उलूक टाइम्स: रेवड़
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रविवार, 28 जुलाई 2019

जरूरी है अस्तित्व बचाने या बनाने के लिये खड़े होना किसी ना किसी एक भीड़ के सहारे भेड़ के रेवड़ ही सही


जरूरी है
मनाना
जश्न 

कुत्तों के द्वारा
घेर कर
ले जायी जा रही
भेड़ों के  रेवड़ से
बाहर रहकर
जिन्दा बच गयी
भेड़ के लिये

गरड़िया
गिनता है भेड़ 

रेवड़ से बाहर
जंगल में
शेर की
शिकार
हो गयी भेड़ेंं

घटाना
जरुरी नहीं होता है

भीड़
भीड़ होती है
भीड़ का
चेहरा नहीं होता है

जरूरी भी
नहीं 
होता है कोई आधार कार्ड
भीड़ के लिये 

गरड़िये को
चालाक
होना ही पड़ता है

भेड़ें बचाने
के लिये नहीं

झुंड
जिन्दा रखने के लिये

भेड़ें बचनी
बहुत जरूरी होती हैंं
संख्या नहीं

लोकतंत्र
और भीड़तंत्र
के अलावा
भेड़तंत्र का भी
एक तंत्र होता है 

होशियार
लम्बे समय
तक जीते हैं

मूर्ख
मर जाते हैं
जल्दी 
ही
अपने
कर्मों के कारण 

जन्म भोज
से लेकर
मृत्यू भोज तक
कई भोज होते हैं

बात
आनन्द
ले सकने
की होती है

उसके
लिये भी
किस्मत होनी
जरूरी होती है 

इक्यावन
एक सौ एक
से लेकर करोड़
यूँ ही फेंके जाते हैं

किसी
एक भंडारे में
कई लोग
पंक्ति में बैठ कर
भोजन करते हुऐ
सैल्फी खिंचाते हैं

भेड़ेंं
मिमियाने में ही
खुश रहती होंगी
शायद

उछलती कूदती
भेड़ों
को देखकर
महसूस होता है

‘उलूक’
भेड़ें बकरियाँ
कुत्ते बन्दर गायें
बहुत कुछ सिखाती हैं

किस्मत
फूटे हुऐ लोग
आदमी
गिनते रह जाते हैं

आदमी
गिनने से
तरक्की नहीं होती है

जानवरों की
बात करते करते
बिना कुछ गिने

कहाँ से कहाँ
छ्लाँग
लगायी जाती है

स्टंट
करने वाले
बस
फिल्मीं दुनियाँ
में ही
नहीं पाये जाते हैं

बिना डोर की
पतंग
उड़ाने की
महारत
हासिल कर गये लोग

चाँद में
पतंग रख कर
वापस भी आ जाते हैं

वैज्ञानिक
हजार करोड़
से उड़ाये गये
राकेट के
धुऐं के चित्र
देख देख कर

अपने कॉलर
खड़े करते हैं
कुछ
ताली बजाते हैं
कुछ
मुस्कुराते हैं ।

चित्र साभार: www.clipartlogo.com