हवा में तैरती ही हैं हर वक्त
कथा कहानी कविताऎं
जरूरी कहाँ होता है
सब की नजर में
सब के सब ऎसे ही आ ही जायें
सबको पसंद आ जायें
शैतानियाँ बच्चों की चुहुल बाजी
कहीं कहीं खट्टी कहीं मीठी झिड़कियां
दरवाजे के किनारे से झांकने का
अपना एक अलग मजा है
अपना एक अलग मजा है
किसी को दिख रही होती हैं खिड़कियां
कोई फर्क नहीं पड़ता है
जालियों में जाले लगे हो या नहीं
जब झांकने की आदत हो जाये
आँख बंद कर
बंद दरवाजे के अंदर तक झांक लेता है कोई
बंद दरवाजे के अंदर तक झांक लेता है कोई
किसी को फर्क नहीं पड़ता
किसी के बच्चों को कोई
स्कूल अगर पहुँचाने में लगा हो
क्या होता है अगर सुबह का दूध
डेयरी से लाकर रोज दे जाने लगा हो
अपने अपने शौक अपनी अपनी महारथ
कोई हाथ की सफाई में माहिर
कोई दिल पर डाके डालने में उस्ताद
घर में एक अलग बाहर के लिये अलग
बहुत कम होते हैं मगर होते हैं किताबी कीडे़
बस चले तो पढ़ाने वाले को ही खा जायें
रोज रोज के पूछने का झंझट हो दूर
एक दिन में ही सारी समस्यायें खुद सुलझ जायें
कोई अगर खाली होती कुर्सियों की
गिनती कर रहा हो
तो इसमें किसी के बाप का क्या चला जाता है
इसके लिये वो झुक झुक कर
काम आने वाले लोगों को सलाम ठोकना
शुरु हो जाता है
जहाँ दिमाग में कुछ
हिसाब किताब घूम रहा होता है
वो
लेखाधिकारी आफिस में
लेखाधिकारी आफिस में
उपस्थित हो या ना हो
उसकी कुर्सी को चूम रहा होता है
कहीं कृष्ण देख लो कहीं राधा भी होती है
राम के भक्तगण भी मिल जायेंगे
जरूरत पढ़ने पर रावण के भी काम आयेंगे
कहीं पत्थर सीमेंट रेता भी होता है
इधर फेंका जाता है उधर काम आ जाता है
जुगाड़ी भी
तैरती हुई परीकथा का एक हिस्सा होता है
ऎसा दिखाया जाता है
कुछ कुछ तो ऎसा भी होता है
जो होता है
पर उसके ऊपर कुछ भी कहीं नहीं कहना होता है
पर उसके ऊपर कुछ भी कहीं नहीं कहना होता है
कैसे कहे कोई
उसे कहने के लिये पहले बेशरम होना होता है
कोई बात नहीं
ये सब अगर नहीं होता चला जायेगा
तो कहने वाले के लिये भी तो
कहने के लिये कुछ नहीं रह जायेगा
आज ही सब कुछ नहीं कहेगा
कल को कहने के लिये
कुछ नया चटपटा उठा कर ले आयेगा
कुछ नया चटपटा उठा कर ले आयेगा
अपनी अपनी ढपली अपने अपने रागों
से ही तो मेरा देश
महान होने की दौड़ लगायेगा
अब गिरे हुऎ रुपिये को उठाने के लिये
कोई तो जोर लगायेगा ।
कोई तो जोर लगायेगा ।