उलूक टाइम्स

बुधवार, 9 जुलाई 2014

बात अगर समझ में ही आ जाये तो बात में दम नहीं रह जाता है

एक
छोटी सी
बात को 

थोड़े से
ऐसे शब्दों
में कहना
क्यों नहीं
सीखता है

जिसका अर्थ
निकालने में
समझने में
ताजिंदगी
एक आदमी
शब्दकोषों
के पन्नों को
आगे पीछे
पलटता हुआ
एक नहीं
कई कई बार
खीजता है

बात समझ में
आई या नहीं
यही नहीं
समझ पाता है

जब बात का
एक सिरा
एक हाथ में
और
दूसरा सिरा
दूसरे हाथ में
उलझा हुआ
रह जाता है

छोटी छोटी
बातों को
लम्बा खींच कर
लिख देने से
कुछ भी
नहीं होता है

समझ में
आ ही गई
अगर एक बात
बात में दम ही
नहीं रहता है

कवि की
सोच की तुलना
सूरज से
करते रहने
से क्या होता है

सरकारी
आदेशों की
भाषा लिखने वाले
होते हैं
असली महारथी

जिनके
लिखे हुऐ को

ना
समझ लिया है
कह दिया जाता है

ना ही
नहीं समझ में
आया है कहा जाता है

और
‘उलूक’
तू अगर
रोज एक
छोटी बात को
लम्बी खींच कर
यहाँ ले आता है

तो कौन सा
कद्दू में
तीर मार
ले जाता है ।