आचार
संहिता
कुछ दिन
के लिये
ही सही
विकराल
रूप
दिखाती है
बहुत कुछ
कर लेती है
नहीं कहा
जा रहा है
पर
कुछ चीजों
के लिये जैसे
सुरसा
हो जाती है
डर वर
किसी को
होने लगता है
किसी चीज से
ऐसी बात
कहीं भी
ऊपर से
नजर कहीं
नहीं आती है
शहर के
मकानों
गलियों
पेड़ पौंधों
को कुछ
मोहलत
साँस लेने
की जरूर
मिल जाती है
कई
सालों से
लगातार
लटकते
आ रहे
चेहरों को
गाड़ी
भर भर कर
कहीं
फेंकने को
ले जाती हुई
दूर से
जब नजर
आने लग
जाती है
आदमी के
दिमाग में
लटके हुऐ
चेहरों और
पोस्टरों को
छूने
और पकड़ने
की
जुगत लगानी
उसे नहीं
आती है
बहुत
शाँति का
अहसास
'उलूक'
को होता है
हमेशा ही
ऐसी ही
कुछ बेवजह
हरकतों पर
किसी की
उसकी
बाँछे पता नहीं
क्यों
खिल जाती हैं
आने वाले
एक तूफान
का संदेश
जरूर देते हैं
शहर से
चेहरों के
पोस्टर
और झंडे
जब
धीरे धीरे
बेमौसम में
गायब होते हुऐ
नजर आते हैं
पटके गये
होते हैं
इसी तरह
कई बार के
तूफानो में
इस देश
के लोग
आदत हो
जाती है
कुछ नहीं
होने वाला
होता है
आँधियों
को भी
ये पता
होता है
जनता
ही जब
एक
चिकना
घड़ा हो
जाती है ।
संहिता
कुछ दिन
के लिये
ही सही
विकराल
रूप
दिखाती है
बहुत कुछ
कर लेती है
नहीं कहा
जा रहा है
पर
कुछ चीजों
के लिये जैसे
सुरसा
हो जाती है
डर वर
किसी को
होने लगता है
किसी चीज से
ऐसी बात
कहीं भी
ऊपर से
नजर कहीं
नहीं आती है
शहर के
मकानों
गलियों
पेड़ पौंधों
को कुछ
मोहलत
साँस लेने
की जरूर
मिल जाती है
कई
सालों से
लगातार
लटकते
आ रहे
चेहरों को
गाड़ी
भर भर कर
कहीं
फेंकने को
ले जाती हुई
दूर से
जब नजर
आने लग
जाती है
आदमी के
दिमाग में
लटके हुऐ
चेहरों और
पोस्टरों को
छूने
और पकड़ने
की
जुगत लगानी
उसे नहीं
आती है
बहुत
शाँति का
अहसास
'उलूक'
को होता है
हमेशा ही
ऐसी ही
कुछ बेवजह
हरकतों पर
किसी की
उसकी
बाँछे पता नहीं
क्यों
खिल जाती हैं
आने वाले
एक तूफान
का संदेश
जरूर देते हैं
शहर से
चेहरों के
पोस्टर
और झंडे
जब
धीरे धीरे
बेमौसम में
गायब होते हुऐ
नजर आते हैं
पटके गये
होते हैं
इसी तरह
कई बार के
तूफानो में
इस देश
के लोग
आदत हो
जाती है
कुछ नहीं
होने वाला
होता है
आँधियों
को भी
ये पता
होता है
जनता
ही जब
एक
चिकना
घड़ा हो
जाती है ।