कितना अपनापन है
इस खाली जगह पर
फिर भी जब तक
महसूस नहीं होता परायापन
तब तक ऐसा ही सही
दफन करने से पहले
एक नजर देख ही लिया जाये
जाते हुऐ साल को
यूँ ही कुछ इस तरह
हिसाब की किताब पर
ऊपर ही ऊपर से
एक नजर डालते हुऐ
वाकई हर नये साल के पूरा हो जाने का
कुछ अलग अंदाज होता है
इस साल भी हुआ
पहली बार दिखे
शतरंज के मोहरे
सफेद और काले
डाले हाथों में हाथ
बिसात के बाहर देखते हुऐ ऐसे
जैसे कह रहे हो
बेवकूफ 'उलूक'
खुद खेल खुद चल
ढाई या टेढ़ा
अब यही सब होने वाला है आगे भी
बस बोलते चलना ‘ऑल इज वैल’
पाँच और सात को जोड़कर
दो लिख देना
आगे ले जाना सात को
किसी ने नहीं देखना है
इस हिसाब किताब को
सब जोड़ने घटाने में लगे होंगे
इस समय
क्या खोया क्या पाया
और वो सामने तौलिया लपेटे हुऐ
जो दिख रहा है
उसके देखने के अंदाज से
परेशान मत होना
उसे आदत है
किसी के उधड़े
पायजामें के अंदर झाँक कर
उसी तरह से खुश होने की
जिस तरह एक मरी हुई
भैंस को पाकर
किसी गिद्ध की बाँछे खिल जाती है
संतुष्ट होने के आनन्द को
महसूस करना भी सीख ही लेना चाहिये
वैसे भी अब सिर्फ धन ही नहीं
जिंदगी के मूल्य भी
उस लिये गये अग्रिम की तरह हो गये हैं
जिसके समायोजन में
पाप पुण्य उधार नकद
सब जोड़े घटाये जा सकते हैं
जितना बचे
किसी मंदिर में जाकर
फूलों के साथ चढ़ाये जा सकते हैं
ऊपर वाले के यहाँ भी मॉल खुल चुके हैं
एक पाप करने पर दो पुण्य फ्री
कुछ नहीं कर पाये इस वर्ष घालमेल
तो चिंता करने की कोई जरूरत भी नहीं
नये साल में नये जोश से उतार लेना
कहीं भी किसी के भी कपड़े
जो हो गया सो हो गया
वो सब मत लिख देना
जो झेल लिया है
उसे दफना कर देखना
जब सड़ेगा
क्या पता
सुरा ही बन जाये
कुछ नशा हो पाये
इस तरह का
जिस से तुम में भी
कुछ हिम्मत पैदा हो सके
और तुम भी उधाड़ कर देख सको
सामने वालों के घाव और
छिड़क सको कुछ नमक
और कुछ मिर्च
महसूस कर सको
उस परम आनंद को
जो आजकल
बहुत से चेहरों से टपकता हुआ
नजर आने लगा है
सुर्ख लाल रक्त की तरह
और कह सको
मुस्कुराहट छिपा कर
नया वर्ष शुभ हो और मंगलमय हो ।
चित्र साभार: https://www.graphicsfactory.com/