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मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

जब भी करेगा ‘उलूक’ कुछ फालतू सी बकवास ही करेगा

कितना भी पोत लिया जाए
एक सफ़ेद पन्ने को कूंची से या कलम से
आंखे मानती नहीं है देखने वाले की यूं ही
कुछ भी कभी भी कसम से

काला लिखा हुआ होता है कुछ खूबसूरत सा सामने से
क्या फर्क पढ़ता है
पलकें खुली होती हैं मगर ढकी हुई आँखे होती हैं
किसी और की सोच से 
सपने कोई और गढ़ता है

उछालते रहिये सिक्के जिन्दगी पड़ीं है
एक तरफ हेड दूसरी और टेल ही रहेगा
सिक्का खडा करने की ताकत के साथ खडा है
सामने से कोई आज
तू क्या करेगा

सोचने और करने में बहुत साफ दिखाई देता है अंतर
किसी का सामने से
बातों में जलेबी बना के परोसने वालों का
कौन क्या कभी कुछ कर सकेगा

 पाप किये हैं पापी भी है साथ में बह रही गंगा भी है
मन आयेगी तो कभी नहा भी लेगा
‘उलूक’ तेरे सोचने और करने में फर्क ही नहीं है  
जो भी उखाडेगा तेरा ही कुछ उखाड़ लेगा |

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



 

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

प्रश्न अच्छे हों लिखते चले जायें सौ हो जायें किताब एक छपायें



रात की
एक बात

और
सुबह के
दो
जज्बात 


पता नहीं
कौन

कहाँ से

कौन सी
कौड़ी
ढूँढ कर
कब
ले आये 


बस
पन्ने पर
चिपका हुआ

कुछ
नजर आये 

नजर
छ: बटा छ:
हो

जरूरी नहीं

कौड़ी 

कौआ
या
कबूतर
हो जाये 

असम्भव
भी नहीं

उड़ ही जाये 

जो भी है

कुछ देर
ठहर लें 

गीले
जज्बातों को
 सुखाने
के लिये

और
सूखों के

कुछ
नमीं
पी जाने के लिये

बात का
क्या है
निकलती है 

दूर तलक
जाये या ना जाये

या

फिर
लौट कर

अपनी जगह
पर
आ जाये

नियम
की किताब

पर
बने सौ आने

कोई
भी बनाये

खुद भी पढ़े
ढेर सारी बटें

बरगद की
लटों की तरह
फैलती
चली जायें

सबके पास
अपनी अपनी
कम से कम
एक
हो जायें

फिर
चाहे
नाक की
सीध पर

बिना
इधर उधर देखे

सामने
की ओर
कहीं
निकल जाये

बीच बीच
में
जाँच लिया जाये

किताब
रखी है पास
में

या
घर तो
नहीं भूल आये 

बात
का क्या है
लिख लिया जाये

अपनी
किताब में
अपना
हिसाब हो जाये

जज्बात
अपने आप
निकलेंं

कलम
से
निकल
कागज
पर
फैल जायेंं

प्रश्न
सूझने जरूरी हैं
बूझने भी

कभी

मन करे

पूछ्ने

निकल कर
खुले मैदान में
आ जायें

‘उलूक’
के
लिखे लिखाये
में

बात कोई
जज्बात
जैसी
नजर आ जाये

और
उसपर
अगर

समझ
में भी
आ जाये

गलती
हो गयी होगी

मान कर
भूल जायें

प्रश्न चिन्ह
ना लगायें।

चित्र साभार: https://airjordanenligen2015.com

सोमवार, 3 सितंबर 2018

कुछ बरसें कुछ बरसात करें बात सुनें और बात सुनायें बातों की बस बात करें



किसी को लग पड़ कर कहीं पहुचाने की बात करें
रास्ते काम चलाऊ उबड़ खाबड़ बनाने की बात करें

कौन सा किसी को कभी कहीं पहुँचना होता है
पुराने रास्तों के बने निशान मिटाने की बात करें

बात करने में संकोच भी नहीं करना होता है
पुरानी किसी बात को नयी बात पहनाने की बात करें

बात है कि छुपती ही नहीं है दूर तक चली जाती है
बेशरम बात को कुछ शरम सिखाने की बात करें

खुद के धंधों में कुछ बेवकूफ होते हैं लगे ही रहते हैं
किसी और के धंधे को अपनी दुकान से पनपाने की बात करें

अपने घर के अपने बच्चे खुद ही बहुत समझदार होते हैं
दूसरों के बच्चों को अपनी बात से चलाने की बात करें

बातों का सिलसिला है सदियों से इसी तरह चलता है
कुछ बात की बरसात करें कुछ बरसात की बात करें

‘उलूक’देर रात गये बैठ कर उजाले की बात लिखता है
रहने भी दें किसलिये एक बेवकूफ की गफलतों की बात करें।

चित्र साभार: http://cliparting.com

बुधवार, 27 जून 2018

आओ भूत खोद कर लायें भविष्य की बात आये उससे पहले उसकी कब्र वर्तमान में ही बनाकर मंगलगीत मिलकर गायें

छोड़ें
शराफतें
करें
शरारतें
कुछ
खुराफातें

अपनी
नहीं भी हों
कोई बात नहीं

पर गिनें

सामने वाले की
बड़ी या छोटी
जो भी दिख जाये
सामने से

वो वाली आतें

रोकें
लटक कर
आगे बढ़ रही
घड़ी की सूईयों पर

समय
को 
खींचें
पीछे ले जायें

बायीं नाक से
खींच कर हवा
आहिस्ता
दायीं नाक से
बाहर का रास्ता
बना कर दिखायें
उल्टा पीछे को
चलने का
रास्ता सिखायेंं

बहुत
जरूरी है
समय को भी
सीख लेना
इस जमाने में
करना प्राणायाम

उसके भी
निकाले
जा सकते हैं
कभी भी
कैसे भी
कहीं भी
प्राण

लिखाकर
थाने में

चोर रहा था
बेशरम

आने वाले
समय के
पेड़ों से
समय से
पहले ही
पके हुऐ
लाल पीले
हरे आम

पीछे चलें
उल्टे पैरों से
मुँह आगे कर

कहीं भी
जाकर गिनें
गिरे हुऐ मरे हुऐ
बटेर और तीतर
शिकारी को
बिल्कुल भी
नहीं पकड़ना
है ठानकर

गिनती बढ़ायें
सौ के दस
हजार दिखायें

उस
समय के चित्र
इस समय
के अखबार
में छपवायें
ढोल नगाड़े
बजवायें

तीतर बटेरों
की आत्मायें
आकर
बता गयी हैं
शिकारी
के नाम पते

हरे पेड़ों के
झड़ गये
पत्तों पत्तों
पर लिखवा
लिखवा
कर बटवायें
मुनादी करवायें

पिछ्ली पीढ़ी
के भूत पिशाचों
को फाँसी की
सजा दिलवायें

आओ
‘उलूक’
संकल्प करें

प्राणवान
कुछ भी
समझ
में आये
उसका श्राद्ध
गया जाकर
प्राण
निकलवाने
से पहले
करवाने
का आदेश
करवायें

आओ
भूत खोद
कर लायें
भविष्य की
बात आये
उससे पहले
उसकी कब्र
वर्तमान में
ही बनाकर
मंगलगीत
मिलकर गायें।

चित्र साभार: https://www.fotosearch.com/

गुरुवार, 31 अगस्त 2017

कभी तो छोड़ दिया कर ‘उलूक’ हवा हवा में हवा बना कर हवा दे जाना




किसी की मजबूरी होती है
अन्दर की बात लाकर
बाहर के अंधों को दिखाना
बहरों को सुनाना

और
बेजुबानों को
बात को बार बार कई बार
बोलने बतियाने के लिये
उकसाना

सबके बस में भी
नहीं होती है

झोले में कौए रख कर
रोज की कबूतर बाजी

हर कोई नहीं कर सकता है

भागते हुऐ शब्दों को
लंगोट पहना पहना कर
मैदान में दौड़ा ले जाना

कुछ कलाकार होते हैं
माहिर होते हैं

जानते हैं शब्दों को बाँध कर
उल्लू की भाँति
अंधेरे आकाश में
बिना लालटेन बांधे
उड़ा ले जाना

सुना है
कहीं किसी हकीम लुकमान ने
अपने बिना लिखे नुस्खे
में कहा है

अच्छा नहीं होता है
पत्थरों पर 
कुछ भी लिख लिखा कर
 सबूत दे जाना

देख सुन कर तो
कभी किसी दिन
समझ लिया कर
‘उलूक’

अन्दर की बात का
बाहर निकलते निकलते
हवा हवा में हवा होकर
हवा हो जाना।

चित्र साभार: www.clker.com

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

कलाबाजी कलाकारी लफ्फाजों की लफ्फाजी जय जय बेवकूफों की उछलकूद और मारामारी

कब किस को
देख कर क्या
और
कैसी पल्टी
खाना शुरु कर दे
दिमाग के अन्दर
भरा हुआ भूसा

भरे दिमाग वालों
से पूछने की हिम्मत
ही नहीं पड़ी कभी
बस
इसलिये पूछना
चाह कर भी
नहीं पूछा

उलझता रहा
उलटते पलटते
आक्टोपस से
यूँ ही खयालों में
बेखयाली से

यहाँ से वहाँ
इधर से उधर
कहीं भी
किधर भी
घुसे हुऐ को
देखकर

फिर कुछ भी
कहने लिखने
के लिये नहीं सूझा

बेवकूफ
आक्टोपस
आठ हाथ पैरों
को लेकर तैरता
रहा जिंदगी
भर अपनी

क्या फायदा
जब बिना
कुछ लपेटे
इधर से उधर
और
उधर से इधर
कूदता रहा

कौन पूछे
कहाँ कूदा
किसलिये
और
क्यों कूदा

गधे से लेकर
स्वान तक
कबूतर से
लेकर
कौए तक

मिलाता चल
आदमी की
कलाबाजियों
को देखकर
‘उलूक’
आठ जगह
एक साथ
घुस लेने की
कारीगरी
छोड़ कर
हर जगह
एक हाथ
या एक पैर
छोड़ कर
आना सीख

और
कुछ मत कर
कहीं भी

कहीं और
बैठ कर
कर बस
मौज कर

आक्टोपस बन
मगर मत चल
आठों लेकर
एक साथ हाथ

बस रख
आया कर
हर जगह कुछ
बताने के लिये
अपने आने
का निशान

किस ने
देखना है
कौन
कह रहा है
आ बता
अपनी
पहचान

आक्टोपस
होते हैं
कोई बात
है क्या
आक्टोपस
हो जाना
सीख ना
आदमी से।

चित्र साभार: cz.depositphotos.com

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

करने वालों को लात नहीं करने वालों के साथ बात सिद्धान्ततह ही हो रहा होता है

बेवकूफों
की
दिवाली

समझदारों
की
अमावस
काली

बाकी
लेना देना
अपनी
जगह पर

होना
ना होना
होने
ना होने
की
जगह पर
पहले
जैसा ही
होना
होता है
हो रहा
होता है

अवसरवाद
को
छोड़ कर
कोई भी वाद
वाद नहीं
होता है
किसे
इस बात
से मतलब
हो रहा
होता है

किसे
समझाये
आदमी
इस
बात को
जहाँ
आदमी ही
आदमी को
खुद
खुरचता
और
खुद ही
रो रहा
होता है

पानी नहीं
होता है
फिर भी
कोई भी
किसी
को भी
खुले आम
धो रहा
होता है

सारे
हम्माम
बुला रहे
होते हैं
सब कुछ
उतारे
हुओं
को ही
फिर
किस लिये
कोई
उतारा हुआ
कुछ
ओढ़ कर
उधर
घुसने
के लिये
रो रहा
होता है

पढ़ने
पढा‌ने में
किस लिये
लगे हुए हैं
नासमझ लोग

जब
समझदार
कभी भी
नहीं
पढ़ाने वाला
पढा‌ई लिखाई
कराने वालों
की लाईन
बनाने के
लिये लाईने
बो रहा होता है

केवल एक
दो हजार
के नोट
को
निकालने
में लग
रहे होते
हैं जहाँ
सारे
समझदार लोग

लाईन लगा
कर एक
बेवकूफ
ही होता
है जो
हजारों
दो हजार
के नोटों की
लाईन
पर लाईन
अपने घर पर
कहीं लगा कर
सो रहा होता है

समझने
में लगा है
देश
समझदारी
समझदार की
जो हो
रहा होता है
वो हो
रहा होता है

कोई
नया भी नहीं
हो रहा होता है
घर मोहल्ले में
हर दिन
हर समय
हो रहा होता है
चोर के
हाथ में
चाबियाँ
खजानों
की दिख
रही होती हैं

अंधा ‘उलूक’
अलीबाबा के
खुल जा
सिमसिम
मंत्र को
कागज में
लिख लिख
कर कहीं
बिना बताये
जमीन में
बो रहा
होता है

रोना बन्द
हो रहा
होता है
सभी रोने
वालों का
छातियाँ पीटने
वालों का
काला सोना
सफेद ‘सोना’
हो रहा होता है

क्रांतिकारियों
के चित्र और
कहानियों का
उजाला लिये
हाथ में
सर पीटता
अँधेरा कहीं
कोने में रो
रहा होता है ।

चित्र साभार: Dragon Alley Journals - WordPress.com

सोमवार, 9 नवंबर 2015

जब पकाना ही हो तो पूरा पकाना चाहिये बातों की बातों में बात को मिलाना आना चाहिये

अब
चोर होना
अलग बात है

ईमानदार होना
अलग बात है

चोर का
ईमानदार होना
अलग बात है

चोरी करने
के लिये
कुछ सामने
से होना
अलग बात है

बिना कुछ
उठाये
छिपाये भी
चोरी हो जाना
अलग बात है

कहने का
मतलब
ऐसे तो कुछ
भी नहीं है
पर
वैसे कहो
तो कुछ है
और
नहीं भी है

बात कहने में
क्या जाता है
बातें बताना
अलग बात है
बातें बनाना
अलग बात है

जैसे बात
दिशा बताने
की हो तो भी
बिल्कुल
जरूरी नहीं है
दिशा का ज्ञान हो

बच्चे का
चेहरा हो
शरीर
जवान हो
अधेड़ की
सोच हो
बुढ़ापे की
झुर्रियों
के पहले
से ही छिपे
हुऐ निशान हो

इसकी जीत में
उसकी हार हो
किसी के लिये
हार और जीत
दोनो बेकार हों

समय के
निशानों पर
छिपाये
निशान हों

जन्मदिन हो
जश्न हो
शहर हो
प्रदेश हो
ईमानदार
का ईमान हो
झूठ बस
बे‌ईमान हो

ईमानदारी
पर भाषण हो
झूठ का
सच हो
सच का
झूठ हो
शासन का
राशन हो
योगा का
आसन हो
बात का
बात से
बात पर
प्रहार हो
मुस्कुराता

अंदर
ही अंदर
अंदर का
व्यभिचार हो

पर्दा खुला
रहने रहने
तक तो
कम से कम
नाटक हो
और
जोरदार हो ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

बातें बनाने तक की बात है चल ही जाती हैं नहीं चलती है तो फौज लगा कर चला दी जाती हैं

बातें
कितनी भी
बना ली जायें

लगता है
अभी कुछ ही
कहा गया है

बहुत कुछ है
जो बचा हुआ
रह गया है

जल की
इतनी बूँदें
होती और
जमा हो
गई होती

जलजला
ला देती
बहा देती

बहुत कुछ
छोड़ दिया
जाता

समय
के साथ
बहने के
लिये अगर

फिर
लगता है
बातें भी बूँद बूँद
ही जमा होती हैं

जैसी
जगह मिले
उसी की जैसी
हो लेती हैं

सामंजस्य
हो बात का
बात के साथ
जरूरी
नहीं होता है

कुछ बातें
खुद ही
तरतीब से
लग जाती हैं

कुछ
अपने ही आप
एक दूसरे पर
चढ़ जाती हैं

निकलना
चाहती हैं 
अंदर से बाहर


बेतरतीबी से
ऊँची नीची
सोच के साथ

उसी सोच
पर चढ़ कर
या उतर कर

आसान भी
नहीं होता है
बाँधें रखना

या फिर यूँ ही
छोड़ देना
बातों की
नकेल को

बातें एक साथ
अगर कह भी
दी जाती हैं

बाढ़ फिर भी
नहीं कभी
आ पाती है

बातें
पानी की तरह
बह तो जाती हैं

पर
दूर तक कहीं भी
नजर नहीं आती हैं

उनके
निशान भी
समय की रेत
पर खो जाते हैं

सबके बस में
नहीं होता है
जमा किये
रहना बातों को

कुछ
बहा देते हैं
यूँ ही कहीं भी
बातों को
बातों ही
बातों में

बातों
के बादल
भी नहीं बनते हैं

बात बात में
फटते भी नहीं हैं

बातें
निचोड़नी
पड़ती हैं

कुछ पीनी
पड़ती हैं
कुछ जीनी
पड़ती हैं

बात तो
तब बनती है

जब
कोई बात
बहुत ही
धीरे धीरे
हौले हौले से

बात
की बात में
बातों के बीच
छोड़ दी जाती है

कब काट
जाती है
कब फाड़
जाती है

कब कहाँ
किस को
चीर जाती है

उसके बाद
मटकती
उछलती
चल देती है

हर जगह
जा जा कर
नाच दिखाती है

देखते
रह जाते हैं
बातें बनाने वाले

उनकी
खुद की
कही बात
उन्हीं को
लपेट ले जाती है

‘उलूक’
जानता है
बहुत अच्छी तरह

सबसे
अच्छी बात

ऐसी ही
एक बात
होती है

जो
किसी
के भी
समझ में
कभी भी
नहीं
आ पाती है

बातें
बनाना
वैसे भी
किसी को भी

कहीं भी
नहीं सिखाया
जाता है

बातें तो
बात ही बात में

यूँ ही
चुटकी में
बना दी जाती हैं

मुश्किल
तब होती है

जब बातों
में से ही
एक बात

च्यूइंगम
हो जाती है ।

चित्र साभार:
www.shutterstock.com

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

कुछ भी लिख देना लिखना नहीं कहा जाता है


एक बात पूछूँ

पूछ
पर पूछने से पहले ये बता 
किस से पूछ रहा है पता है 

हाँ पता है 
किसी से नहीं पूछ रहा हूँ 

आदत है पूछने की 
बस यूँ ही
ऐसे ही 
कुछ भी कहीं भी पूछ रहा हूँ 

तुमको
कोई परेशानी है 
तो मत बताना 
बताना
जरूरी नहीं होता है 

कान में
बता रहा हूँ वैसे भी 
कोई 
 कुछ नहीं बताता है 
पूछने से ही
गुस्सा हो जाता है 
गुर्राता है 

कहना
शुरु हो जाता है 

अरे तू भी पूछने वालों में 
शामिल हो गया 
मुँह उठाता है 
और पूछने चला आता है 

ये नहीं कि 
वैसे ही हर कोई
पूछने में लगा हुआ होता है 

एक दो पूछने वालों के लिये 
कुछ जवाब सवाब ही कुछ
बना कर क्यों नहीं ले आता है 

हमेशा 
जो दिखे वही साफ साफ बताना 
अच्छा नहीं माना जाता है 

रोटी पका सब्जी देख दाल बना 
भर पेट खा

खाली पीली अपनी थाली 
अपने पेट से बाहर 
किसलिये फालतू में 
झाँकने चला आता है 

‘उलूक’ 
समाज में रहता है 

क्यों नहीं 
रोज ना भी सही कुछ देर के लिये 
सामाजिक क्यों नहीं हो जाता है 

पूछने गाछने के चक्कर में 
किसलिये प्रश्नों का रायता 
इधर उधर फैलाता है ।

चित्र साभार: serengetipest.com

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

सब कुछ सामने एक साथ बातें पकड़े कोई कैसे आफत की बात

महीने
के अंतिम
दिनों के
मुद्दों पर

भारी पड़ती
महत्वाकाँक्षाऐं

अहसास

जैसे
महीने के
वेतन में से
बची हुई

कुछ
भारी खिरची

आवाज
करती हुई
बेबात में

जेब को
ही जैसे
फाड़ने
को तैयार

पुरानी
पैंट की
कच्ची
पड़ती हुई
कपड़े की
जेब से

दिखाई
देती हुई

जमाने
के साथ
चलने से
इंकार
कर चुकी
चवन्नी के
साथ में
एक अठन्नी

जगह
घेरने को
इंतजार करते
दिमाग के
कोने को

अपने अपने
हिसाब से

राशन
पानी
बिजली
गैस दूध
अखबार
सब्जी
टेलिफोन के
बिल के
बिलों के
हिसाब किताब
की हड़बड़ाहट
के साथ

टी वी पर
चलती बहस

लाशें
जलती कहीं

कहीं
दफन होती

कहीं
कानून

कहीं धर्म

आम आदमी
की समस्यायें

उसकी
महत्वाकाँक्षाऐं

उसके मुद्दे

सब गडमगड

थोड़ा देश

थोड़ा
देश भक्ति
के साथ साथ

रसोई
से आती
तेज आवाज
खाना
बन चुका है
लगा दूँ क्या ?

चित्र साभार: www.123rf.com

सोमवार, 20 जुलाई 2015

अब क्या बताये क्या समझायें भाई जी आधी से ज्यादा बातें हम खुद भी नहीं समझ पाते हैं

कोई नयी
बात नहीं है
पिछले साल
पिछले के
पिछले साल

और
उससे पहले के
सालो साल
से हो रही
कुछ बातों पर

कोई प्रश्न अगर
नहीं भी उठते हैं

उठने भी
किस लिये हैं

परम्पराऐं
इसी तरह
से शुरु होती हैं
और
होते होते
त्योहार
हो जाती हैं

मनाना
जरूरी भी
होता है
मनाया भी
जाता है
बताया भी
जाता है
खबर भी
बनाई जाती है
अखबार में
भी आती है

बस कुछ
मनाने वाले
इस बार
नहीं मनाते हैं
उनकी जगह
कुछ नये
मनाने वाले
आ जाते हैं

त्योहार मनाना
किस को
अच्छा नहीं
लगता है

पर
परम्परा
शुरु कर
परम्परा को
त्योहार
बनने तक
पहुचाने वाले
कहीं भी
मैदान में
नजर नहीं
आते हैं

अब
‘उलूक’
की आखों से
दिखाई देने
वाले दिवास्वप्न
कविता
नहीं होते हैं

समझ में
आते हैं
तो बस
उनको ही
आ पाते हैं

जो मैदान
के किसी
कोने में
बैठे बैठे
त्योहार
मनाने वालों
की मिठाईयों
फल फूल
आदि के लिये
धनराशि
उपलब्ध
कराने हेतु
अपने से
थोड़ा ऊपर
की ओर
आशा भरी
नजरों से
अपने अपने
दामन
फैलाते हैं

किसी की
समझ में
आये या
ना आये
कहने वाले
कहते ही हैं

रोज कहते हैं
रोज ही
कहने आते हैं
कहते हैं
और
चले जाते हैं

तालियाँ
बजने बजाने
की ना
उम्मीद होती है
ढोल नगाड़ों
और नारों
के शोर में
वैसे भी
तालियाँ
 बजाने वाले
कानों में
थोड़ी सी
गुदगुदी ही
कर पाते हैं ।

चित्र साभार: wallpoper.com

शनिवार, 16 मई 2015

बात होती है तभी बात पर बात की जाती है

धन्यवाद आभार
एक नहीं
कई कई बार
बात करने से
ही कुछ आप के
बात बन पाती
है सरकार
अटल सत्य है
बात होने पर
ही तो कोई बात
बना पाता है
बिना बात के
बात हो जाना
कहीं भी देखने
में नहीं आता है
बातें बनाने में
माहिर ही बातों से
आगे निकल पाता है
बात नहीं करने
वाले को इसीलिये
हाथ जोड़ कर जाने
के लिये कहा जाता है
बात निकलती है
तभी दूर तलक
भी जा पाती है
बातों पर लिखी
जाती हैं गजलें
बातें ही गीत
और कविताऐं
हो जाती हैं
बातें ही सुर में
ताल में बाँध कर
संगीत के साथ
सुनाई जाती हैं
आइये सीखते हैं
बातें बनाना
बातें फैलाना
बातें उठाना
और बातों
ही बातों में
बातों के ऊपर
से छा जाना
कल्पना कीजिये
सपनों में देख
कर तो देखिये
बातें करते हुऐ
करोड़ों जबानें
किस तरह
बातों ही बातों में
बातों के कल
कारखानों में
बदल जाती हैं
बातें अच्छे समय
के आने की
बातें सपनों में भी
सपने दिखाने की
बातों ही बातों में
बातों से भूख और
प्यास मिटाने की
बातें बिना कुछ
किये कराये यूँ ही
कहीं भी कभी भी
कुछ भी बातों बातों
में ही हो जाने की
बात होती है तभी
बात पर बात
भी की जाती है
बिना बात किये
बात पर बात
करने की बात
‘उलूक’ तक के
समझ से बाहर
की बात हो जाती है ।

चित्र साभार: www.clipartoday.com

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

किसी दिन ना सही किसी शाम को ही सही कुछ ऐसा भी कर दीजिये


अपनी ही बात अपने ही लिये 
रोज ना भी सही 
कभी तो खुल के कह ही लीजिये 

कोई नहीं सुनता इस गली में कहीं
अपनी आवाज के सिवा 
किसी और की आवाज 

खुद के सुनने के लिये ही सही 
कुछ तो कह दीजिये 

कितना भी हो रहा हो शोर उसकी बात का 
अपनी बात भी उसकी बातों के बीच 
हौले हौले ही सही कुछ कुछ ही कहीं 
कुछ तो कह दीजिये 

जो भी आये कभी मन में चाहे अभी 
निगलिये तो नहीं उगल ही दीजिये 

तारे रहते नहीं कहीं भी जमीन पर 
बनते बनते ही उनको 
आकाश की ओर हो लेने दीजिये 

मत ढूँढिये जनाब ख्वाब रोशनी के यहीं 
जमीन की तरफ नीचे यहीं कहीं 
देखना ही छोड़ दीजिये 

आग भी है यहीं दिल भी है यहीं कहीं 
दिलजले भी हैं यहीं 
कोयलों को फिर से चाहे जला ही लीजिये 

राख जली है नहीं दुबारा कहीं भी कभी 
जले हुऐ सब कुछ को जला देख कर 
ना ही कुरेदिये 

उड़ने भी दीजिये 
सब कुछ ना भी सही 
कुछ कुछ  तो कभी कह ही दीजिये 

अपनी ही बात को
किसी और के लिये नहीं 
अपने लिये ही सही 
मान जाइये कभी कह  भी दीजिये ।

चित्र साभार: galleryhip.com

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

बस चिंगारी से आग और आग से राख बनाने की बात करनी है


चिंगारियाँ उठने की बात आग़ लगने की बात बातों बातों में ही करनी है
इससे भी पूछना है उससे भी पूछना है
आग से भी पूछ कर कुछ सुलगने सुलगाने की बात करनी है

जलाना कितना भी है जलाना कुछ भी है बस जलाने की बात करनी है
आग लगनी है ना लगानी है बस आग दिखने और दिखाने की बात करनी है

धुँआ दिखना नहीं है राख बचनी नहीं है दिल को जलना नहीं है
तूफान आने की बात करनी है

कत्ल होना नहीं है खून बहना नहीं है क्राँतिकारियों की बात करनी है 
बहुत हो चुकी इंसानों की बातें पामेरियन ऐप्सो एल्शेशियन की बात करनी है

बहुत बेच दिये आदमी ने आदमी
अब लाशें दफनानी हैं  मूर्तियाँ लगवानी हैं कमीशन बनाने की बात करनी है

आग होती भी है आग लगती भी है मत करो जुल्म उसपर बड़ा
उसे भी कभी थोड़ा सा कुछ सोने जाने की बात करनी है 

सालों हो गये तुझको बातें बनाते ‘उलूक’ सबको पता है
तुझे तो बस दिया सलाई की बात करनी है


चित्र साभार: www.dreamstime.com

शनिवार, 15 नवंबर 2014

कोई नई बात नहीं है बात बात में उठती ही है बात

बड़ी असमंजस है
मुँह से निकली
नहीं बात
बात उठना
शुरु हो जाती है
मायने निकलने की
और मायने
निकालने की
बात की तह में
पहुँचने की
बात को बात की
जगह पर पहुँचाने
की छिड़ ही
जाती है बहस भी
खुद की खुद से ही
नहीं तो सामने
आने वाले किसी
भी शख्स से
अब ढपली
जब सबकी अपनी
अपनी अपनी
जगह पर ही
होती है बजनी
तो राग किसी का
कौन काहे लेना
चाहेगा उधार
नकद में
बिना सूद का
जब पड़ा हुआ हो
सबके पास अपना
अपना कारोबार
कल मित्र के
समझने समझाने
पर कह बैठा
घर पर जब
यूँ ही एक बात
चढ़ बैठे
समझाने वाले
बातों का हंटर
उठाये अपने
अपने हाथ
काहे समझाना
चाहते हो
सब कुछ सब को
जितना ना आये
समझ में उतना
रहता है चैन
क्यों सब को
बनाना चाहते हो
अपना जैसा
समझदार और बैचेन
बात को उठा देने
के बाद बात को
उठने क्यों नहीं देते
जन धन योजना
की तरह
बिना पैसे के खाते
और उसपर मिलने
वाले एक लाख
रुपिये के
दुर्घटना बीमा से
अपनी और अपनी
सात पुश्तों का
भविष्य सुरक्षित
क्यों नहीं कर लेते
अब बात उठी है
समझी किसने है
सब खुश है
और हैं खुशहाल
और आप लगे हुऐ हैं
समझाने में
क्यों करना चाहते है
सबको बस एक बात
के लिये बेहाल
खुश रहने का मंत्र
गाँठ बांध लीजिये
जनाब
बात सुनिये
बात करिये
बात लिख
भी लिजिये
कोई नहीं
रोक रहा है
बात समझने
समझाने की
बात मत करिये
बस इसी बात
से ही होना शुरु
होता है बबाल ।

चित्र साभार: teacherzilla.wordpress.com

रविवार, 5 अक्तूबर 2014

अभी अपनी अपनी बातें है बहुत हैं तेरी मेरी बातें कभी मिल आ वो भी करते हैं

कभी
मिलेगी फुरसत
इन सब बातों से
तो तेरी कुछ बात भी
लिख के कहीं रख लूंंगा

अभी तो
समेटने में
लगा हूँ
अपने आस पास
के फैल चुके रेगिस्तानी
कांंटो की फसल को

जो
जाने अन्जाने में
खु
द ही बोता
चला जा रहा हूँ

देख कर उगे हुऐ
बहुत ही खूबसूरत
फूल कैक्टस के
बहुत से रेगिस्तानों में
बिना पानी और
मिट्टी के भी

कई कई तो उगते हैं
कई कई सालों में
बस एक बार ही
और हमेशा इंतजार
रहता है उनके
किसी सुबह मुँह अंधेरे
खिल उठने का

चुभने वाली चीजें
वैसे तो वास्तु
के अनुसार
घर के सामने से
नहीं रखी जाती हैं

लेकिन
बैचेनियाँ
कोई बेचे
या ना बेचे
अपने लिये
अपने आप ही
खरीदी जाती हैं

धुंंऐ और
कोहरे में
वैसे भी
दूर से कोई
फर्क नजर
नहीं आता है

एक कहीं कुछ
जलने से बनता है
और दूसरा कहीं
कुछ बुझाने के बाद ही
राख के ऊपर से मडराता है

अब
कैसे कहे कोई
कि इतना कुछ है
उलझा हुआ
आस पास
एक दूसरे से

सुलझाने की
कौन सोचे
बस लिख कर
रख देने से ही
काम चल जाता है

तुझ पर है
और
बहुत कुछ है
लिखने के लिये

लिखूंंगा भी
किसी दिन

अभी तो
अपने बही खाते
के हिसाब किताब
को ही कुछ
लिख लिखा
कर रख लूँ कहीं
किसी पन्ने पर

तब तक
तेरे पास भी
बहुत मौके हैं
अपने हिसाब किताब
निबटाने के लिये

मिलते हैं
किसी दिन
कभी बैठ कर
अपने अपने
बही खातों
के साथ

कुछ
सवालों के हल
हर किताब में
एक जैसे ही
मिला करते हैं ।

चित्र साभार: http://www.clipartillustration.com

मंगलवार, 16 सितंबर 2014

बात करने का सलीका बातें करते करते ही आ पाता है

अपने
मतलब
की बातें
करने के
लिये ही
हर कोई
बात करने
के लिये
आता है

नहीं भी
करना चाहो
अगर बात
कोई अपनी
तरफ से
अपनी बात
को घुमा
फिरा कर
उसी तरह
की बातों
की तरफ
खींच तान
कर सारी
बातों का
रास्ता
बनाता है

सब को
आती है
होशियारी
अपने अपने
हिसाब की
दूसरे के
हिसाब के
घाटे के
बारे में
कौन जानना
चाहता है

पता रहता है
उबल रही है
कोई चाय
दिमाग के अंदर

पत्तियों को
छानने के
लिये छलनी
अपनी
अपने घर
से ही ले
आता है

खुदगर्ज
जितना
होता है बड़ा
खुद उतनी
ही बड़ी
बातों में उसे
सामने वाले
को उलझाना
आता है

उसकी
इसकी
बातों की
बातें ही
बस बातें
होती है
अपनी बात
करने में
बात ही
बात में
बातों से
कन्नी काट
जाता है

बातों ही
बातों में
बातों से
बातों को
खोदना भी
बात करने
वालों से
ही सीखा
जाता है

और
कोई ऐसा
भी होता
है कहीं
करता है
खुद की
बातें खुद
से ही
पर क्यों

‘उलूक’
देखता है
किसी के
बुदबुदाने
को बरसों
से अपने
सामने से
पर समझ ही
नहीं पाता है

खुद से
खुद की
बातें
करने वाला
उसे बात
ही नहीं
मानता है
कवि की
कविता
कहने पर
कुछ दाँत
दिखाता है।

चित्र साभार : http://galleryhip.com/kids-conversation-clipart.html

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

देखता कुछ और है बताता कुछ और चला जाता है

दिल
की बातें

कहाँ उतर
पाती हैं

इतनी
आसानी से
जबान से

कागज के
पास तक
पहुँच कर
भी फिसल
जाती हैं

दिल में
कुछ और होता है
लिखना
कुछ और होता है
जबान तक
कुछ और आता है
लिखा
कुछ और ही जाता है

बहुत कुछ होता है
आस पास की
हवा को हमेशा
बताने के लिये

पर हवा है कि
उससे रुका ही
कहाँ जाता है

उसे भी
कहाँ है
फुरसत
अपने गम
और खुशी
जमाने को
दिखाने के लिये

उसकी
बातों को भी
कहाँ कौन
सुन पाता है

कुछ आवाज
जैसी जरूर
सुनाई देती है

जिसे हल्के होने 

पर एक सरसराहट
कह दिया जाता है

कुछ तेजी से
चलना चाहती है
कभी तो

तूफान आने का
हल्ला मचा
दिया जाता है

‘उलूक’ भी
जानता है
समझता है

उसके खाने के
दाँतो को भी
कोई नहीं
देख पाता है

सबकी
आदत और
संगत का असर
उस पर भी होता है

बहुत बार वो भी
एक हाथी होने से
अपने को नहीं
बचा पाता है

मान लेना बहुत
मुश्किल होता है

अपना ही कर्म
अपनी ही आँखों में
बहुत आसानी से
बहुत बार धूल
झोंक ले जाता है ।

चित्र साभार : http://www.shutterstock.com/

सोमवार, 1 सितंबर 2014

उनकी खुजली उनकी अपनी खुजली खुद ही खुजलाने की

कोई ऐसी बात भी
नहीं है बताने की
बातों बातों में ही
बात उठ गई कहीं
लिखने लिखाने की
खबर रखते हैं कुछ
लोग सारी दुनियाँ
सारे जमाने की
बात बात पर होती है
आदत किसी की
बिना बात के भी
यूँ ही मुस्कुराने की
लिखते नहीं हैं कभी
बस पूछ लेते हैं
बात कहीं पर भी
लिखने लिखाने की
बीच बाजार में
कर देते हैं गुजारिश
कुछ लिखा कुछ पढ़ा
जोर से सुनाने की
‘उलूक’ मिटाता है
खुजली खुद ही
अपनी हमेशा
कुछ लिख
लिखा के जरा
ऐसी बातें होती
ही कहाँ हैं किसी
को इस तरह
से बताने की।
 
चित्र: साभार http://www.clipartpanda.com/