उलूक टाइम्स

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

नहीं सोचना है सोच कर भी सोचा जाता है बंदर, जब उस्तरा उसके ही हाथ में देखा जाता है

योग्यता के मानक
एक योग्य व्यक्ति
ही समझ पाता है

समझ में बस ये
नहीं आता है
“उलूक” ही
क्यों कर ऐसी ही
समस्याओं पर
अपना खाली
दिमाग लगाता है

किसी को खतरा
महसूस हो ऐसा
भी हो सकता है

पर हमेशा एक
योग्य व्यक्ति
अपने एक प्रिय
बंदर के हाथ में
ही उस्तरा
धार लगा कर
थमाता है

जब उसका
कुछ नहीं जाता है
तो किसी को
हमेशा बंदर
को देख कर
बंदर फोबिया
जैसा क्यों
हो जाता है

अब भरोसे में
बहुत दम होता है
इसीलिये बंदर को
जनता की दाढ़ी
बनाने के लिये
भेज दिया जाता है

नीचे से ऊपर तक
अगर देखा जाता है
तो बंदर दर बंदर
उस्तरा दर उस्तरा
करामात पर
करामात करता
हुआ नजर आता है

सबसे योग्य
व्यक्ति कहाँ पर
जा कर मिलेगा
पता ही नहीं
लग पाता है

बंदरों और उस्तरों
का मजमा पूरा
ही नहीं हो पाता है

यही सब हो रहा
होता है जब
अपने आसपास

दिल बहुत खुश
हो जाता है बस
यही सोच कर
अच्छा करता है
वो जो दाढ़ी कभी
नहीं बनवाता है

योग्यता बंदर
और उस्तरे के
बारे में सोच
सोच कर खुश
होना चाहिये
या दुखी का
निर्णय ऊपर
वाले के लिये
छोड़ना सबसे
आसान काम
हो जाता है

क्योंकि गीता में
कहा गया है
जो हो रहा है
वो तो ऊपर वाला
ही करवाता है

“उलूक” तुझे
कुछ ध्यान व्यान
करना चाहिये
पागल होने वाले
को सुना है
बंदर बहुत
नजर आता है ।