संदर्भ: व्यक्तिगत और संस्थागत परीक्षार्थी।
राज्यपाल की समझ में आयेगी बात क्योंकि परीक्षा निधी की लेखा जाँच गोपनीयता के मुखौटे के पीछे छिपा कर नहीं होने दी जाती है। पूरे देश को देखिये अरबों का झमेला है।
आभार उनका ।
आता है
एक सरकारी
आदेश
उस समय
जब अपदस्त
होती है
जनता की
सरकार
आदेश
छीन लेने का
सारे कटोरे
सभी सफेदपोश
भिखारियों के
और
दे
दिये जाते हैं
उसी समय
उसी आदेश
के साथ
सारे कटोरे
कहीं और के
तरतीब के साथ
लाईन
लगाने
और
माँग कर
खाने वाले
पेट भरे हुऐ
भूखे
भिखारियों को
खबर
अखबार
ही देता है
रोज की
खबरों
की तरह
पका कर
खबर को
बिना नमक
मिर्च धनिये के
खुश होते हैं
कुछ लोग
जिनको
पता होता है
समृद्ध
पढ़े लिखे
बुद्धिजीवी
भिखारियों
के भीख
मांगने
और
बटोरने
के तरीकों
और
उनके
कटोरों का
उसी
समय लेकिन
समय भी
नहीं लगता है
उठ खड़ा
होता है
सवाल
अखबार
समाचार
और
खबर देने
वालों के
अखबारी
रिश्तेदारों
के कटोरों का
जिनका कटोरा
कहीं ना कहीं
कटोरों से
जुड़ा होता है
पता
चलता है
दूसरे दिन
सुबह का
अखबार
गवाही देना
शुरु होता है
पुराने
शातिर
सीखे हुए
भिखारियों
की तरफ से
कहता है
बहुत
परेशानी
हो जायेगी
जब भीख
देने वालों
की जेबें
फट जायेंगी
दो रुपियों
की भीख
चार रुपिया
हो जायेगी
बात
उस
भीख की
हो रही
होती है
जो करोड़ों
की होती है
अरबों की
होती है
जिसे नहीं
पाने से
बदहजमी
डबलरोटी
कूड़ेदान में
डालने वालों को
हो रही होती है
जनता को
ना मतलब
कटोरे से
होता है
ना कटोरे
वालों से
होता है
अखबार
वालों को
अमीर
भिखारियों के
खिलाफ
दिये गये
फैसले से
बहुत खुजली
हो रही होती है
पहले दिन
की खबर
दूसरे दिन
मिर्च मसाले
धनिये से
सजा कर
परोसी गई
होती है
‘उलूक’ से
होना कुछ
नहीं होता है
हमेशा
की तरह
उसके पेट में
गुड़ गुड़ हो
रही होती है
बस ये
देख कर
कि
किसी को
मतलब ही
नहीं होता है
इस बात से
कि भीख
की गंगा
करोड़ो की
हर वर्ष
आती जाती
कहाँ है
और
किस जगह
खर्च हो
कर बही
जा रही
होती है ।
चित्र साभार: www.canstockphoto.com
आता है
एक सरकारी
आदेश
उस समय
जब अपदस्त
होती है
जनता की
सरकार
आदेश
छीन लेने का
सारे कटोरे
सभी सफेदपोश
भिखारियों के
और
दे
दिये जाते हैं
उसी समय
उसी आदेश
के साथ
सारे कटोरे
कहीं और के
तरतीब के साथ
लाईन
लगाने
और
माँग कर
खाने वाले
पेट भरे हुऐ
भूखे
भिखारियों को
खबर
अखबार
ही देता है
रोज की
खबरों
की तरह
पका कर
खबर को
बिना नमक
मिर्च धनिये के
खुश होते हैं
कुछ लोग
जिनको
पता होता है
समृद्ध
पढ़े लिखे
बुद्धिजीवी
भिखारियों
के भीख
मांगने
और
बटोरने
के तरीकों
और
उनके
कटोरों का
उसी
समय लेकिन
समय भी
नहीं लगता है
उठ खड़ा
होता है
सवाल
अखबार
समाचार
और
खबर देने
वालों के
अखबारी
रिश्तेदारों
के कटोरों का
जिनका कटोरा
कहीं ना कहीं
कटोरों से
जुड़ा होता है
पता
चलता है
दूसरे दिन
सुबह का
अखबार
गवाही देना
शुरु होता है
पुराने
शातिर
सीखे हुए
भिखारियों
की तरफ से
कहता है
बहुत
परेशानी
हो जायेगी
जब भीख
देने वालों
की जेबें
फट जायेंगी
दो रुपियों
की भीख
चार रुपिया
हो जायेगी
बात
उस
भीख की
हो रही
होती है
जो करोड़ों
की होती है
अरबों की
होती है
जिसे नहीं
पाने से
बदहजमी
डबलरोटी
कूड़ेदान में
डालने वालों को
हो रही होती है
जनता को
ना मतलब
कटोरे से
होता है
ना कटोरे
वालों से
होता है
अखबार
वालों को
अमीर
भिखारियों के
खिलाफ
दिये गये
फैसले से
बहुत खुजली
हो रही होती है
पहले दिन
की खबर
दूसरे दिन
मिर्च मसाले
धनिये से
सजा कर
परोसी गई
होती है
‘उलूक’ से
होना कुछ
नहीं होता है
हमेशा
की तरह
उसके पेट में
गुड़ गुड़ हो
रही होती है
बस ये
देख कर
कि
किसी को
मतलब ही
नहीं होता है
इस बात से
कि भीख
की गंगा
करोड़ो की
हर वर्ष
आती जाती
कहाँ है
और
किस जगह
खर्च हो
कर बही
जा रही
होती है ।
चित्र साभार: www.canstockphoto.com