किया जा चुका है

दीमकों
के बीच से ही एक को
दीमकों
की रानी की
कुर्सी में बैठाया
भी जा चुका है

दीमक
अब दीमकतंत्र
को फैला रहे हैं

उसी का बाजा
बजा रहे हैं
उसी को खाये
भी जा रहे हैं

दीमक हैं
और
दीमकों के जैसे
कामों को ही
तो कर रहे हैं

खुद कुतर रहे हैं
कुतरने के काम ही
करवाऎ जा रहे हैं

ये सब तो आम
सी ही बातें हैं
इस को हम कहाँ
किसी को समझाने
को जा रहे हैं

पर दीमकों मे से
एक दीमक इतना
ऎबनार्मल हो जायेगा

बस यही बात
अपने गले के नीचे
नहीं उतार पा रहे हैं

समझता क्यों नहीं
कुतरने का काम तो
चलता ही चला जायेगा

निकाय को
गिरना ही है
एक दिन
वो गिर कर
जमीन पर
आ ही जायेगा

दीमकों ने
कुतर कुतर
के खा दिया है अंदर से

किसी को
कहाँ ये सब
पता चल पायेगा

गिरने से पहले ही
हर दीमक भाग कर
दूसरी नयी जगह पर
जब पहुँच जायेगा

ना तेरा नाम होगा
नहीं कुतरने वालों में
ना कुतरने वालों को
ही कहीं गिना जायेगा

वो सब भी
दीमक ही रहेंगे
तुझे भी दीमकों में
ही गिना जायेगा

आपदा के नाम से
किसी के हाथ में एक
कटोरा जरूर आ जायेगा

दीमकों को कहीं
और कुतरने के काम
के लिये भेज दिया जायेगा

तू कुतर
तू ना कुतर
तुझे दीमक ही तो
तब भी कहा जायेगा

सारे दीमक लगे हैं
जब कुतरने में
कोई इतना समय
कहाँ निकाल पायेगा

फिर
ये बात पता नहीं
कौन आ कर
तुझे इस समय
समझायेगा

हे दीमक
तू दीमक था
दीमक है
दीमक ही रहेगा
दीमक ही
एक कहलायेगा ।