सारा का सारा जैसे का तैसा
नहीं सब कह दिया
है जाता
है जाता
बहकते और भड़कते हुऎ में से
कहने लायक ही उगल दिया
है जाता
कहानिया
तो बनती ही हैं
मेरे यहाँ भी तेरे यहाँ भी
बारिशों का मौसम भी होता है माना
सैलाब लेकिन हर रोज ही नहीं
है आता
है आता
हर आँख
देखती है एक ही चीज को
अपने अलग अंदाज से
मुझे दिखता है कुछ
जो उसको कुछ और ही
है नजर आता
राम की कहानी है एक पुरानी
विभीषण
सुना रावण को छोड़ राम के पास
सुना रावण को छोड़ राम के पास
है चला जाता
क्या सच था ये वाकया
तुलसी से कहाँ अब ये किसी से
है पूछा जाता
है पूछा जाता
आज भी तो दिखता है विभीषण
उधर जाता इधर आता
राम के काम में
है आता
रावण के भी काम भी
है लेकिन आता
है लेकिन आता
हनुमान जी
क्या कर रहे होते होंगे आज
जिसकी समझ में
आ गयी होगी मेरी ये बात
वो भी कुछ यहाँ
कहाँ कह कर चला
है जाता
क्योंकि
सारा का सारा
जैसे का तैसा नहीं सब कह दिया
है जाता ।
है जाता ।