कभी कभी
सोच सोच
सोच सोच
कर भी
कुछ
लिख
लेना
कुछ
लिख
लेना
बहुत
मुश्किल
हो जाता है
जब
बहुत कुछ
होते हुऐ भी
कुछ भी
कहीं भी
नहीं नजर
आ पाता है
आ पाता है
औकात
जैसे
विषय पर
तो
कतई
कुछ नहीं
शब्द
के अर्थ
ढूँढने
निकल भी
लिया जाये
लिया जाये
तब भी
कुछ भी
हाथ में
नहीं
आ पाता है
सब कुछ
सामान्य
सा ही तो
नजर आता है
कोई
हैसियत
कह जाता है
कोई
स्थिति प्रतिष्ठा
या
वस्तुस्थिति
बताता है
बताता है
पर
जो बात
औकात
में है
वो
मजा
शब्दकोश
में
उसके
अर्थ में
नहीं
आ पाता है
नहीं
आ पाता है
जिसका
आभास
एक नहीं
कई कई बार
होता चला जाता है
होता चला जाता है
कई कई
तरीकों से
जो कभी
खुद को खुद से
पता चलती है
खुद को खुद से
पता चलती है
कभी
सामने वाले
की
आँखो की
पलकों
के
परदों में
उठती
गिरती
मचलती है
मचलती है
कुछ भी हो
औकात
पद प्रतिष्ठा
या
स्थिति
या
स्थिति
नहीं हो सकती है
कभी
कुछ शब्द
बस
सोचने के लिये
सोचने के लिये
बने होते हैं
यूँ ही
यूँ ही
सोचते ही
आभास
करा देते हैं
बहुत गहरे
अर्थों को
उन्हे बस
स्वीकार
कर लेना होता है
‘उलूक’
हर शब्द
का
अर्थ कहीं हो
समझने के लिये
हमेशा जरूरी
नहीं हो जाता है
महसूस
कर लेना
ही
बहुत होता है
बहुत होता है
कुछ
इसी तरह भी
जो जैसा होता है
वैसा ही
समझ में
भी आता है
समझ में
भी आता है
औकात
का अर्थ
औकात ही
रहने दिया
जाना ही
उसकी
गरिमा
को
बढ़ाता है
बढ़ाता है
सही मानों में
कभी कभी
शब्द ही
उसका
उसका
एक
सही अर्थ
सही अर्थ
हो जाता है ।