उलूक टाइम्स

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

बुजुर्गों के लिये दिन चलो एक दिन ही सही !

फिर याद आया
बनाया हुआ
आदमी के खुद
का एक दिन
खुद के लिये ही
जब शुरु होता है
उसका भूलना
सब कुछ
यहाँ तक
खुद को भी
उम्र का
चौथा पड़ाव
और उसके
अनुभव
कुछ के
लिये कड़वे
कुछ के लिये
खट्टे और मीठे
बचपन से ही
शुरु हो जाती है
एक पाठशाला
घर के अंदर ही
तैयार करते हुऐ
दिखाई दे जाते हैं
कई किसान
कई तरह के
खेतों को
बोते हुऐ
किस्म किस्म
के पौंधे
पता नहीं
चल पाता है
कौन आम का है
कौन बबूल का
और जब तक
इस सब को
समझने लायक
होने लगता है
एक आदमी
उसके सामने
भी होते हैं
कई तरह खेत
बुवाई के
लिये तैयार
उसकी खुद की
अगली पीढ़ी के
उसको दिये
अनुभव यहीं
पर काम आना
शुरु हो जाते हैं
किसी को फल वाले
पेड़ पसंद आते हैं
किसी की सोच में
कांटे उलझना
शुरु हो जाते हैं
घर से लेकर
ओल्ड ऐज होम्स
तक एक मोमबत्ती
दिखाने को ही सही
प्यार से फिर भी
आज के दिन अब
सब जलाना चाहते हैं
खुशकिस्मत होते हैं
कुछ लोग जो
चौथी पीड़ी के साथ
एक लम्बे समय
तक रह पाते हैं
भाग्यहीन लोग
खुद ही अपने लिये
एक ऐसे रास्ते
को बनाते हैं
जिस रास्ते
चौथी पीढ़ी को
छोड़ कर आते हैं
उसी रास्ते से
जाने को मजबूर
किये जाते हैं
एक परंपरा को
भूल कर हमेशा
हम क्यों साल
का एक दिन
उसके लिये
निर्धारित
करना
चाहते हैं
अंतर्राष्ट्रीय
बुजुर्ग दिवस
पर आज बस
इतना ही तो
समझना
चाहते हैं ।