ये अलग बात है
हर तरफ तमाशा
नजर आता है
लम्हा-ए-सुकूँ
सुकूँ ख़याल में
फिर भी आ जाता है
जिसे आता है
उलझाना सुकूँ को
उलझा कर ले जाता है
सुकूँ-मआब है सुकूँ
उलझने के बाद भी
आ ही जाता है
शराब
आमेजिश-ए-सुकूँ
बनाने में माहिर है
कई तरह की बनाता है
पिलाने से पहले
सोच का रंग
मगर पूछना शुरु
जरूर हो जाता है
डूब के सुकूँ मे ही
मौत की
तमन्नाएं होती हैं
सुकूँ तलाशना
कौन चाहता है
किसे पता है
जब होश नहीं
होता है
सुकूँ को
सुकूँ को
खुद को ढूँढने
चला जाता है
सुकूँ
लिखता है हर कोई
लिखता है हर कोई
दीवाना यहाँ
बहुत खुश नजर आता है
अलग बात है
कभी बेख़ुदी में
तलाश-ए-सुकूँ
को
निकल जाता है
निकल जाता है
समझता कहाँ है
खरीददार है
और
बाजार-ए-सुकूँ
है तो बस इधर है
है तो बस इधर है
देखता भी नहीं है जरा भी
हर कोई इधर ही है
उधर को नहीं जाता है
सुकून-ए-अहल-ए-खरावात-ए-इश्क
किसी हस्पताल में नहीं जाता है
‘उलूक’ भी लगा रहता है
लिखने में
आगरा या बरेली
नहीं
चला जाता है ।
चला जाता है ।
सुकूँ = शांति,
लम्हा-ए-सुकूँ= शांति के क्षण,
सुकूँ-मआब= शांति देने वाला,
आमेजिश-ए-सुकूँ= शांति के साथ मिला हुआ,
बाजार-ए-सुकूँ= शांति का बाजार,
सुकून-ए-अहल-ए-खरावात-ए-इश्क= प्यार में बर्बाद हुओं की शांति,
लम्हा-ए-सुकूँ= शांति के क्षण,
सुकूँ-मआब= शांति देने वाला,
आमेजिश-ए-सुकूँ= शांति के साथ मिला हुआ,
बाजार-ए-सुकूँ= शांति का बाजार,
सुकून-ए-अहल-ए-खरावात-ए-इश्क= प्यार में बर्बाद हुओं की शांति,
चित्र साभार: http://themindfuljourney.me/dove-clip-art/dove-clip-art-free-clipart-peace/