उलूक टाइम्स: गुंडों
गुंडों लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गुंडों लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 8 जनवरी 2020

किसी ने कहा लिखा समझ में आता है अच्छा लिखते हो बताया नहीं क्या समझ मे आता है



Your few poems touched me.
इस बक बक ️को कुछ लोग समझ जाते हैं । वो *पागल* में कुछ *पा* के *गला* ️हुआ इंसान देख लेते हैं । ऐसे लोगो की कविताओं में गूढ़ इशारे होतें हैं । जो जागे हुए लोगों को दिख जातें हैं । मुझे आपकी कविताओं में कुछ अलग दिखा, जिसके कारण में आने उद्गारों को रोक नही पाया ।
 मैँ आपकी बक बक का मुरीद हुं आगे और भी सुन्ना चाहूंगा यूट्यूब पर । 
वी पी सिंह

--------------------------------------------------------------------------------------------

नहीं लिखने 
और लिखने के बीच में 
कुछ नहीं होता है 

दिन भी संख्याओं में गिने जाते हैं 
लिखने लिखाने के दिन 
या 
नहीं लिख पाने के दिन 
सब एक से होते हैं 

दर्द अच्छे होते हैं जब तक गिने जाते हैं 
संख्याओं के खेल निराले होते हैं 
कहीं जीत के लिये संख्या जरूरी होती है 
कहीं हार जरूरी होती है संख्या के जीतने से अच्छा 

सब से बुरा होता है गाँधी का याद आना 
मतलब साफ साफ 
एक धोती एक लाठी एक चश्मे की तस्वीर का 
देखते देखते सामने सामने द्रोपदी हो जाना 

चीर 
अब होते ही नहीं हैं 
हरण जो होता है उसका पता चल जाये 
इससे बड़ी बात कोई नहीं होती है 

अजीब है जो सजीव है बेजान में जीवन देखिये
जान है नजर भी आ जाये 
मुँह में बस एक कपड़ा डाल लीजिये 
निकाल लीजिये 

नहीं समझा सकते हैं किसी को 
समझाना शुरु हो जाते हैं 
समझदार लोग पुराने साल 

कत्ल हो भी गया 
कोई सवाल नहीं करना चाहिये 
क्योंकि कत्ल पहली बार जो क्या हुआ है 

सनीमा भीड़ का घर से देखकर 
घर से ही कमेंट्री कर 
उसे परिभाषित कर देने का 
मजा कुछ और है 

क्योंकि लगी आग में झुलसा 
अपने घर का कोई नहीं होता है 

लगे रहिये गुंडों के देवत्व को 
महिमामण्डित करने में 

भगवान करे तुम या तुम्हारे घर का 
तुम्हारा अपना कोई 
आदमखोर का शिकार ना होवे 

और उस समय तुम्हें अपनी छाती पीटने का 
मौका ही ना मिले 

‘उलूक’ की बकवास किसी की समझ में आयी 
और उसने ईमेल किया कि बहुत कुछ समझ में आया 

बस रुक गया कहने से कि बहुत मजा 
जो अभी आना है क्यों नहींं आया।

चित्र साभार: https://www.pngfly.com/

मंगलवार, 21 मई 2013

बधाई रजिया ने दौड़ है लगाई

अफसोस हुआ बहुत
अभी अभी जब किसी
ने खबर मुझे सुनाई
होने वाला है ये जल्दी
कह रही थी मुझसे
कब से फेसबुकी ताई
पर इतनी जल्दी ये सब
हो ऎसे ही जायेगा
क्यों हुआ कैसे हुआ
अब कौन मुझे बतायेगा
रजिया जब से गुंडों को
सुधारने मेरे घर में आई
पच नहीं रही थी मुझे
उसकी ये बात
बिल्कुल भी भाई
बस लग रही थी जैसे
इतनी हिम्मत उसमें
किसने है जाकर जगाई
रजिया सुना सब कुछ
छोड़ कर जा रही है
मेरे घर का राज
फिर से मेरे घर के
गुण्डों को फिर से
थमा रही है
मेरे घर की किस्मत
फिर से फूटने को
सुना है जा रही है
चलो कोई बात नहीं
फिर से मिलकर अब
जुट जाना चाहिये
किसी और एक रजिया
को यहाँ आ कर
फंसने के लिये
फंसाना चाहिये
वैसे चिंता करने
की बात नहीं
होनी चाहिये
जो कर रही है
देश को बर्बाद
उसको मेरे घर को
गिराने के लिये
कोई बड़ा बहाना
कहाँ होना चाहिये
जल्दी ही सरकार
किसी रजिया को
फिर ढूँढ लायेगी
मेरे घर के गुंडो
का फिर भी वो
क्या कुछ कर पायेगी
ये बात ना मेरे को
ना मेरे पड़ोसियों
के समझ में आयेगी
जो शक्ति इतने बडे़
देश का कर रही है
बेड़ा गर्क रोज रोज
वो ही मेरे घर के बेडे़
का गड्ढा भी बनायेगी ।