उलूक टाइम्स: तीसरी आँख
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रविवार, 17 मई 2015

शिव की तीसरी आँख और उसके खुलने का भय अब नहीं होता है

शिव की
तीसरी आँख
और उसके
खुलने का भय
अब नहीं होता है
जब से महसूस
होने लगा है
खुद को छोड़
हर दूसरा शख्स
अपने सामने का
एक शिव ही होता है
और
नहीं होता है
अर्थ
लिखी हुई
दो पंक्तियों का
वही सब जो
लिखा होता है
शिव तो
पढ़ रहा होता है
बीच में
उन दोनो
पंक्तियों के
वही सब
जो कहीं भी
नहीं लिखा
हुआ होता है
उम्र बढ़ने
या आँखें
कमजोर होने
का असर भी
नहीं होता है
जो दिखता
है तुझे
तुझे लगता
है बस
कि वो
वही होता है
तू पढ़ रहा
होता है
लिखी इबारत
पंक्तियों में
शब्द दर शब्द
पंक्तियों के बीच
में नहीं लिखे
हुऐ का पता
पता चलता है
तुझे छोड़ कर
हर किसी
को होता है
भूल तेरी ही है
अब भी समझ ले
दो आँखे एक जैसी
होने से हर कोई
तेरे जैसा
नहीं होता है
हर कोई
तुझे छोड़ कर
शिव होता है
तीसरा नेत्र
जिसका
हर समय ही
खुला होता है
तू पढ़
रहा होता है
लिखे हुऐ को
शिव उधर
पंक्तियों के
बीच में
नहीं लिखे
हुऐ को
गढ़ रहा
होता है ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

बहुत कनफ्यूजन होता है शिव जब कोई तीसरी आँख की बात करता है

कितनी कथाऐं
कितनी कहाँनियाँ
शिव सुनी थी
तेरे बारे में
पढ़ाई भी गई थी
कभी किसी जमाने में
कोई तेरे विवाह की
बात कहता है
कोई कहता है
ताँडव रोक दिया था
करना आज के दिन
सब कुछ भस्म
हो गया होता वरना 
तीन तीन आँखे
भी हैं तेरी
दो आधी खुली
तीसरी रहती है
सुना बंद
अब आज के दिन
तू भी व्यस्त
होगा बहुत
यहाँ वहाँ
इधर उधर
मंदिरों में तेरे
बह रहा होगा दूध
कुछ करते ही हैं
रोज ही याद तुझे
अपनी पूजा में
और कोई बस
आज के दिन
याद कर कर के
रहा होगा पूछ
दिख रहे होगें
कमंडल हाथ में लिये
बहुत से ब्रह्मचारी
व्यभिचारी फलाहारी
तिलकधारी तेरे द्वार
वो सभी जिनसे
रोज होती है
मुलाकात मेरी
जिनसे हारता है
मेरा मनोबल
एक ही दिन में
एक ही नहीं
कई कई बार
और मुझे ये
भी पता है
तेरी भी आदत है
तेरे द्वार पर
आने वाले सभी
कीड़े मकौंड़ों को
भी आभास रहता है
बहुत भोला है
बंम भोला शिव
छोटे छोटे सभी
पापों को माफ
करता है और
जो कुछ
नहीं करता है
उसी के
लिये खुलती है
कभी क्रोध में तेरी
तीसरी आँख हमेशा
ऐसा एक नहीं
सालों साल में
एक नहीं कई बार
हुआ करता है
पापी भोगते हैं
पापों को
इसीलिये रहते हैं
ऊँचाईयों में हमेशा
उनके ही जहन में
हलाहल की तरह
तू ही वास करता है
तेरी तू ही
जानता है शिव
तुझे ही
पता भी होगा
कलियुग का
कलियुगी प्राणी ही
तेरी एक नहीं
तीन तीन आँखों में
झाँक लेने का
कैसे साहस करता है ।