अब ये तो नहीं पता कि कैसे हो जाता है
पर सोचा हुआ कुछ कुछ आगे आने वाले समय में
ना जाने कैसे सचमुच ही सच हो जाता है
गधों के बीच में रहने वाला गधा ही होता है
बस यही सच पता नहीं हमेशा
सोचते समय कैसे भूला जाता है
सोचते समय कैसे भूला जाता है
गधों का राजा गधों में से ही
एक अच्छे गधे को छाँट कर ही बनाया जाता है
इसमें कोई गलत बात नहीं ढूँढी जानी चाहिये
संविधान गधों का गधों के लिये ही होता है
गधों के द्वारा गधों के लिये ही बनाया जाता है
तरक्की भी गधों के राज में गधों को ही दी जाती है
एक छोटी कुर्सी से छोटे गधे को बड़ी कुर्सी में बैठाया जाता है
छोटी कुर्सी के लिये एक छोटा मगर पहले से ही
जनप्रिय बनाया और लाईन पर लगाया गधा बैठाया जाता है
सब कुछ सामान्य सी प्रक्रियाऐं ही तो नजर आती है
बस ये समझ में नहीं आ पाता है जब खबर फैलती है
किसी गधे को कहीं ऊपर बैठाये जाने की
‘उलूक’
‘उलूक’
तुझ गधे को पसीना आना क्यों शुरु हो जाता है ?
चित्र साभार: www.clipartof.com