उलूक टाइम्स: कब तलक लिखे और कैसा लिखे कोई अगर लिखे कुछ भी का कुछ भी याद ही ना रहे

मंगलवार, 26 मई 2020

कब तलक लिखे और कैसा लिखे कोई अगर लिखे कुछ भी का कुछ भी याद ही ना रहे




भड़ास
नदी नहीं होती है

इसलिये
बहती नहीं है

बहते हुऐ
के
चारों ओर
कोलाहल
होता है

लोग
इसीलिये
बकवास
नहीं करते हैं

ऐसा नहीं
कि
नहीं
कर सकते हैं

सकारात्मकता
ही
तो बस
एक
दिखाने की
चीज होती है

लिखे हुऐ की
परीक्षा की जाती है

उसके ऊपर से
आईना फिरा कर
प्रतिबिम्ब
दिखाने के लिये
बचा लिया जाता है

लिखा
फाड़ दिया जाता है
कहना
तो ठीक नहीं है

 मिटा दिया जाता है
होना चाहिये
समय के हिसाब से

प्रतिबिम्ब
छलावा
हो सकता है

सकारात्मक
सोच के हिसाब से

नकारात्मक सोच
उलझी रहती है
प्रतिबिम्बों से

कुछ नहीं
लिख पाना
या
कुछ नहीं
लिखना
एक लम्बे समय तक

या
रोज
कुछ ना कुछ
या
बहुत कुछ
लिख देने में

कोई खास
अन्तर नहीं होता है

अपना
चेहरा ही
जब देखना है
आईने में
तो
क्या फर्क पड़ता है

खूबसूरत
या
सुन्दर से

सब
सुन्दर है
जो रचा गया है

बाकी
भड़ास है
यानि
कि
बकवास

बकवास
के
पैर नहीं होते है
फिर भी
सबसे दूर तलक
वही जाती है

बकवास
करने वाले पर ही
चालिसा
गढ़ी जाती है

सफलता
समझ में आना
या
समझा ले जाना
से
कोसों दूर
चली जाती है

अंधेरी
रात में
शमशान में
कम हो चुके
लोगों की संख्या
से
 चिंतित

‘उलूक’
हमेशा की तरह

मुँह
ऊपर कर
आकाश में टिमटिमाते
तारों में

गिनती भूल जाने
के
वहम के साथ
खो जाने की
अवस्था का चित्र
सोचते हुऐ

चोंच
ऊपर किये हुऐ
पक्षी का योग
 कैसे
किया जा सकता है

सकारात्मकता
के
मुखौटों को
तीन सतह का मास्क
पहनाना
चाहता है।

चित्र साभार: : https://www.npr.org/



23 टिप्‍पणियां:

  1. बकवास
    के
    पैर नहीं होते है
    फिर भी
    सबसे दूर तलक
    वही जाती है...... सत्य वचन।

    जवाब देंहटाएं

  2. बकवास
    करने वाले पर ही
    चालीसा
    गढ़ी जाती है।
    ---
    सकारात्मकता ऊर्जा है सर
    जिसके ताप से कोई भी तरह का मुखौटा उतर जाता है।
    ...
    हमेशा की तरह अनेक विषय का सार्थक निचोड़।
    सादर प्रणाम सर।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 27 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. "" भड़ास
    नदी नहीं होती है
    इसलिये
    बहती नहीं है ""...
    इसीलिए रिसती रहती है .. बिना कोलाहल किए .. ताउम्र ...

    जवाब देंहटाएं
  5. इसलिए भड़ास लिखो ... या फिर बकवास जिसके पैर न होते हुए भी दूर तक चलती है चटखारे ले कर ...

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!आदरणीय सुशील सर ,बहुत खूब !बकवास के पैर नहीं होते ,फिर भी वह दूर तलक जाती है ...सत्य वचन ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बाकी
    भड़ास है
    यानि
    कि
    बकवास
    बकवास के
    पैर नहीं होते है
    फिर भी
    सबसे दूर तलक
    वही जाती है
    सही कहा बिना पैर के भी बकवास दूर तलक जाती है......। जमाना ही बकवास का है आजकल....
    सीधे सच्चे बोलने वाले को सुनता ही कौन है
    बहुत सुन्दर सृजन...
    वाह!!!!

    जवाब देंहटाएं
  8. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3715 में दिया जाएगा
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

    जवाब देंहटाएं
  9. सकारात्मकता यही होती है
    बहुत सटीक रचना

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. यूँ हीं सामयिक सार्थक चित्रण करते रहिए

    जवाब देंहटाएं
  11. सकारात्मकता
    ही
    तो बस
    एक
    दिखाने की
    चीज होती है

    लिखे हुऐ की
    परीक्षा की जाती है

    उसके ऊपर से
    आईना फिरा कर
    प्रतिबिम्ब
    दिखाने के लिये
    बचा लिया जाता है... यथार्थ को बड़ी आसानी से इंगितकर यथार्थ को आईना दिखता सार्थक सृजन.
    चोंच
    ऊपर किये हुऐ
    पक्षी का योग
    कैसे
    किया जा सकता है

    सकारात्मकता
    के
    मुखौटों को
    तीन सतह का मास्क
    पहनाना
    चाहता है।..वाह!लाजवाब सृजन.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  12. बकवास
    के
    पैर नहीं होते है
    फिर भी
    सबसे दूर तलक
    वही जाती है
    गहरी और सार्थक पोस्ट।

    जवाब देंहटाएं
  13. कुछ नहीं
    लिख पाना
    या
    कुछ नहीं
    लिखना
    एक लम्बे समय तक

    या
    रोज
    कुछ ना कुछ
    या
    बहुत कुछ
    लिख देने में

    कोई खास
    अन्तर नहीं होता है

    अपना
    चेहरा ही
    जब देखना है
    आईने में
    तो
    क्या फर्क पड़ता है

    खूबसूरत
    या
    सुन्दर से

    सब
    सुन्दर है
    जो रचा गया है
    वाह ,बहुत खूब कहा है ,बहुत ही बढ़िया

    जवाब देंहटाएं
  14. बकवास
    के
    पैर नहीं होते है
    फिर भी
    सबसे दूर तलक
    वही जाती है
    सटीक टिपण्णी

    जवाब देंहटाएं
  15. बकवास
    के
    पैर नहीं होते है
    फिर भी
    सबसे दूर तलक
    वही जाती है।
    खूब कहा आपने सुशील जी 👌👌👌

    जवाब देंहटाएं
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