लौट कर
देखने की चाह
अपने ही बनाये
हुऐ शब्दों के
रास्ते पर
बस एक चाह
ही रह जाती है
लौटा जाता नहीं है
पीछे से शब्दों की
एक बहुत ही लम्बी
सी कतार रह जाती है
मुड़ कर
देखना भी
आसान
नहीं होता है
गरदन
अपनी नहीं
अपने ही लिखे
शब्दों की टेढ़ी
होती सी
नजर आती है
चलना शुरु
करती है
जिंदगी भी
अपने खुद के
ही पैरों पर
हमेशा ही आगे
की ओर ही
पीछे देखने की
सोचने सोचने तक
पूरी हो जाती है
बहुत कुछ
चलता है
साथ में
शब्दों के
बनते बिगड़ते
रास्तों में
अपने बहुत कम
ही रह पाते है
अपने जैसों को
छाँटते हुऐ
साथ बदलते
बदलते शब्द भी
रास्ते बदलते
चले जाते हैं
कैसे लौटे कोई
देखने के लिये
अपने ही ढूँढे हुऐ
शब्दों के पिटारों में
दीमक जिंदगी के
किसने देखें हैं
क्या पता शब्दों को
चाटते हुऐ ही
साथ में चलते
चले जाते हैं
मिटता हुआ
चलता है समय भी
दिखता कुछ
भी नहीं है
हम भी तुम भी
और सभी
धुंधले होते ही
चले जाते हैं
आगे के शब्दों पर
नजर रहना ही
ठीक लगता है
पीछे लिखे हुऐ
महसूस कराते हैं
जैसे कुछ
खींचते हैं
कुछ खींच
कर गिराते हैं ।
चित्र साभार: imageenvision.com
देखने की चाह
अपने ही बनाये
हुऐ शब्दों के
रास्ते पर
बस एक चाह
ही रह जाती है
लौटा जाता नहीं है
पीछे से शब्दों की
एक बहुत ही लम्बी
सी कतार रह जाती है
मुड़ कर
देखना भी
आसान
नहीं होता है
गरदन
अपनी नहीं
अपने ही लिखे
शब्दों की टेढ़ी
होती सी
नजर आती है
चलना शुरु
करती है
जिंदगी भी
अपने खुद के
ही पैरों पर
हमेशा ही आगे
की ओर ही
पीछे देखने की
सोचने सोचने तक
पूरी हो जाती है
बहुत कुछ
चलता है
साथ में
शब्दों के
बनते बिगड़ते
रास्तों में
अपने बहुत कम
ही रह पाते है
अपने जैसों को
छाँटते हुऐ
साथ बदलते
बदलते शब्द भी
रास्ते बदलते
चले जाते हैं
कैसे लौटे कोई
देखने के लिये
अपने ही ढूँढे हुऐ
शब्दों के पिटारों में
दीमक जिंदगी के
किसने देखें हैं
क्या पता शब्दों को
चाटते हुऐ ही
साथ में चलते
चले जाते हैं
मिटता हुआ
चलता है समय भी
दिखता कुछ
भी नहीं है
हम भी तुम भी
और सभी
धुंधले होते ही
चले जाते हैं
आगे के शब्दों पर
नजर रहना ही
ठीक लगता है
पीछे लिखे हुऐ
महसूस कराते हैं
जैसे कुछ
खींचते हैं
कुछ खींच
कर गिराते हैं ।
चित्र साभार: imageenvision.com