मुद्दई जैसे जैसे
सुस्त हो रहे होते हैं
मुद्दे भी उतनी ही
तेजी से चोरी
हो रहे होते हैं
मुद्दे बिल्ली के
शिकार मोटे
तगड़े किसी चूहे
जैसे हो रहे होते हैं
बहुत उछल कूद
कर भी लेते हैं
मगर शिकार
शिकारी बिल्ले के
जबड़े में फंस कर
ही हो रहे होते हैं
किताबें मोटी कुछ
बगल में दबाकर
किताब पढ़ने वाले
ज्ञान समेट बटोर
कर जबर्दस्ती
फैला दे रहे होते हैं
काम कराने वाले
मगर अखबार की
पुरानी रद्दी से ही
अपने किये गये
कर्मों की धूल
रगड़ रगड़ बिना पानी
के धो रहे होते हैं
बेवकूफ आदमी
आदमी के सहारे
आदमी को फँसाने
की तिकड़मों को
ढो रहे होते हैं
समझदार के देश में
गाँधी पटेल नेता जी
की आत्माओं को
लड़ा कर जिंदा
आदमी की किस्मत
के फैसले हो रहे होते हैं
जमीन बेच रहा हो
कौड़ियों के मोल कोई
इसका यहाँ इसको
और उसका वहाँ उसको
इज्जत नहीं लुट रही है
जब इसमें किसी की
और मोमबत्तियों को
लेकर लोगों की सड़कों
में रेलमपेल के खेल
नहीं हो रहे होते है
फिर तेरी ही अंतड़ियों
में मरोड़ किसलिये
और क्यों हो रहे होते हैं
मुद्दे शुरु होते समय
कीमत कहाँ बताते हैं अपनी
गरम होने में समय लेते हैं
समाचार में आते आते
बिकना शुरु हुऐ नहीं
खबर देते हैं अरबों
करोड़ों के हो रहे होते हैं
‘उलूक’ अपनी अक्ल
मत घुसेढ़ा कर हर जगह
हर बात पर उस जगह
जहाँ घोड़ों की जगह
गधो के दाम बहुत
ऊँचे हो रहे होते हैं ।
चित्र साभार: www.colourbox.com
सुस्त हो रहे होते हैं
मुद्दे भी उतनी ही
तेजी से चोरी
हो रहे होते हैं
मुद्दे बिल्ली के
शिकार मोटे
तगड़े किसी चूहे
जैसे हो रहे होते हैं
बहुत उछल कूद
कर भी लेते हैं
मगर शिकार
शिकारी बिल्ले के
जबड़े में फंस कर
ही हो रहे होते हैं
किताबें मोटी कुछ
बगल में दबाकर
किताब पढ़ने वाले
ज्ञान समेट बटोर
कर जबर्दस्ती
फैला दे रहे होते हैं
काम कराने वाले
मगर अखबार की
पुरानी रद्दी से ही
अपने किये गये
कर्मों की धूल
रगड़ रगड़ बिना पानी
के धो रहे होते हैं
बेवकूफ आदमी
आदमी के सहारे
आदमी को फँसाने
की तिकड़मों को
ढो रहे होते हैं
समझदार के देश में
गाँधी पटेल नेता जी
की आत्माओं को
लड़ा कर जिंदा
आदमी की किस्मत
के फैसले हो रहे होते हैं
जमीन बेच रहा हो
कौड़ियों के मोल कोई
इसका यहाँ इसको
और उसका वहाँ उसको
इज्जत नहीं लुट रही है
जब इसमें किसी की
और मोमबत्तियों को
लेकर लोगों की सड़कों
में रेलमपेल के खेल
नहीं हो रहे होते है
फिर तेरी ही अंतड़ियों
में मरोड़ किसलिये
और क्यों हो रहे होते हैं
मुद्दे शुरु होते समय
कीमत कहाँ बताते हैं अपनी
गरम होने में समय लेते हैं
समाचार में आते आते
बिकना शुरु हुऐ नहीं
खबर देते हैं अरबों
करोड़ों के हो रहे होते हैं
‘उलूक’ अपनी अक्ल
मत घुसेढ़ा कर हर जगह
हर बात पर उस जगह
जहाँ घोड़ों की जगह
गधो के दाम बहुत
ऊँचे हो रहे होते हैं ।
चित्र साभार: www.colourbox.com