उलूक टाइम्स

मंगलवार, 10 जून 2014

ऐसे में क्या कहा जाये जब ऐसा कभी हो जाता है

कभी कभी
सोच सोच 
कर भी
कुछ
लिख
लेना 

बहुत
मुश्किल
हो जाता है 

जब
बहुत कुछ
होते हुऐ भी 

कुछ भी
कहीं भी 
नहीं नजर
आ पाता है 

औकात
जैसे
विषय पर 

तो
कतई
कुछ नहीं 

शब्द
के अर्थ

ढूँढने 
निकल भी
लिया जाये 

तब भी
कुछ भी
हाथ 
में
नहीं
आ पाता है 

सब कुछ
सामान्य
सा 
ही तो
नजर आता है 

कोई
हैसियत
कह जाता है 

कोई
स्थिति प्रतिष्ठा
या
वस्तुस्थिति
बताता है 

पर
जो बात
औकात
में है 

वो
मजा
शब्दकोश
में

उसके 
अर्थ में
नहीं
आ पाता है 

जिसका
आभास
एक नहीं 
कई कई बार
होता 
चला जाता है 

कई कई
तरीकों से 
जो कभी
खुद को खुद 
से
पता चलती है 

कभी
सामने वाले
की 

आँखो की
पलकों
के 

परदों में
उठती 
गिरती
मचलती है 


कुछ भी हो

औकात 
पद प्रतिष्ठा
या
स्थिति
नहीं हो सकती है 

कभी
कुछ शब्द 
बस
सोचने के लिये 
बने होते हैं
यूँ ही 

सोचते ही
आभास 
करा देते हैं 

बहुत गहरे
अर्थों को 

उन्हे बस
स्वीकार 
कर लेना होता है 

‘उलूक’
हर शब्द
का 
अर्थ कहीं हो 
समझने के लिये 

हमेशा जरूरी 
नहीं हो जाता है 

महसूस
कर लेना 
ही
बहुत होता है 

कुछ
इसी तरह भी 

जो जैसा होता है 
वैसा ही
समझ 
में
भी आता है 

औकात
का अर्थ 

औकात ही
रहने 
दिया
जाना ही 

उसकी
गरिमा 
को
बढ़ाता है 

सही मानों में 

कभी कभी 
शब्द ही

उसका 
एक
सही अर्थ 
हो जाता है ।