कहाँ कहाँ
और
कितना कितना
रफू करे
कोई बेशरम
और
करे भी
किसलिये
जब फैशन
गलती से
उधड़ गये को
छुपाने का नहीं
खुद बा खुद
जितना हो सके
उधाड़ कर
ज्यादा से ज्यादा
हो सके तो
सब कुछ
बेधड़क
दिखा ले
जाने का है
इसी बात पर
अर्ज किया है
कुछ ऐसा है कि
पुराने किसी दिन
लिखे कुछ को
आज दिखाने
का सही मौका है
उस समय मौका
अपने ही
मन्दिर का था
समय की
बलिहारी
होती है
जब वैसा ही
देश में
हो जाता है
दीमकें छोटी
दिखती हैं
पर फैलने में
वक्त नहीं लेती हैं
तो कद्रदानो सुनो
जिस दिन
एक बेशरम को
शरम के ऊपर
गद्दी डाल कर
बैठा ही
दिया जाता है
हर बेशरम को
उसकी आँखों से
उसका मसीहा
बहुत पास
नजर आता है
शरम के पेड़
होते हैं
या
नहीं होते हैं
किसे जानना
होता है
किसे चढ़ना
होता है
जर्रे जर्रे पर
उगे ठूँठों
पर ही जब
बैठा हुआ
एक बेशरम
नजर आता है
अब हिन्दू
की बात हो
मुसलमान
की बात हो
कब्र की
बात हो
या
शमशान
की बात हो
अबे जमूरे
ये हिन्दू
मुसलमान
तक तो
सब ठीक था
ये कब्र और
शमशान
कहाँ से
आ गये
फकीरों की
बातों में
समझा करो
खिसक गया
हो कोई तो
फकीर याद
आना शुरु
हो जाता है
अब खालिस
मजाक हो
तो भी
ये सब हो
ही जाता है
अब क्या
कहे कोई
कैसे कहे
समझ
अपनी अपनी
सबकी
अपनी अपनी
औकात की
दीमक के
खोदे हुऐ के
ऊपर कूदे
पिस्सुओं से
अगर एक
बड़ा मकान
ढह जाता है
क्या सीन
होता है
सारा देश
जुमले फोड़ना
शुरु हो जाता है
‘उलूक’
तू खुजलाता रह
अपनी पूँछ
तुझे पता है
तेरी खुद की
औकात क्या है
ये क्या कम है
आता है
यहाँ की
दीवार पर
अपने भ्रम
जिसे सच
कहता है
चैप जाता है
छापता रह खबरें
कौन “होशियार”
बेवकूफों के
अखबार में
छपी खबरों से
हिलाया जाता है ।
चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/
और
कितना कितना
रफू करे
कोई बेशरम
और
करे भी
किसलिये
जब फैशन
गलती से
उधड़ गये को
छुपाने का नहीं
खुद बा खुद
जितना हो सके
उधाड़ कर
ज्यादा से ज्यादा
हो सके तो
सब कुछ
बेधड़क
दिखा ले
जाने का है
इसी बात पर
अर्ज किया है
कुछ ऐसा है कि
पुराने किसी दिन
लिखे कुछ को
आज दिखाने
का सही मौका है
उस समय मौका
अपने ही
मन्दिर का था
समय की
बलिहारी
होती है
जब वैसा ही
देश में
हो जाता है
दीमकें छोटी
दिखती हैं
पर फैलने में
वक्त नहीं लेती हैं
तो कद्रदानो सुनो
जिस दिन
एक बेशरम को
शरम के ऊपर
गद्दी डाल कर
बैठा ही
दिया जाता है
हर बेशरम को
उसकी आँखों से
उसका मसीहा
बहुत पास
नजर आता है
शरम के पेड़
होते हैं
या
नहीं होते हैं
किसे जानना
होता है
किसे चढ़ना
होता है
जर्रे जर्रे पर
उगे ठूँठों
पर ही जब
बैठा हुआ
एक बेशरम
नजर आता है
अब हिन्दू
की बात हो
मुसलमान
की बात हो
कब्र की
बात हो
या
शमशान
की बात हो
अबे जमूरे
ये हिन्दू
मुसलमान
तक तो
सब ठीक था
ये कब्र और
शमशान
कहाँ से
आ गये
फकीरों की
बातों में
समझा करो
खिसक गया
हो कोई तो
फकीर याद
आना शुरु
हो जाता है
अब खालिस
मजाक हो
तो भी
ये सब हो
ही जाता है
अब क्या
कहे कोई
कैसे कहे
समझ
अपनी अपनी
सबकी
अपनी अपनी
औकात की
दीमक के
खोदे हुऐ के
ऊपर कूदे
पिस्सुओं से
अगर एक
बड़ा मकान
ढह जाता है
क्या सीन
होता है
सारा देश
जुमले फोड़ना
शुरु हो जाता है
‘उलूक’
तू खुजलाता रह
अपनी पूँछ
तुझे पता है
तेरी खुद की
औकात क्या है
ये क्या कम है
आता है
यहाँ की
दीवार पर
अपने भ्रम
जिसे सच
कहता है
चैप जाता है
छापता रह खबरें
कौन “होशियार”
बेवकूफों के
अखबार में
छपी खबरों से
हिलाया जाता है ।
चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/