अब
छोड़ भी
दे नापना
इधर
और उधर
अपने
खुद के
पैमाने से
छोड़ भी
दे नापना
इधर
और उधर
अपने
खुद के
पैमाने से
कभी पूछ
भी लिया कर
अभी भी
सौ का
ही सैकड़ा है
क्या जमाने से
लगता नहीं है
कल ही तो
कहा था
किसी ने
शराब लाने
के लिये
घर के
अन्दर से
लड़खड़ाता
हुआ कुछ
ही देर पहले
ही शायद
निकल के
आया था वो
मयखाने से
ना पीना
बुरा है
ना पिलाने
में ही कोई
गलत बात है
साकी खुद ही
ढूँढने में लगी
दिख रही है
इस गली और
उस गली में
फिरती हुई
उसे भी
मालूम हो
चुका है
फायदा है
तो बस
बेशर्मी में
नुकसान ही
नुकसान है
हर तरफ
हर जगह
हर बात पर
बस शरमाने से
निकल चल
मोहल्ले से
शहर की ओर
शहर से
जिले की ओर
जिले से छोटी
राजधानी की ओर
छोटी में होना
और भी बुरा है
निकल ले
देश की
राजधानी
की ओर
किसी
को नहीं
पता है
किसी को
नहीं मालूम है
किसी को
नहीं खबर है
किस की
निविदा
पर लग रही
मुहर है
बात ठेके की है
ठेकेदार बहुत हैं
किस ने कहा है
टिका रह
मतदाता के
आसपास ही
कुछ नहीं
होना है अब
किसी का
दरवाजा बेकार
में खटखटाने से
कोशिश जरुरी हैं
तोड़ने की किसी
भी सीमा को
बत्तियाँ जरूरी हैं
लाल हों
हरी हों नीली हों
देश भक्ति का
प्रमाण बहुत
जरूरी है
झंडे लगाने
का ईनाम
ईनाम नहीं
होता है
खाली बातों
बातों में ही
बताने से
चयन
हो रहा है
दिख रहा है
जातियों से
उसूलों के
दिखावों वालों
के बीच भी
आदमी के
लिये है रखा है
उसने शमशान
और कब्रगाह
बहुत है
दो गज जमीन
सुकून से
जाने के लिये
आभार आदमी
का आदमी को
आदमी के लिये
रहने दे
किस लिये
उलझता है
किसी फसाने से
बहक रहा हो
जमाना जहाँ
किस लिये डरना
बहकने से
कलम के लिखने से
खुद की अच्छा है
‘उलूक’
कहे तो सही
कोई
तुझसे कुछ
यही होता है
छुपाने से
कुछ भी
किसी भी
बनते हुऐ
किसी
अफसाने से ।
चित्र साभार: news.myestatepoint.com
भी लिया कर
अभी भी
सौ का
ही सैकड़ा है
क्या जमाने से
लगता नहीं है
कल ही तो
कहा था
किसी ने
शराब लाने
के लिये
घर के
अन्दर से
लड़खड़ाता
हुआ कुछ
ही देर पहले
ही शायद
निकल के
आया था वो
मयखाने से
ना पीना
बुरा है
ना पिलाने
में ही कोई
गलत बात है
साकी खुद ही
ढूँढने में लगी
दिख रही है
इस गली और
उस गली में
फिरती हुई
उसे भी
मालूम हो
चुका है
फायदा है
तो बस
बेशर्मी में
नुकसान ही
नुकसान है
हर तरफ
हर जगह
हर बात पर
बस शरमाने से
निकल चल
मोहल्ले से
शहर की ओर
शहर से
जिले की ओर
जिले से छोटी
राजधानी की ओर
छोटी में होना
और भी बुरा है
निकल ले
देश की
राजधानी
की ओर
किसी
को नहीं
पता है
किसी को
नहीं मालूम है
किसी को
नहीं खबर है
किस की
निविदा
पर लग रही
मुहर है
बात ठेके की है
ठेकेदार बहुत हैं
किस ने कहा है
टिका रह
मतदाता के
आसपास ही
कुछ नहीं
होना है अब
किसी का
दरवाजा बेकार
में खटखटाने से
कोशिश जरुरी हैं
तोड़ने की किसी
भी सीमा को
बत्तियाँ जरूरी हैं
लाल हों
हरी हों नीली हों
देश भक्ति का
प्रमाण बहुत
जरूरी है
झंडे लगाने
का ईनाम
ईनाम नहीं
होता है
खाली बातों
बातों में ही
बताने से
चयन
हो रहा है
दिख रहा है
जातियों से
उसूलों के
दिखावों वालों
के बीच भी
आदमी के
लिये है रखा है
उसने शमशान
और कब्रगाह
बहुत है
दो गज जमीन
सुकून से
जाने के लिये
आभार आदमी
का आदमी को
आदमी के लिये
रहने दे
किस लिये
उलझता है
किसी फसाने से
बहक रहा हो
जमाना जहाँ
किस लिये डरना
बहकने से
कलम के लिखने से
खुद की अच्छा है
‘उलूक’
कहे तो सही
कोई
तुझसे कुछ
यही होता है
छुपाने से
कुछ भी
किसी भी
बनते हुऐ
किसी
अफसाने से ।
चित्र साभार: news.myestatepoint.com