सुना है
अलादीन
भी आजकल
कुछ कुछ
लिख रहा है
चिराग को
घिसना भी
जरूरी है
उसकी सबसे
बड़ी मजबूरी है
लिखता है
लिखने में
उसे पता है
कुछ भी तो
नहीं लगता है
विद्वानों का
अलादीन
भी आजकल
कुछ कुछ
लिख रहा है
चिराग को
घिसना भी
जरूरी है
उसकी सबसे
बड़ी मजबूरी है
लिखता है
लिखने में
उसे पता है
कुछ भी तो
नहीं लगता है
विद्वानों का
लिखा जैसा
नहीं भी
हो पाता है
कथा कहानी
कविता शायरी
नहीं भी उसे
कहा जाता है
लोग देखते हैं
समझने की कुछ
कोशिश करते हैं
अलादीन के पास
चिराग भी होता है
चिराग के अंदर ही
सिकुड़ कर उसका
जिन्न भी सोता है
चिराग घिसते ही
जिन्न बाहर
आ जाता है
बाहर निकल कर
विशालकाय
हो जाता है
जो भी उससे
माँगा जाता है
चुटकी में सामने
से ले आता है
फिर अलादीन
जो भी देख सुन
कर आता है
जिन्न को क्यों
नहीं बताता है
खुद ही लिखने
क्यों बैठ जाता है
अलादीन विद्वान
नहीं भी होता है
समाज में तो आंखिर
यहीं के रहता है
रहते रहते बहुत कुछ
सीख जाता है
रोज लिखता है
वो सब जो उसे
साफ साफ या
कुछ धुँधला भी
कहीं दिख जाता है
लिखने के बाद
चिराग घिसना
शुरु हो जाता है
जिन्न के निकलते
ही बाहर उसे
कुछ पढ़ने वालों को
ढूंढने के लिये
भिजवाता है
लिखते लिखाते
दिन गुजर जाता है
दूसरे दिन का
लिखना लिखाना
भी शुरु हो जाता है
जिन्न तब तक भी
मगर लौट कर
नहीं आ पाता है ।
चित्र साभार: dlb-network.com
नहीं भी
हो पाता है
कथा कहानी
कविता शायरी
नहीं भी उसे
कहा जाता है
लोग देखते हैं
समझने की कुछ
कोशिश करते हैं
अलादीन के पास
चिराग भी होता है
चिराग के अंदर ही
सिकुड़ कर उसका
जिन्न भी सोता है
चिराग घिसते ही
जिन्न बाहर
आ जाता है
बाहर निकल कर
विशालकाय
हो जाता है
जो भी उससे
माँगा जाता है
चुटकी में सामने
से ले आता है
फिर अलादीन
जो भी देख सुन
कर आता है
जिन्न को क्यों
नहीं बताता है
खुद ही लिखने
क्यों बैठ जाता है
अलादीन विद्वान
नहीं भी होता है
समाज में तो आंखिर
यहीं के रहता है
रहते रहते बहुत कुछ
सीख जाता है
रोज लिखता है
वो सब जो उसे
साफ साफ या
कुछ धुँधला भी
कहीं दिख जाता है
लिखने के बाद
चिराग घिसना
शुरु हो जाता है
जिन्न के निकलते
ही बाहर उसे
कुछ पढ़ने वालों को
ढूंढने के लिये
भिजवाता है
लिखते लिखाते
दिन गुजर जाता है
दूसरे दिन का
लिखना लिखाना
भी शुरु हो जाता है
जिन्न तब तक भी
मगर लौट कर
नहीं आ पाता है ।
चित्र साभार: dlb-network.com