उलूक टाइम्स

रविवार, 29 दिसंबर 2013

पिछला साल गया थैला भर गया मुट्ठी भर यहाँ कह दिया

पता नहीं 
कितना अपनापन है 
इस खाली जगह पर 

फिर भी जब तक 
महसूस नहीं होता परायापन 
तब तक ऐसा ही सही 

दफन करने से पहले 
एक नजर देख ही लिया जाये 
जाते हुऐ साल को 

यूँ ही कुछ इस तरह 
हिसाब की किताब ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌पर 
ऊपर ही ऊपर से 
एक नजर डालते हुऐ 

वाकई हर नये साल के पूरा हो जाने का 
कुछ अलग अंदाज होता है 

इस साल भी हुआ 
पहली बार दिखे 
शतरंज के मोहरे 
सफेद और काले 
डाले हाथों में हाथ 
बिसात के बाहर देखते हुऐ ऐसे 
जैसे कह रहे हो

बेवकूफ 'उलूक'
खुद खेल खुद चल 
ढाई या टेढ़ा 
अब यही सब होने वाला है आगे भी 
बस बोलते चलना ‘ऑल इज वैल’ 

पाँच और सात को जोड़कर 
दो लिख देना 
आगे ले जाना सात को 
किसी ने नहीं देखना है 
इस हिसाब किताब को 

सब जोड़ने घटाने में लगे होंगे 
इस समय 
क्या खोया क्या पाया 
और वो सामने तौलिया लपेटे हुऐ 
जो दिख रहा है 
उसके देखने के अंदाज से 
परेशान मत होना 

उसे आदत है 
किसी के उधड़े 
पायजामें के अंदर झाँक कर 
उसी तरह से खुश होने की 

जिस तरह एक मरी हुई 
भैंस को पाकर 
किसी गिद्ध की बाँछे खिल जाती है 

संतुष्ट होने के आनन्द को 
महसूस करना भी सीख ही लेना चाहिये 

वैसे भी अब सिर्फ धन ही नहीं 
जिंदगी के मूल्य भी 
उस लिये गये अग्रिम की तरह हो गये हैं 
जिसके समायोजन में 
पाप पुण्य उधार नकद 
सब जोड़े घटाये जा सकते हैं 

जितना बचे 
किसी मंदिर में जाकर 
फूलों के साथ चढ़ाये जा सकते हैं 
ऊपर वाले के यहाँ भी मॉल खुल चुके हैं 

एक पाप करने पर दो पुण्य फ्री 

कुछ नहीं कर पाये इस वर्ष घालमेल 
तो चिंता करने की कोई जरूरत भी नहीं 

नये साल में नये जोश से उतार लेना 
कहीं भी किसी के भी कपड़े 
जो हो गया सो हो गया 
वो सब मत लिख देना 
जो झेल लिया है 
उसे दफना कर देखना 
जब सड़ेगा 
क्या पता 
सुरा ही बन जाये 
कुछ नशा हो पाये 

इस तरह का 
जिस से तुम में भी 
कुछ हिम्मत पैदा हो सके 
और तुम भी उधाड़ कर देख सको 

सामने वालों के घाव और 
छिड़क सको कुछ नमक 
और कुछ मिर्च 

महसूस कर सको 
उस परम आनंद को 

जो आजकल 
बहुत से चेहरों से टपकता हुआ 
नजर आने लगा है 

सुर्ख लाल रक्त की तरह 
और कह सको 
मुस्कुराहट छिपा कर 
नया वर्ष शुभ हो और मंगलमय हो । 

चित्र साभार: https://www.graphicsfactory.com/