जिन्दगी
शुरु होती है
और
गिनतियाँ
शुरु हो जाती है
शून्य कहीं भी
किसी को नहीं
सिखाया जाता है
एक से शुरु
की जाती हैं
गिनतियाँ
सारा सब कुछ
पैदा होते ही
एक
हिसाब किताब
हो जाता है
बताया ही
नहीं जाता है
समझाया भी
नहीं जाता है
फिर भी
गिनतियाँ
खुद उसी तरफ
उसी रास्ते पर
अँगुली पकड़ कर
खींच ले जाती हैं
जिस तरह
हिसाब किताब
चलता चला जाता है
हर किसी को
आता है गिनना
मौका मिलते ही
गिनना शुरु
हो जाता है
सामने वाले के
हिसाब किताब को
अँगुलियों में
कर ले जाता है
कोई पूछ बैठे
उससे उसके
हिसाब किताब
के बारे में
गिनतियाँ करना
भूल बैठा है
किसी जमाने से
बताने में
जरा सा भी
नहीं शर्माता है
बहुत
आसान होता है
गिनना अपने
सामने वाले
की उम्र को
उसके
चेहरे पर
हर चेहरा
कुछ नहीं
कहने के
बावजूद
बहुत कुछ
बताता है
आसान होता है
गिनना सामने
खड़े पेड़
की उम्र भी
अलग बात है
यहाँ गोल गहरी
पड़ी रेखाओं से
समय का हिसाब
लगाया जाता है
लाखों गिनता है
करोड़ों गिनता है
अरब खरब तक
पहुँचने का
जुगाड़ लगाता है
सौ तक पहुँचने वाले
एक दो होते हैं
सोच में आने से
पहले ही गजल
गुनगुनाना चाहता है
आदत से मजबूर
लेकिन पाँच सौ
हजार दो हजार
दिखते ही
बत्तीस दाँत
एक साथ दिखाता है
‘उलूक’
उल्टी गिनतियाँ
चलती रहती
हैं साथ साथ
पता
कहाँ चलता है
राकेट
कब कहाँ
और क्यों
छूट जाता है ।
चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com
शुरु होती है
और
गिनतियाँ
शुरु हो जाती है
शून्य कहीं भी
किसी को नहीं
सिखाया जाता है
एक से शुरु
की जाती हैं
गिनतियाँ
सारा सब कुछ
पैदा होते ही
एक
हिसाब किताब
हो जाता है
बताया ही
नहीं जाता है
समझाया भी
नहीं जाता है
फिर भी
गिनतियाँ
खुद उसी तरफ
उसी रास्ते पर
अँगुली पकड़ कर
खींच ले जाती हैं
जिस तरह
हिसाब किताब
चलता चला जाता है
हर किसी को
आता है गिनना
मौका मिलते ही
गिनना शुरु
हो जाता है
सामने वाले के
हिसाब किताब को
अँगुलियों में
कर ले जाता है
कोई पूछ बैठे
उससे उसके
हिसाब किताब
के बारे में
गिनतियाँ करना
भूल बैठा है
किसी जमाने से
बताने में
जरा सा भी
नहीं शर्माता है
बहुत
आसान होता है
गिनना अपने
सामने वाले
की उम्र को
उसके
चेहरे पर
हर चेहरा
कुछ नहीं
कहने के
बावजूद
बहुत कुछ
बताता है
आसान होता है
गिनना सामने
खड़े पेड़
की उम्र भी
अलग बात है
यहाँ गोल गहरी
पड़ी रेखाओं से
समय का हिसाब
लगाया जाता है
लाखों गिनता है
करोड़ों गिनता है
अरब खरब तक
पहुँचने का
जुगाड़ लगाता है
सौ तक पहुँचने वाले
एक दो होते हैं
सोच में आने से
पहले ही गजल
गुनगुनाना चाहता है
आदत से मजबूर
लेकिन पाँच सौ
हजार दो हजार
दिखते ही
बत्तीस दाँत
एक साथ दिखाता है
‘उलूक’
उल्टी गिनतियाँ
चलती रहती
हैं साथ साथ
पता
कहाँ चलता है
राकेट
कब कहाँ
और क्यों
छूट जाता है ।
चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com