पहाड़ी
झबरीले
झबरीले
कुछ काले
कुछ सफेद
कुछ
काले सफेद
कुछ मोटे कुछ भारी
कुछ लम्बे कुछ छोटे
कुत्तों के द्वारा
घेर कर ले जायी जा रही
कतारबद्ध
अनुशाशित
पालतू भेड़ों
का रेवड़
गरड़िये
की हाँक
के साथ
पथरीले
ऊबड़ खाबड़
ऊँचे नीचे
उतरते चढ़ते
छिटकते
फिर
वापस लौटते
मिमियाते
मेंमनों को
दूर से देखता
एक
आवारा जानवर
कोशिश
करता हुआ
समझने की
गुलामी
और आजादी
के बीच के अन्तर को
कोशिश करता हुआ समझने की
खुशी और गम
के बीच के
जश्न और
मातम को
घास के मैदानों के
फैलाव के
साथ सिमटते
पहाड़ों की
ऊँचाइयों के साथ
छोटी होती
सोच की लोच की
सीमा खत्म होते ही
ढलते सूरज के साथ
याद आते
शहर की गली के
आवारा साथियों
का झुँड
मुँह उठाये
दौड़ते
दिशाहीन
आवाजों में
मिलाते हुऐ
अपनी अपनी
आवाज
रात के
राज को
ललकारते हुऐ
और
इस
सब के बीच
जम्हाई लेता
पेड़ की ठूँठ पर
बैठा
‘उलूक’
सूँघता
महसूस
करता हुआ
तापमान
मौसम के
बदलते
मिजाज का
पंजे से
खुजलाता हुआ
यूँ ही
कान के पीछे के
अपने ही
किसी हिस्से को
बस कुछ
बेरोजगारी
दूर
कर लेने की
खातिर
जैसे।
चित्र साभार: www.kissanesheepfarm.com
कुछ सफेद
कुछ
काले सफेद
कुछ मोटे कुछ भारी
कुछ लम्बे कुछ छोटे
कुत्तों के द्वारा
घेर कर ले जायी जा रही
कतारबद्ध
अनुशाशित
पालतू भेड़ों
का रेवड़
गरड़िये
की हाँक
के साथ
पथरीले
ऊबड़ खाबड़
ऊँचे नीचे
उतरते चढ़ते
छिटकते
फिर
वापस लौटते
मिमियाते
मेंमनों को
दूर से देखता
एक
आवारा जानवर
कोशिश
करता हुआ
समझने की
गुलामी
और आजादी
के बीच के अन्तर को
कोशिश करता हुआ समझने की
खुशी और गम
के बीच के
जश्न और
मातम को
घास के मैदानों के
फैलाव के
साथ सिमटते
पहाड़ों की
ऊँचाइयों के साथ
छोटी होती
सोच की लोच की
सीमा खत्म होते ही
ढलते सूरज के साथ
याद आते
शहर की गली के
आवारा साथियों
का झुँड
मुँह उठाये
दौड़ते
दिशाहीन
आवाजों में
मिलाते हुऐ
अपनी अपनी
आवाज
रात के
राज को
ललकारते हुऐ
और
इस
सब के बीच
जम्हाई लेता
पेड़ की ठूँठ पर
बैठा
‘उलूक’
सूँघता
महसूस
करता हुआ
तापमान
मौसम के
बदलते
मिजाज का
पंजे से
खुजलाता हुआ
यूँ ही
कान के पीछे के
अपने ही
किसी हिस्से को
बस कुछ
बेरोजगारी
दूर
कर लेने की
खातिर
जैसे।
चित्र साभार: www.kissanesheepfarm.com