बहुत कोशिश
और
बहुत मेहनत करनी पड़ती है
बहुत मेहनत करनी पड़ती है
सामने वाले के दिल को
टटोलने के लिये
पहले तो
दिल कहाँ पर है
यही अँदाज नहीं हो पाता है
दूसरा
अपना नहीं किसी और का
दिल टटोलना होता है
इसलिये
उससे पूछा भी नहीं जाता है
डाक्टर दिल का साथ लेकर
खोजना शुरु करने का भी
एक रास्ता नजर आता है
लेकिन
डाक्टर तो उस दिल की
बात समझ ही नहीं पाता है
जिसे पान के पत्ते की शक्लों में
ज्यादातर फिल्मों के पोस्टरों में
या फिर
किसी स्कूल के पास
के पेड़ो की छालों में
ज्यादातर
कीलों से खोद कर उकेरा जाता है
इस सब के बीच में
कई कई जमाने गुजर जाते हैं
और बेचारा अपना खुद का दिल
खुद से ही भूला जाता है
अच्छा नहीं होता है
बहुत ज्यादा उधेड़बुन में उलझ कर रहना
और फिर
क्यों टटोलना किसी और का दिल
होते हुऐ अपने खुद के पास भी
अच्छा होता है
अपने ही दिल से पूछ लेना
अपने ही दिल का हाल भी
कभी कभी
वो बात अलग है
खाली दिल को टटोलने में
मजा उतना नहीं आता है
ना ही कुछ मिलता है
खुद के दिल को टटोलने के बाद
वैसे भी
खाली जगहों को आखिर
कितनी बार किसी से खाली खाली में
बस एक खालीपन को ढूँढने के लिये
टटोला जाता है ।
चित्र साभार: www.freelargeimages.com