उलूक टाइम्स: कैम्ब्रिज
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रविवार, 19 जुलाई 2020

हनुमान है कलियुग में है सिद्ध होने लगा है इसीलिये उसके किये पर खुद सोच कर लोग व्यवधान नहीं डालते


फिर से
दिखाई देने लगा है 
बिना सोये 
दिन के तारों के साथ 
आक्स्फोर्ड कैम्ब्रिज मैसाच्यूट्स बनता हुआ 
एक पुराना खण्डहर तीसरी बार 
मोतियाबिंद पड़ी सोच के उसी आदमी को 

जिसने
कई पर्दे चढ़ते उतरते देखें हैं 
कई दशक में 
दीमक लगी लकड़ियों वाली खिड़कियों
और दरवाजों को ढाँपते 

रसीदें दुगने तिगने
मूल्यों की सजाते 
फाइलों में ऑडिट कराते 
लाल नीले निशान लगे रजिस्टर सम्भालते निकालते 

धूल पोंछ फिर वापस सेफ में डालते 
अवकाश में चलते चले जाते 
अदेय प्रमाणों को माथे से लगा 
कृतज्ञता आँखों से निकालते 

आते जाते
चश्में चढ़ाते निकालते 
कितने निकल गये जहाँ से 
पैदा कर खुद के लिये कई जमीनों
कई मकानों के मालिकाना हक 

मुँह चिढ़ाते
खण्डहर की दीवार पर
एक निशान बना अपना 
समय को दिखा ठेंगा दिखाते पुण्य के 
जैसे कई पीढ़ियों के बना डालते 

मत देखा कर
झंडों के लिये बने निमित्त 
आँख नाक कान बन्द किये
नारे लगाते मिठाई बाटते 

खण्डहर की खाते 
घर की जब अपने खुद की दुकाने
नहीं सम्भालते 

समझाने लगे हैं
उसी तर्ज पर जब बनाया था मकान नया 
जो उजड़ गया तीन साल में 

वही बातें फिर 
अपने पुराने बटुऐ से फिर उसी फर्जीपने से निकालते 

‘उलूक’ 
खुश रहा कर कमाई पर अपनी 
बिना पैसे
बकवास को तेरी दे रहे हैंं कुछ तरजीह 
क्यों पता नहीं 

किसलिये
तेरे पन्ने को कुछ सिरफिरे 
रहते हैं आगे निकालते।
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चित्र साभार:
https://www.istockphoto.com/
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आभार: ऐलेक्सा।
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 19/07/2020 का
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बुधवार, 19 अप्रैल 2017

विश्वविद्यालय बोले तो ? तेरे को क्या पड़ी है रे ‘उलूक’


जे एन यू बनाने की बात करते करते स्टेशन आ गया
वो उतरा और सवार हो गया उल्टी दिशा में जाती हुई ट्रेन में
शायद वो दिशा आक्स्फोर्ड की होती होगी
क्योंकि
अखबार वाला बता रहा था कुछ ऐसा ही बनने वाला है

और उसे बताया गया है 
जे एन यू बनाने की बात कहना बहुत बड़ी भूल थी उनकी 
ये अहसास चुनाव के पारिणामों के आते ही हो गया है

तीन साल के बाद अखबार के पन्ने पर
एक नयी तस्वीर होती है एक नये आदमी की
और एक नये सपने की बात
जिसमें ताजमहल जैसा कुछ होता है 

पिछले तीन साल पहले अखबार ने बताया था
बहुत उँचाइयों पर ले जाने वाला कोई आया है

वही उँचाइयाँ अब कैम्ब्रिज बन गई हैं
किसी और जगह के किसी गली के एक बने बनाये
मकान की

लेकिन आदमी 
आक्स्फोर्ड को आधा बना कर
कैम्ब्रिज पूरा करने पर जुट गया है

सरकारें बदलती हैं
झंडा बदल कर कुछ भी बदल सकता है कोई भी

‘उलूक’
कभी तो थोड़ा सा कुछ ऐसी बात किया कर
जो किसी के समझ में आये

सब कुछ होता है पाँच साल में वहाँ
और तीन साल में यहाँ

तुझे आदत है काँव काँव करने की करता चल
अभी एक नया आया है तीन साल के लिये
उसे भी कुछ बनाना है वो भी तो कुछ बनायेगा

या
कौवे की आवाज वाले किसी उल्लू की तरफ
देखता चला जायेगा?


चित्र साभार: Southern Running Guide