झंडों को
हो रही
इधर की
बैचेनी
कुछ कुछ
समझ में
आ रही है
शहर में
आज एक
नयी भीड़
एक नये
रंग के
एक नये
झंडे के नीचे
एक नया
झंडा गीत
गा रही है
पुराने
झंडों के
आशीर्वादों
से भर चुके
झंडा
बरदारों
को नींद से
लग रहा है
जैसे
नयी हवा
जगा रही है
कुछ उस
रंग के झंडे
के नीचे से
कुछ ला कर
कुछ इस
रंग के झंडे
के नीचे से
कुछ ला कर
कुछ बेरंगे
हो चुके रंगों
में नया रंग
भरने
जा रही है
एक नये रंग
के झंडे का
पुराने झंडों
में से ही
मिल जुल कर
पैदा हो जाने
की खबर
कल के
अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
सुबह सुबह
आने जा रही है
अवसरवादियों
की बाँछें
फिर से एक बार
और जोर लगा कर
मुस्कुरा रही हैं
इस झंडे को
उठाने वालों को
उस झंडे को
उठाने वालों से
मिलजुल कर
रहने का अभ्यास
नये झंडे तले
करा रही हैं
लाल गेरुआ
नीला पीला
हरा बैगनी
की बात
करने की
रुत जा रही है
मेला नजदीक है
सुनाई दे रहा है
झंडों की
नई दुकाने
सजाने के लिये
फड़ों
की लाईन
लगायी
जा रही है
झंडों के
ठेकेदारों की
नयी योजना से
बेपेंदे के लौटों
के लुढ़कने की
आदत सुना है
बदलने जा रही है
झंडे खुश हैं
झंडा बरदार
भी खुश हैं
धीरे धीरे
हौले हौले
टोपियाँ
इस सर से
उस सर
की ओर
खिसकायी
जा रही हैं
‘उलूक’
तू दो हजार
में उन्नीस
जोड़ या
इक्कीस घटा
तेरी
बकवास
करने की
आदत का
सरकार
पेटेंट कराने
फिर भी
नहीं जा
रही है।
चित्र साभार: www.dreamstime.com
हो रही
इधर की
बैचेनी
कुछ कुछ
समझ में
आ रही है
शहर में
आज एक
नयी भीड़
एक नये
रंग के
एक नये
झंडे के नीचे
एक नया
झंडा गीत
गा रही है
पुराने
झंडों के
आशीर्वादों
से भर चुके
झंडा
बरदारों
को नींद से
लग रहा है
जैसे
नयी हवा
जगा रही है
कुछ उस
रंग के झंडे
के नीचे से
कुछ ला कर
कुछ इस
रंग के झंडे
के नीचे से
कुछ ला कर
कुछ बेरंगे
हो चुके रंगों
में नया रंग
भरने
जा रही है
एक नये रंग
के झंडे का
पुराने झंडों
में से ही
मिल जुल कर
पैदा हो जाने
की खबर
कल के
अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
सुबह सुबह
आने जा रही है
अवसरवादियों
की बाँछें
फिर से एक बार
और जोर लगा कर
मुस्कुरा रही हैं
इस झंडे को
उठाने वालों को
उस झंडे को
उठाने वालों से
मिलजुल कर
रहने का अभ्यास
नये झंडे तले
करा रही हैं
लाल गेरुआ
नीला पीला
हरा बैगनी
की बात
करने की
रुत जा रही है
मेला नजदीक है
सुनाई दे रहा है
झंडों की
नई दुकाने
सजाने के लिये
फड़ों
की लाईन
लगायी
जा रही है
झंडों के
ठेकेदारों की
नयी योजना से
बेपेंदे के लौटों
के लुढ़कने की
आदत सुना है
बदलने जा रही है
झंडे खुश हैं
झंडा बरदार
भी खुश हैं
धीरे धीरे
हौले हौले
टोपियाँ
इस सर से
उस सर
की ओर
खिसकायी
जा रही हैं
‘उलूक’
तू दो हजार
में उन्नीस
जोड़ या
इक्कीस घटा
तेरी
बकवास
करने की
आदत का
सरकार
पेटेंट कराने
फिर भी
नहीं जा
रही है।
चित्र साभार: www.dreamstime.com