उलूक टाइम्स

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

क्यों परेशाँ रहे कोई रात भर सुबह के अखबार से सब पता चल जाता है

कैसे काट लेता है
कोई बिना कुछ कहे
एक पूरा दिन यहाँ
जहाँ किसी का बोरा
गले गले तक शाम
होने से पहले
ही भर जाता है
सब कुछ सबको
दिखाने लायक
भी नहीं होता है
थोड़ा कुछ झाड़ पोछ
कर पेश कर
ही दिया जाता है
घर से निकलता है
बाहर भी हर कोई
रोज ही काम पर
कपड़े पहन कर आता है
कपड़े पहने हुऐ ही
वापस चला जाता है
आज का अभी
कह दिया जाये
ठीक रहता है
कल कोई सुनेगा
भरौसा ही कहाँ
रह पाता है
भीड़ गुजर जाती है
बगल से उसके
सब देखते हुऐ हमेशा
एक तुझे ही पता नहीं
उसे देखते ही
क्या हो जाता है
उसको भी पता है
बहुत कुछ तेरे बारे में
तभी तो तेरा जिक्र भी
ना किसी नामकरण में
ना ही किसी जनाजे में
कभी किया जाता है
इधर कुछ दिन तूने भी
रहना ही है बैचेन बहुत
उनकी बैचेनी के पते का
पता भी चल ही जाता है
डबलरोटी के मक्खन को
मथने के लिये कारों का
काफिला कर तो रहा है
मेहनत बहुत जी जान से
रोटी के सपने देखने वालों
की अंगुली में लगे
स्याही के निशान का फोटो
अखबार में एक जगह पर
जरूर दिखाया जाता है
कौन बनाने की सोच रहा है
एक नया रास्ता तुझे पता है
पुराने रास्तों की टूट फूट कि
निविदाओं से ही कागज का
मजबूत रास्ता रास्तों पर
मिनटों में बन जाता है
इसको जाना है इस तरफ यहाँ
उसको जाना है उस तरफ वहाँ 

उलूक बस एक तू ही अभी तक 
असमंजस में नजर आता है ।