तमन्ना है
कई
जमाने से
आग
लगाने की
आदत
पड़ गयी
मगर
अब तो
झक मारते
रद्दी
कागज फूँक
राख
हवा में
उड़ाने की
लकीरें
हैं खींचनी
आसमान
तक
पहुँचाने की
कलमें
छूट गयी
नीचे
मगर
हड़बड़ी में
ऊपर
जाने की
आदत
पड़ गयी
भूलने की
कहते कहते
झोला
उठाने की
लिखनी
हैं
कविताएं
आदमी
के अन्दर
के आदमी
को बचाने की
फितूर
बकवास का
नशा
बन गया
आदत
हो गयी
बस सफेद
पन्नों को
यूँ ही
धूप में
सुखाने की
क्या
जरूरत है
बेशरम
‘उलूक’
शरमाने की
तू
कुछ
अलग है
या
जमाना
कुछ और
अब
सीख
भी ले
लूट कर
जमाने को
लुटने
की कहानी
सुनाने की।
चित्र साभार: http://convictedrock.com
कई
जमाने से
आग
लगाने की
आदत
पड़ गयी
मगर
अब तो
झक मारते
रद्दी
कागज फूँक
राख
हवा में
उड़ाने की
लकीरें
हैं खींचनी
आसमान
तक
पहुँचाने की
कलमें
छूट गयी
नीचे
मगर
हड़बड़ी में
ऊपर
जाने की
आदत
पड़ गयी
भूलने की
कहते कहते
झोला
उठाने की
लिखनी
हैं
कविताएं
आदमी
के अन्दर
के आदमी
को बचाने की
फितूर
बकवास का
नशा
बन गया
आदत
हो गयी
बस सफेद
पन्नों को
यूँ ही
धूप में
सुखाने की
क्या
जरूरत है
बेशरम
‘उलूक’
शरमाने की
तू
कुछ
अलग है
या
जमाना
कुछ और
अब
सीख
भी ले
लूट कर
जमाने को
लुटने
की कहानी
सुनाने की।
चित्र साभार: http://convictedrock.com