अपने सामने
मेज पर पड़े
मेज पर पड़े
खाली चाय के एक कप को
देख कर लगा
देख कर लगा
शायद
चाय पी ली है
फिर लगा नहीं पी है
अब चाय पी या नहीं
कैसे पता चले
थोड़ी देर सोचा याद नहीं आया
फिर झक मार कर
रसोई की ओर चल देने का
विचार एक बनाया
रसोई की ओर चल देने का
विचार एक बनाया
पत्नी दिखी
तैयारी में लगी हुई शाम के भोजन की
काटती हुई कुछ हरे पत्ते
सब्जी के लिये चाकू हाथ में ली हुई
सब्जी के लिये चाकू हाथ में ली हुई
गैस के चूल्हे के सारे चूल्हे दिखे
कुछ तेज और कुछ धीमे जले हुऐ
हर चूल्हे के ऊपर चढ़ा हुआ दिखा एक बरतन
किसी से निकलती हुई भाप दिखाई दी
और किसी से आती हुई कुछ कुछ
पकने उबलने की आवाज सुनाई दी
बात अब एक कप चाय की नहीं रह गई
लगा जैसे
जनता के बीच
बिना कुछ किये कराये
जनता के बीच
बिना कुछ किये कराये
एक मजबूत सरकार की हाय हाय की हो गई
थोड़ी सी हिम्मत जुटा
पूछ बैठा
कुछ याद है
कि मैंने चाय पी या नहीं पी
पिये की याद नहीं आ रही है
और दो आँखें
सामने से एक
सामने से एक
खाली कप चाय का दिखा रही हैं
श्रीमती जी ने सिर घुमाया
ऊपर से नीचे हमे पूरा देखकर
पहले टटोला
फिर अपनी नजरों को
हमारे चेहरे पर टिकाया
और कहा
हमारे चेहरे पर टिकाया
और कहा
बस यही
होना सुनना देखना बच गया है
इतने सालों में
समझ में कुछ कुछ आ भी रहा है
समझ में कुछ कुछ आ भी रहा है
पढ़ पढ़ कर
तुम्हारा लिखा लिखाया
इधर उधर कापियों में किताबों में दीवालों में
सब नजर के सामने घूम घूम कर आ रहा है
पर बस
ये ही समझ में नहीं आ पा रहा है
किसको कोसना पड़ेगा
हो रहे
इन सब बबालों के लिये
इन सब बबालों के लिये
उनको
जिनको देख देख कर
तुम लिखने लिखाने का रोग पाल बैठे हो
या
उन दीवालों किताबों और कापियों को
उन दीवालों किताबों और कापियों को
जिन पर
लिखे हुऐ अपने कबाड़ को
लिखे हुऐ अपने कबाड़ को
बहुत कीमती कपड़े जैसा समझ कर
हैंगर में टाँक बैठे हो
कौन समझाये किसे कुछ बताये
एक तरफ एक आदमी
डेढ़ सौ करोड़ को पागल बना कर
चूना लगा रहा है
और
एक तुम हो
जिसे आधा घंटा पहले पी गई चाय को भी
पिये का
पिये का
सपना जैसा आ रहा है
जाओ
जा कर लिखना शुरु करो
फिर किसी की कहानी का
कबाड़खाना
कबाड़खाना
चाय
अब दूसरी नहीं मिलने वाली है
आधे घंटे बाद
खाना बन जायेगा
खाना बन जायेगा
खाने की मेज पर आ जाना ।
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