बुधवार, 3 जनवरी 2024
रोज पढ़े फिर याद करे ‘उलूक’ उल्लू का अखबार
सोमवार, 25 दिसंबर 2023
मतलब शे'र-ओ-सुख़न का बस यूँ ही कुछ भी नहीं है बरबाद हुए कारोबार की तरह
तैयार खडा है जाने के लिए इस बार हर बार की तरह
कूड़ेदान में पड़े हैं बीमार की तरह
एक खरीददार की तरह
दिलदार की तरह
समुन्दर की सबके अन्दर
नदियाँ भी बहती हैं सरे बाजार की तरह
कोई फैला देता है खबर एक अखबार की तरह
किसी लबे बीमार की तरह
कोशिश जरूरी है दिल से एक पागल तीमारदार की तरह
गया है अभी अभी इमरोज एक जाँ-निसार की तरह
कौन समेट रहा है यहां कुछ एक जमादार की तरह
बुधवार, 30 जून 2021
लिख ‘उलूक’ गंदगी किसे सूँघनी है किसे समझनी या देखनी है सबके जूतों को साफ रहना होता है
खराब दिमाग पर भी बहुत बड़ा असर होता है
यही सुनहरा अवसर होता है
बन्दूक ताना हुआ हमेशा किसी पर भी
एक शिकार होता है
उसकी बन्दूक खुद एक बना खड़ा होता है
बर्रोँ के चँगुल में फँसी
उन्हें कुछ हो लेने का शौक होता है
गोलियाँ बन चुकी हैं बन्दूक की उन्हें भी पता होता है
हाथ से निकल जाने का सदमा बहुत गहरा होता है
एक बन्दूक हो जाता है साथ की
दो तितलियोँ को गोलियाँ हो लेने का आदेश देता है
अफसोस होता है
और उनके लिये बन्दूक और गोलियों हो लेने वालों के लिये
अखबार मेँ एक पन्ना होता है
अपनी गंजी खोपड़ी हमेशा की तरह
जैसा तू है और तेरे साथ होता है
कोई लेता है संज्ञान नहीं लेता है से क्या होता है
हो रहे अपने आस पास का कूड़ा हमेशा
वही कूड़ा
जो अपनी खबर छपवाने के लिये
किसी अखबार के दरवाजे पर खड़ा होता है ।
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021
घर के कुत्ते ने शहर के कुत्ते के ऊपर भौंक कर आज अखबार के पन्ने पर जगह पाई है बधाई है ‘उलूक’ बधाई है
अखबार में
फोटो आई है
सारा घर मगन है
मालिक
कभी दिखाया नहीं जाता है
घर के कुत्ते ने बहुत धूम मचाई है
घर में
भौंकता नहीं है कभी
कटखन्ने होने की मिठाई है
किसी को
कभी काटा नहीं
किसी को कभी भौंका नहीं
अपने को बचाने की कीमत मिली है
या
किसी ने कीमत चुकाई है
बजट
अभी अभी निकला है
जनता समझ नहीं पायी है
कुत्ते कुत्ते
पट्टे पट्टे
खबर किस ने पहुंचाई है
खबर
मगर लाजवाब आई है
मालिक की
खबर की जगह
एक कुत्ते की खबर
हमेशा पव्वे के सहारे
अद्धे ने पहुंचाई है
कुत्ता
घूमता रहता है शहर शहर
मालिक की आज बन आई है
कुत्ते ने
अखबार में जगह पा कर
मालिक को दी बधाई है
जय जय कार है अखबार की
गजब की खबर एक आज बना के दिखाई है
कुत्ते को पता नहीं है कुछ भी
उसने आज भी उसी तरह अपनी पूंछ हिलाई है
मालिक सोच में पड़ा है
उसकी खबर किसने क्यों और कैसे उड़वाई है
‘उलूक’
कुत्ते पाला कर
शहर में भी भेजा कर
अखबारों की जरूरत आज बदल कर
नई सोच उभर कर आई है
अच्छा करना
ठीक नहीं
कुत्ते ने कुत्ते के ऊपर भौंक कर
आज अखबार के पन्ने पर जगह पाई है ।
सोमवार, 18 जनवरी 2021
एक चोर का डैमेज कंट्रोल वाह वाही चाहता है अखबार उसकी एक पुरानी खबर के बाद बस चुप हो जाता है
हो गया है
कूड़ा
हो ही जाता है
कूड़े का डिब्बा
गले गले तक भर जाता है
होना
कुछ नहीं होता है
पता होता है
फुसफुसाने में
सब खो जाता है
बड़ी खबर
किसने कह दिया
आपके सोचने से होगी
आदमी
देख कर
खबर का खाँचा
बनाया जाता है
प्रश्न
प्रश्न होता है
क्या होता है
अगर किसी को
बता दिया जाता है
किसने बताया
किसको बताया
किसलिये पूछना चाहता है
जहाँ
कुछ नहीं होना होता है
वहाँ
एक कबूतर
हवा में उड़ा दिया जाता है
सजा
जरूरी होती है
मिलती भी है उसे
जिसको
पूछने की आदत के लिये
तमगा कभी दिया जाता है
शरीफ और नंगे
का अंतर
बहुत बारीक है
जमाना
किसे आगे देखना चाहता है
अभी अभी
देख कर उड़ा है
‘उलूक’
कुछ मुँह छुपा कर अपना
जो हुआ है
सब को पता है
जीत किसकी हुई
चोर चोर मौसेरे
घूँम रहे हैं खुले आम
एक शरीफ
अपना मुँह चुल्लू में डुबाना चाहता है ।
चित्र साभार: http://www.onlineaudiostories.com/
बुधवार, 30 सितंबर 2020
लिखने की बीमारी है इलाज नहीं है चल रही महामारी है है तो मुमकिन है है कहीं किसी लौज में है
डर है बस कहीं है खबर में है
वीर हैं बहुत सारे हैं सब फौज में हैं
छुपा है घर में और सब की खोज में है
कांटे खुद की सोज में हैं
बात है जो है बस रोज (गुलाब) में है
बात बस खाली हवा में रखनी है
सच है कहीं है किसी हौज में है
तन्खवाह लेकिन
हर पहली तारीख को
खाते में आना बहुत जरूरी है
पर्ची है
चिकित्सक है
बिना बिमारी मरी महामारी है
मुर्दे हैं सारे भोज में हैं
हर आदमी
कहां है पूछता फिर रहा है
उसकी मजबूरी है
सोच है नोज (नाक) में है
‘उलूक’ का
उसकी बीमारी है
इलाज है नहीं
चिकित्सक की कमजोरी है
सारे हैं
सैल्फी की पोज में हैं ।
चित्र साभार: https://www.aegonlif
बुधवार, 16 सितंबर 2020
लाशें जिंदा रहना बहुत जरूरी हैं मरे हुऐ लोगों के जिन्दा समाचारों लिये हमेशा
एक पुड़िया सफेद पाउडर मिला है
उस
जगह पर जहाँ चॉक ही चॉक
पायी जाती रही है हमेशा से डिब्बा बन्द
अलग बात है
कहीं जरा
सा भी नहीं घिसी रखी है इतिहास बनाने के लिये भी
हम सब
उसी को घिसने की रोटियां तोड़ते
रहें हैं सालो साल
और कुछ
इसी की सफेदी को बिना छुवे हो लिये हैं बेमिसाल
खरीदे हैं
जिन्होंने कई सम्मान अपने नाम से
अखबार साक्षी रहे हैं
अपनी नाकामियां लिखना आसान नहीं
है
अखबार वाले के किये गये प्रश्न के उत्तर दिये गये हैं
किस तरह तराशे हुऐ निकलें
कल सुबह
तक कुछ कहना ठीक नहीं है
और वैसे भी जो छपा आ जाता है
उसके बाद कहाँ कुछ किया जाता है
बहुत
कुछ होता है आसपास कुछ अजीब सा हमेशा ही
अब हर बात कहाँ किसी अखबार तक पहुँचती है
और जो पहुँचाई जाती है कुछ दस्तखतों के साथ
उसकी तसदीक करने कभी कोई आता भी नहीं है
हमाम
के अन्दर के कपड़े के बारे में पूछे गये प्रश्न
नाजायज हैं कह कर
खुद अपनी तस्वीर अपने
ही आइने की
किसी को भी दिखा लेने की
आदत कभी बनी भी नहीं है
‘उलूक’
चिड़िया कपड़े ना पहना करती है
ना उसे आदत होती है बात करने की नंगई की
उसकी
जरूरत भी नहीं होती है
हम सब कर लेते हैं खास कर बातें कपड़ों की
और ढकी हुई उन सारी
लाशों की
जिनकी खुश्बू पर कोई प्रश्न नहीं उठता है
आज के समाज में
लाशें जिंदा रहना
बहुत जरूरी हैं
मरे हुऐ लोगों के जिन्दा समाचारों के लिये हमेशा ।
चित्र साभार: https://twitter.com/aajtak
शनिवार, 22 अगस्त 2020
हम लोगों की छवि बनाते हैं लोगों के बारे में लोगों को घर घर जा जा कर समझाते हैं
हम करते तो हैं कुछ
लेकिन उस करने का बस वेतन खाते हैं
धन्धों के अंदर के कुछ धन्धों की बात बताते हैं
हम लोगों की छवि बनाते हैं
फिर उसे सारे समाज में फैलाते हैं
वो बात अलग है
अपने घर के सारे आईने
कपड़े में लपेट कर नदी में बहा आते हैं
हमें अपना चेहरा याद नहीं रहता है
हम सामने वाले का चेहरा चेहरों को याद दिलाते हैं
समाज नहीं देखता है हमें
हराम की खाते हुऐ सालों साल तक
हराम का खा रहा है की कहानी का नायक बनवाते हैं
जमाना हम से चल रहा है
हम जमाने को चलाते हैं
उसका चलना फिरना बन्द करवाते हैं
हमारी फोटो अखबार वाले
हमारे घर से ले जाते हैं
सुबह की खबर हम ही छपवाते हैं
काँच के कुछ गिलास टकराते हैं
बदनाम हम नहीं हो सकते हैं कभी भी
हम बदनाम करवाते हैं
हम धन्धों के अन्दर भी धन्धे पनपाते हैं
‘उलूक’ तू लिख और लिख कर इधर उधर चिपका
कई की अपने हिसाब से छवि बना कर
दीवार दीवार चिपकाते हैं
हम छवि बना बना कर फैलाते हैं
खुली आँखों पर परदे डलवा कर उजाला बेच खाते हैं ।
ulooktimes.blogspot.com २३-०८-२०२०
Alexa Traffic Rank | Traffic Rank in IN |
शुक्रवार, 14 अगस्त 2020
अथ श्री बरगद कथा
नहीं चलता है
मगर
कुछ लोग
समय के साथ
बरगद हो जाते हैं
ऐसा नहीं है
कि लोग
बरगद होना नहीं चाहते हैं
लोग
जन्म से बरगद ही होते हैं
बस
उगना
फिर बड़ा हो कर
विशाल आकार लेकर
आसमान और जमीन के बीच
फैल जाना
सब नहीं कर पाते हैं
कुछ
बरगद होकर
शुरु कर देते हैं
दूसरों को बरगद बनाना
इसे
कार्यक्रम कहें या क्रियाकर्म
फर्क
ज्यादा नहीं होता है
पूरा ढिंढोरा
पीटा जाता है
समाज के हर बरगद हो चुकों को
न्यौता भेजा जाता है
नींव रखी जाती है
एक करोड़
बरगद के जंगल बनाने
और
सामाजिक पर्यावरण को बचाने
फिर
मजबूत किये जाने के
सपने दिखा कर
दूरगामी उद्देश्य का
एक बहुत बड़ा खाका
पेश किया जाता है
सांयकालीन सत्र में
अखबारी बरगदों के साथ
संगीतमय समां बंधवा कर
सुबह की खबरों का
ठेका दिया जाता है
ये सारा
खुलेआम किया जाता है
जोर शोर से पर्दे उखाड़ कर
प्रचारित प्रसारित किया जाता है
सभा समाप्त होती है
पर्दा गिरा दिया जाता है
अब शुरु होता है
आकृष्ट करना
लोगों को
बरगद हो लेने के सुनहरे मौके का
एक
बरगदी सपना
फैलाया जाता है
सबसे पहले
जमीन की मिट्टी से
उसे अलग किया जाता है
चारों ओर से घेर कर
थोड़ी मिट्टी थोड़ा पानी थोड़ी हवा
की जगह में
एक
गमले में
बरगद होने के लिये
छोड़ दिया जाता है
समय काटने
के इन्तजामात
किये जाते हैं
बीच बीच में
पूरा जवान हो चुके
बरगद का चित्र दिखाया जाता है
ध्यान
बंटते ही
बढ़ते पनपते
जवान बरगद की
बढ़ती शाखाओं और जड़ों को
कलम कर दिया जाता है
बरगद बनता है
समय निकलता है
बरगद
कब बोनसाई हो गया
‘उलूक’
बस ये
कोई नहीं जान पाता है
बस
ऐसे ही किसी दिन
एक नया
कोई
बरगद होने के सपने के जालों में
फंस कर चला आता है
बोनसाई
उखाड़ कर
कहीं फेंक दिया जाता है
एक
नया सपना
उगने फैलने
फिर
छंटने कटने के लिये
प्रस्तुत हो जाता है
अखबार सुबह का
बरगद बनाने
और
जंगल उगाने के लिये
किसी को
सरकारी सम्मान मिलने के
समाचार से
पटा नजर आता है ।
चित्र साभार: https://www.patrika.com/
======================
=======================
शनिवार, 7 दिसंबर 2019
खुदने दो कब्र चारों तरफ अपने दूर देश की खबर में मरे को जिंदा कर देने का बहुत कुछ छुपा होता है
आवारा
हैं नहीं
और
हाथ में है
आने जाने
कि
यहाँ से वहाँ
बहुत दूर तक
नहीं आती है
‘उलूक’
पूरी जिंदगी
शनिवार, 31 अगस्त 2019
ठीक नहीं ‘उलूक’ थोड़ा सा समझने के लिये इतने सारे साल लगाना
अब हर कोई एक खुली हुयी किताब है
हर पन्ना जिसका
झक्क है सफेद है और साफ है
सभी लिखते हैं
आज कुछ ना कुछ
बहुत बड़ी बात है
कलम और कागज ही नहीं रहे बस
बाकी सब इफरात है
कोई नहीं लिखता है कहीं
किसी भी अन्दर की बात को
ढूँढने निकलता है
एक सूरज को मगर
वो भी किसी रात को
सोचता है साथ में
सब दिन दोपहर में
कभी आ कर उसे पढ़ें
कुछ वाह करें
कुछ लाजवाब
कुछ टिप्पणी
कुछ स्वर्णिम गढ़ें
समझ में
सब के सब कुछ
बहुत अच्छी तरह से आता है
जितने से
जिसका काम चलता है
उतना समझ गया होता है
उसे
ढोल नगाड़े साथ ला कर
खुल कर
जरूर बताता है
जहाँ फंसती है जान
होता है
बहुत बड़ी जनसंख्या से जुड़ा
कोई उनवान
शरमाना दिखा कर
अपने ही किसी डर के खोल में
घुस जाता है
किस अखबार को
कौन कितना पढ़ता है
सारे आँकड़े
सामने आ जाते हैं
किस अखबार में
कैसे अपनी खबर कोई
हर हफ्ते छपवा ले जाता है
कैसे हो रहा है होता है
ऐसा कोई
पूछने ही नहीं जाता है
कोई
नजर नहीं आता है का मतलब
नहीं होता है
कि
समझ में नहीं आता है
बस
एक राय
गुरुवार, 13 जून 2019
अपने अपने मतलब अपनी अपनी खबरें अपना अपना अखबार होता है बाकी बच गया इस सब से वो समाचार होता है
पर लिखा
जमीन का
कुछ भी
उसके लिये
बेकार होता है
चाँद तारों
पर जमा जमाया
जिसका
कारोबार होता है
दुनियाँ
जहाँ पर
नजर रखता है
बहुत ज्यादा
समझदार होता है
घर की
मोहल्ले की बातें
छोटे लोगों का
रोजगार होता है
बेमतलब
कुछ भी
कह डालिये
तुरंत
पकड़ लेता है
कलाकार होता है
मतलब
की छान
बचा
लौटा देता है
जितने
से उसका
सरोकार होता है
भीड़
के शोर का
फर्क नहीं पड़ता है
चुगलखोर
आदत से
लाचार होता है
दिख
नहीं रहा है
कुछ कह
नहीं रहा है
का मतलब
सुधर जाने
का संकेत
नहीं होता है
ऊपर नीचे
होता हुआ
बाजार होता है
गिरोह
यूँ ही नहीं
बनता है
एक जैसों का
चोर
का साथी
गिरहकट जैसी
पुरानी
कहावत के लिये
पुराना सरदार
जिम्मेदार होता है
तकनीक
का जमाना है
हाथ
साफ होते हैं
कोयले का
व्यापार होता है
‘उलूक’
की खींसे
होती नहीं हैं
क्या निपोरे
चुगलखोरी
की अपनी
आदत से
बस
लाचार होता है ।
चित्र साभार: apps.apple.com
सोमवार, 4 मार्च 2019
कुछ नहीं कहने वाले से अच्छा कुछ भी कह देने वाले का भाव एकदम उछाल मारता हुवा देखा जाता है
ठीक रहती है
तो
बड़ा झूठ
बहुत आसानी से
पचाया जाता है
बकवास
लिखी जाती रहती है
तो
सच भी
नंगा होने में शरमाता है
जिंदगी
निकलती जाती है
झूठ ही
सबसे बड़ा
सच होता है
समझ में आता जाता है
हर कोई
एक नागा साधू होता है
कपड़े
सब के पास होते हैंं
तो
दिखाने भी होते हैं
इसीलिये
पहन कर आया जाता है
बहुत कुछ
होता है जो
कहीं भी नहीं
पाया जाता है
नहीं होना ही
सबसे अच्छा होता है
बिना
पढ़ा लिखा भी
बहुत कुछ
समझा जाता है
साँप
के दाँत
तोड़ कर
आ जाता है
बत्तीस
नहीं थे
छत्तीस हैं
बता कर जाता है
साँप
तो
मार खाने
के बाद
गायब हो जाता है
साँपों की
बात करने वाला
जगह जगह
मार खाता है
गरियाया जाता है
लकीर
पीटने वाला
सब से समझदार
समझा जाता है
माना जाता है
पीटते पीटते
फकीर हो जाता है
ऊपर वाला भी
देखता रह जाता है
एक जगह
खड़ा रहने वाला
हमेशा शक की
नजरों से देखा जाता है
थाली में
बैगनों के साथ
लुढ़कते रहने वाला ही
सम्मानित
किया जाता है
‘उलूक’
कपड़े लत्ते की
सोचते सोचते
गंगा नहाने
नदी में उतर जाता है
महाकुँभ
की भीड़ में
खबरची के
कैमरे में आ जाता है
पकड़ा जाता है
घर में
रोज रोज
कौन कौन
नहाता है
अखबार
में नहीं
बताया जाता है
बकवास
करते रहने से
खराब
तबीयत का
अन्दाज नहीं
लगाया जाता है
तबीयत
ठीक रहती है
तो
एक
बड़ा झूठ भी
आसानी से
पचाया जाता है
चित्र साभार: http://hatobuilico.com
रविवार, 24 फ़रवरी 2019
हुवा हुवा का शोर हुवा कहीं हुवा कुछ जैसे और बड़ा जबरजोर हुवा
हुवा हुवा
का शोर हुवा
इधर से
गजब का
जोर हुवा
उधर से
जबरजोर हुवा
हुवा हुवा
सुनते ही
मिलने लगी
आवाजें
हुवा हुवा की
हुवा हुवा में
हुवा हुवा से
माहौल
सारा जैसे
सराबोर हुवा
चुटकुला एक
एक
बार फिर
अखबार में
खबर
का घूँघट ओढ़
दिखा आज
छपा हुवा
खबरों
को उसके
अगल बगल की
पता ही
नहीं चला
कब हुवा
कैसे हुवा
और
क्या हुवा
पानी
नदी का
बहने लगा
खुद ही
नहा धोकर
सब कुछ
सारा
आस पास
ऊपर नीचे का
पवित्र हुवा
पावन हुवा
पापों
के कर्ज में
डूबों का
सब कुछ
सारा माफ हुवा
ना
बम फटे
ना
गोली चली
ना
युद्ध हुवा
बस
चुटकुला
खबर
बन कर
एक बार
और
शहीद हुवा
इन्साफ हुवा
जंगल उगे
कागज में
मौसम भी
कुछ
साफ हुवा
हवा
चली
जोर की
फोटो में
बादल उतरा
पानी
बरसा
रिमझिम
रिमझिम
गिरते गिरते
भाप हुवा
पकाने
परोसने
खिलाने
वाले
शुरु हुऐ
समझाना
ऐसा हुवा
हुवा
जो भी
सदियों
बाद हुवा
‘उलूक’
पूछना
नहीं हुवा
कुछ भी बस
करते
रहना हुवा
हुवा हुवा
हो गया
हो गया
सच्ची
मुच्ची में
है हुवा हुवा ।
चित्र साभार: https://www.123rf.com
बुधवार, 30 जनवरी 2019
जरूरत नहीं है समझने की बहुत लम्बे समय से इकट्ठा किये कूड़े की उल्टी आज आ ही जा रही है
कई
दिन हो गये
जमा करते करते
कूड़ा
फैलाने की
हिम्मत ही नहीं
आ पा रही है
दो हजार
उन्नीस में
सुना गया है
चिट्ठाकारी
पर कोई
ईनाम
लेने के लिये
लाईन लगाइये
की मुनादी
करवायी
जा रही है
कई दिन से
ख्वाब में
मक्खियाँ ही
मक्खियाँ
नजर आ रही हैं
गिनना शुरु
करते ही
पता
चल रहा है
कुछ मकड़ी
हो चुकी हैं
खबरची
की खबर
बता रही है
मक्खियाँ
मकड़ी होते ही
मेज की
दूसरी ओर
चली जा रही हैं
साक्षात्कार
कर रही हैं
सकारात्मकता
के पाठ
कैसे
पढ़ाये जायेंगे
समझा रही हैं
मक्खियों
का राजा
मदमस्त है
लग रहा है
बिना अफीम
चाटे ही
गहरी नींद
आ रही है
खून
चूसने में
मजा नहीं है
खून
सुखाने के
तरीके
सिखा रही हैं
मकड़ियाँ
हो चुकी
मक्खियों के
गिरोह के
मान्यता प्राप्त
होने का सबूत
खबरचियों
की टीम
जुटा रही है
मकड़ी
नहीं हो सकी
मक्खियाँ
बुद्धिजीवियों
में अब
गिनी
जा रही हैं
इसलिये
उनके
कहने सुनने
लिखने पढ़ने
की बात
की बात
करने की
जरूरत ही
नहीं समझी
जा रही है
अखबार में
बस
मकड़ियों
की खबर
उनके
सरदार
के इशारों
से ही
छापी
जा रही है
गिरोह
की बैठकों
में तेजी
आती हुयी
नजर आ रही है
फिर किसी
बड़ी लूट की
लम्बी योजना पर
मुहर लगवाने के लिये
प्रस्ताव की
कापियाँ
सरकार
के पास
भेजी
जा रही हैं
अंग्रेजों के
तोड़ो और
राज करो
के सिद्धांत का
नया उदाहरण
पेश करने
की तैयारी है
एक
पुरानी दुकान की
दो दुकान बना कर
दो दुकानदारों
के लिये दो कुर्सी
पेश करने की
ये मारामारी है
गिरोह
की खबरें
छापने के लिये
क्या
मिल रहा है
खबरची को
खबर
नहीं बता रही है
हो सकता है
लम्बी लूट
की योजना में
उनको भी
कहा गया हो
उनकी भी
कुछ भागीदारी है
थाना कोतवाली
एफ आई आर
होने का
कोई डर हो
ऐसी बात
के लिये
कोई जगह
छोड़ी गयी हो
नजर
नहीं आ रही है
गिरोह
के मन मुताबिक
लुटने के लिये तैयार
प्रवेश
लेने वाले
अभ्यर्थियों की
हर साल
एक लम्बी लाईन
खुद ही
खुदकुशी
करने के लिये
जब
आ ही जा रही है
‘उलूक’
तू लिख
‘उलूक’
तू मत लिख
कुछ अलग
नहीं होना है
किसी भी जगह
इस देश में
सब वही है
सबकी
सोच वही है
तेरी खुजली
तुझे ही
खुजलानी है
इतनी सी अक्ल
तुझे पता नहीं
क्यों नहीं
आ पा रही है ।
चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com
गुरुवार, 17 जनवरी 2019
सेब को अनार है कह देने वालों की भर्ती गिरोह का सरदार करवा रहा है
पर्दे के
पीछे से
जल्दी ही
कुछ उल्टा
करने
जा रहा है
सामने से
हो रही
अच्छी
सीधी
बातों से
समझ
आ रहा है
अखबार
सरदार की
भेजी खबर को
सजा कर
दिखा रहा है
जरूरत मंदों
के लिये
संवेदना
देख कर
सब गीला
हो जा रहा है
शहर में
कुछ नया
अजूबा होने
के आसार
मौसम विभाग
सुना रहा है
आंकड़े
बगल के देश
के मेलों में बिके
गधों के
ला ला कर
दिखा रहा है
जमीने
किस की
खरीदी हुई हैं
किस के
हैं मकान
मैदान के
शहर में
जायजा
लिया
जा रहा है
पहाड़
से उतार
मैदान में
राजा के
दरबार को
ले जाने का
आदेश
जल्दी ही
आने जा रहा है
पहाड़ों
को वीरान
करने की
एक नयी
कोशिश है
किसी
को बहुत
मजा
आ रहा है
गिरोह
पढ़ा रहा है
सेब को
अनार
कहलवाना किसी को
कोई
‘उलूक’ को
अनार है
अनार है
कह कर
एक सेब
रोज
दिखा रहा है ।
चित्र साभार: www.kisspng.com
शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018
दिसम्बर ने दौड़ना शुरु कर दिया तेजी से बस जल्दी ही साल की बरसी मनायी जायेगी
गुरुवार, 22 नवंबर 2018
पता ही नहीं चलता है कि बिकवा कोई और रहा है कुछ अपना और गालियाँ मैं खा रहा हूँ
लिखते होंगे
शेर
सुनते होंगे
शेर
समझते भी होंगे
शेर हैं
कहने नहीं
जा रहा हूँ
एक शेर
जंगल का देख कर
लिख देने से शेर
नहीं बन जाते हैं
कुछ
लम्बी शहरी
छिपकलियाँ हैं
जो आज
लिखने जा रहा हूँ
भ्रम रहता है
कई सालों
तक रहता है
कि अपनी
दुकान का
एक विज्ञापन
खुद ही
बन कर
आ रहा हूँ
लोग
मुस्कुराहट
के साथ मिलते हैं
बताते भी नहीं है
कि खुद की नहीं
किसी और की
दुकान चला रहा हूँ
दुकानें
चल रही हैं
एक नहीं हैं
कई हैं
मिल कर
चलाते हैं लोग
मैं बस अपना
अनुभव बता रहा हूँ
किस के लिये बेचा
क्या बेच दिया
किसको बेच दिया
कितना बेच दिया
हिसाब नहीं
लगा पा रहा हूँ
जब से
समझ में आनी
शुरु हुई है दुकान
कोशिश
कर रहा हूँ
बाजार बहुत
कम जा रहा हूँ
जिसकी दुकान
चलाने के नाम
पर बदनाम था
उसकी बेरुखी
इधर
बढ़ गयी है बहुत
कुछ कुछ
समझ पा रहा हूँ
पुरानी
एक दुकान के
नये दुकानदारों
के चुने जाने का
एक नया
समाचार
पढ़ कर
अखबार में
अभी अभी
आ रहा हूँ
कोई कहीं था
कोई कहीं था
सुबह के
अखबार में
उनके साथ साथ
किसी हमाम में
होने की
खबर मिली है
वो सुना रहा हूँ
कितनी
देर में देता
है अक्ल खुदा भी
खुदा भगवान है
या भगवान खुदा है
सिक्का उछालने
के लिये जा रहा हूँ
‘उलूक’
देर से आयी
दुरुस्त आयी
आयी तो सही
मत कह देना
अभी से कि
कब्र में
लटके हुऐ
पावों की
बिवाइयों को
सहला रहा हूँ ।
चित्र साभार: https://www.gograph.com
रविवार, 15 जुलाई 2018
किसी किसी आदमी की सोच में हमेशा ही एक हथौढ़ा होता है
जोड़ कर
चार ही तो
पढ़ा रहा है
किसलिये रोता है
दो में एक
इस बरस
जोड़ा है उसने
एक अगले बरस
कभी जोड़ देगा
दो और दो
चार ही सुना है
ऐसे भी होता है
एक समझाता है
और चार जब
समझ लेते हैं
किसलिये
इस समझने के
खेल में खोता है
अखबार की
खबर पढ़ लिया कर
सुबह के अखबार में
अखबार वाले
का भी जोड़ा हुआ
हिसाब में जोड़ होता है
पेड़
गिनने की कहानी
सुना रहा है कोई
ध्यान से सुना कर
बीज बोने के लिये
नहीं कहता है
पेड़ भी
उसके होते हैं
खेत भी
उसके ही होते हैं
हर साल
इस महीने
यहाँ पर यही
गिनने का
तमाशा होता है
एक भीड़ रंग कर
खड़ी हो रही है
एक रंग से
इस सब के बीच
किसलिये
उछलता है
खुश होता है
इंद्रधनुष
बनाने के लिये
नहीं होते हैं
कुछ रंगों के
उगने का
साल भर में
यही मौका होता है
एक नहीं है
कई हैं
खीचने वाले
दीवारों पर
अपनी अपनी
लकीरें
लकीरें खीचने
वाला ही एक
फकीर नहीं होता है
उसने
फिर से दिखानी है
अपनी वही औकात
जानता है
कुछ भी कर देने से
कभी भी यहाँ कुछ
नहीं होना होता है
मत उलझा
कर ‘उलूक’
भीड़ को
चलाने वाले
ऐसे बाजीगर से
जो मौका मिलते ही
कील ठोक देता है
अब तो समझ ले
बाजीगरी बेवकूफ
किसी किसी
आदमी की
सोच में
हमेशा ही एक
हथौढ़ा होता है ।
चित्र साभार: cliparts.co
सोमवार, 30 अप्रैल 2018
नकारात्मकता फैला कर सकारात्मकता बेचने वालों के लिये सजदे में सर झुका जा रहा था
अखबार में
बिल्लियों ने
फिर छ्पवाया
सुबह का
अखबार
रोज की तरह
आज भी
सुबह सुबह
उसी तरह से
शर्माता हुआ
जबर्दस्ती
घर के दरवाजे से
कूदता फाँदता
हुआ ही आया
खबर
शहर के कुछ
हिसाब की थी
कुछ किताब की थी
शरम लिहाज की थी
शहर के पन्ने में ही
बस दिखायी गयी थी
चूहों की पढ़ाई
को लेकर आ रही
परेशानियों की बात
बिल्लियों के
अखबार नबीस के द्वारा
बहुत शराफत के साथ
रात भर पका कर
मसाले मिर्च डाले बिना
कम नमक के साथ
बिना काँटे छुरी के
सजाई गयी थी
मुद्दा
दूध के बंटवारे
को लेकर हो रहे
फसाद का नहीं है
खबर में
समझाया गया था
बिल्लियाँ
घास खाना
शुरु कर जी रही हैं
बिल्लियों का
वक्तव्य भी
लिखवाया गया था
सफेद
चूहों को अलग
और
काले चूहों को
कुछ और अलग
बताया गया था
खबर जब
कई दिनों से
सकारात्मक सोच
बेचने वालों की
छपायी जा रही थी
पता नहीं बीच में
नकारात्मक उर्जा
को किसलिये
ला कर
फैलाया जा रहा था
बात
चूहों के
शिकार की
जब थी ही नहीं
बेकार में
दूध के बटवारे
को लेकर पता नहीं
किस बात का
हल्ला
मचवाया जा रहा था
चूहे चूहों को गिन कर
पूरी गिनती के साथ
बिल से निकल कर
रोज की तरह वापस
अपने ही बिल में
घुस जा रहे थे
दूध और
मलाई के निशान
बिल्लियों की मूँछों
में जब आने ही
नहीं दिये जा रहे थे
बिल्लियों के
साफ सुथरे धंधों को
किसलिये
इतना बदनाम
करवाया जा रहा था
ईमानदारी की
गलतफहमियाँ
पाला ‘उलूक’
बेईमानी के
लफड़े में
अपने हिस्से का
गणित लगाता हुआ
रोज की तरह
चूहे बिल्ली के
खेल की खबर
खबरची
अखबार की गंगा
और डुबकी
सोच कर
हर हर गंगे
मंत्र के जाप के
एक हजार आठ
पूरे करने का
हिसाब लगा रहा था।
चित्र साभार: www.dreamstime.com